सर्वश्रेष्ठ समाज में बुराई का बोलबाला नहीं होतारमज़ानुल मुबारक पर विशेष,नेक समाज में मर्दों और औरतों का आज़ादाना मेल-मिलाप प्रतिबंधित है,डॉ एम ए रशीद नागपुर

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एक दूसरे परिवारों के सदस्य , रिश्ते नातेदार समाज का अभिन्न अंग होते हैं। उनके आस पड़ोस, एक से दूसरे मोहल्ले के लोगों से क़रीबी संबंध होते हैं । उनके यहां आना जाना नियमित बना रहता है। घनिष्ठता का यह आलम होता है कि कोई कार्यक्रम इन की उपस्थिति के बिना अंजाम नहीं पा सकता। यहां बुज़ुर्गों की इज़्ज़त तो बच्चों से लाड़ प्यार का सिलसिला जारी रहता है । लोग भी भलाइयों के कामों में रुचि रखते हैं। भलाई के साथ ही ईश्वर/अल्लाह से डर का माहौल रहता है । इसी कारण लोग बुराई को पनपने नहीं देते। जो लोग ईश्वर/अल्लाह के लिए भलाई के काम करते हैं तो अन्य लोगों को इन कामों में दिलचस्पी लेकर एक-दूसरे की मदद करना चाहिए। पवित्र क़ुरआन 5:2 में अल्लाह का फ़रमान है कि  "नेकी (भलाई) और तकवा (ईश-भय) के कामों में एक-दूसरे की सहायता करो।”

भलाई के कामों में इतना ही नहीं, बल्कि ऐसे कामों पर एक-दूसरे को निरन्तर उभारते रहना भी चाहिए। जैसे कि पवित्र क़ुरआन 9:71 में अल्लाह का आदेश है कि “मोमिन मर्द और मोमिन औरतें आपस में एक दूसरे के दोस्त है। वे आपस में एक-दूसरे को नेकी पर उभारते रहते हैं।”
नेकी और भलाई के कामों के चलते समाज के अन्दर बुराइयों को सिर उठाने का अवसर नहीं मिलना चाहिए। इसकी सूरत यह है कि एक ओर तो किसी बुरे काम में मदद न की जाए (कुरआन, 5:2), दूसरी ओर ऐसी हरकतों से लोगों को दूर रखने की पूरी-पूरी कोशिश भी की जाना चाहिए। इस संबंध में हिदायत है कि “तुम में से जो व्यक्ति भी कोई बुराई देखे तो चाहिए कि वह उसे अपने हाथ से बदलकर दुरुस्त कर दे।” ( मुस्लिम, भाग-1)
बुरी हरकतों से लोगों को दूर रखना केवल समाज ही की सेवा और ख़ैरख़्वाही नहीं है, बल्कि स्वयं उस व्यक्ति की भी सेवा और ख़ैरख़्वाही है जिसे बुराई से रोका गया हो।
अल्लाह के रसूल पैग़ंबर हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हिदायत फ़रमाई कि “अपने भाई की मदद करो, चाहे वह ज़ालिम (अत्याचारी) हो या मज़लूम (अत्याचार पीड़ित)” इस पर सहाबा (रजि.) ने (हैरत से पूछा कि “ऐ अल्लाह के रसूल (सल्ल.) मज़लूम भाई की मदद की बात तो समझ में आती है, मगर यह ज़ालिम की मदद किस प्रकार की जाएगी।” आप (सल्ल.) ने फ़रमाया कि “तुम उसे ज़ुल्म करने से रोक दो, अतः यही उसकी मदद है।” (बुखारी, मुस्लिम)
इन बुराईयों में उन समस्त स्रोतों को बन्द रखा जाना चाहिए जिन से वासनात्मक बुराईयां उबल- उबलकर समाज में फैल जाया करती हैं। इस उद्देश्य के लिए व्यापक उपाय अपनाने की ज़रूरत पेश आती है । इस में व्यभिचार को अत्यन्त नीच कर्मों में शामिल करते हुए पवित्र क़ुरआन 17:32 में फ़रमाया गया है कि “व्यभिचार ( अनैतिक यौन संबंध, ज़िना ) के निकट भी न जाओ, यह खुली हुई बेहयाई का काम और बुरा आचरण है।”
यह कहकर व्यभिचार के विरुद्ध पूरे समाज में अत्यन्त घृणा की तीव्र भावनाएँ पैदा कर दी गई हैं कि “व्यभिचारी किसी व्यभिचारिणी या मुशरिक से ही निकाह करता है और किसी व्यभिचारिणी को व्यभिचारी वा मुशरिक ही अपने निकाह में लाता है।”
(पवित्र कुरआन 24:3)
इसकी संपूर्ण रोकथाम के लिए व्यभिचार करने वाले अपराधी को शिक्षाप्रद और हृदयविदारक सज़ा का प्रावधा है । इस अपराधी को सज़ा देने का तरीका इस प्रकार से निश्चित किया गया है कि वह सज़ा सार्वजनिक स्थल अर्थात् खुले आम दी जाती है , ज़्यादा से ज़्यादा लोगों की उपस्थिति में वह सज़ा दी जाती है । सज़ा देने में किसी , नम्रता , मुरव्वत या लिहाज़ से काम न लिया जाता। पवित्र क़ुरआन 24:2 में अल्लाह का फ़रमान है कि “व्यभिचारिणी और व्यभिचारी इन दोनों में से प्रत्येक को सौ कोड़े मारो और अल्लाह के धर्म के विषय में (अर्थात् अल्लाह का क़ानून लागू करने में ) तुम्हें उन पर तरस न आए यदि तुम अल्लाह और अंतिम दिन पर ईमान रखते हो, और चाहिए कि उनकी सज़ा के वक्त मुसलमानों की एक जमाअत भी वहाँ मौजूद हो।”
ऐसी बहुत सी बुराईयों की रोकथाम के लिए सबसे पहले महिलाओं की मान-मर्यादाओं, उनकी इज़्ज़तों को सुरक्षित किया गया। महिलाओं का कार्यक्षेत्र सामान्य स्थितियों में घर की चार दीवारियों तक सीमित कर दिया गया और उन्हें अनावश्यक बाहर निकलने से रोक दिया गया है । उन से पवित्र क़ुरआन 33:33 में कहा कि “अपने घरों में टिककर रहो और विगत अज्ञानकाल की सी सज-धज न दिगती फिरना।”
एक भलाई वाले समाज में यह आवश्यक है कि ऐसी प्रत्येक हरकतों पर रोक लगाई जाए जो व्याभिचार , अनैतिकताओं की ओर इंसानों को ले जाती हैं। इस लिए नेक समाज में मर्दों और औरतों का आज़ादाना मेल-मिलाप को अत्यन्त प्रतिबंधित किया गया है । निकटवर्ती सम्बन्धियों के सिवा और किसी के सामने महिलाओं को बेपर्दा आने की अनुमति नहीं है। पवित्र क़ुरआन 33:59
के अनुसार “वे अपने ऊपर अपनी चादरों का कुछ हिस्सा लटका लिया करें।”
इसी तरह उन्हें इस बात से भी रोक दिया गया है कि वे खुशबू लगाकर , झनझन करने वाले आभूषण पहनकर बाहर निकलें, या परदे की आड़ से गैर महरम (वह व्यक्ति जिससे विवाह जाइज़ हो )। मर्दों से अनावश्यक बात चीत करें । आगर बातचीत करनी पड़ जाए तो शैली में कोई लोच पैदा करें । इस संबंध में पवित्र क़ुरआन 33:32 में अल्लाह का फ़रमान है कि “अतः तुम्हारी बातों में लोच न हो कि वह व्यक्ति जिसके दिल में रोग है,वह लालच में पड़ जाए।”
इसी प्रकार महिलाओं क ऐसे वस्त्र पहनने या ऐसे तौर-तरीके अपनाने को सख्त मना कर दिया गया है जो दूसरों के सामने हुस्न को जाहिर करने वाली परिभाषा में आते हों। उन औरतों पर लानत भेजी गई है जो इतने बारीक कपड़े पहनें कि शरीर अन्दर से झलक रहा हो, या जो मटकती हुई चलें ।
“ऐसी औरतें जो कपड़े पहनकर भी नग्न हों, (गैर मर्दों को) अपनी ओर आकर्षित करने वाली हों और ऊंटनियों की भांति मटक कर चलनेवाली हों , वे जन्नत में कदापि प्रवेश न कर सकेंगी और न उसकी महक पा सकेंगी।” (मुस्लिम, भाग-2)
आज लगता है मानो शर्म – हया , लाज लज्जा का जनाज़ा ही निकल गया है । इसने अपने से बड़ों की इज़्ज़त को तार तार कर दिया है । बेशर्मी की हरकतें आम होती दिख रही हैं । लेकिन इस्लाम ने पहले से ही शर्म और हया की सख़्त ताक़ीद की है और उसे ईमान (आस्था) का एक अनिवार्य अंग माना है – “शर्म ईमान का एक अंग है।” (बुखारी, भाग-1)
मर्दों और औरतों दोनों को हुक्म है कि अगर उनकी नजरें एक-दूसरे पर पड़ जाएं तो वे देखते न रहें, बल्कि नज़रें नीची कर लें -“ईमान वाले पुरुषों से कह दो कि अपनी निगाहें बचा कर रखे और गुप्तांगों की रक्षा करें और ईमान वाली स्त्रियों से कह दो कि वे भी अपनी निगाहें बचा कर रखें और अपने गुप्तांगों की रक्षा करें और अपने शृंगार प्रकट न करें, सिवाय उसके जो उनमें ज़ाहिर रहता है।” ( पवित्र कुरआन, 24:30-31)
इसी प्रकार किसी के घर में बिना सूचना तथा बिना अनुमति चले जाया करें , इसे पवित्र कुरआन, 24:27 में इस प्रकार से कहा गया कि “ऐ ईमान वालो! अपने घरों के सिवा दूसरे घरों में प्रवेश न करो, जब कि अनुमति प्राप्त न कर लो और उन घर वालों को सलाम न कर लो।”
इस्लामी दृष्टि से अश्लीलता और व्यभिचार की बातें करना सख्त मना है, क्यों कि इससे समाज की मानसिक पावनता आहत हो जाती है और इस बुराई के विरुद्ध लोगों की नैसर्गिक और धारणात्मक घृणा हलकी पड़ने लगती , इसलिए उन लोगों को सख्त दण्ड की धमकी दी गई है जो इस प्रकार की चर्चाएं किया करते हैं और समाज को अश्लीलताप्रिय देखना चाहते हैं। इस बारे में पवित्र क़ुरआन 24:19 में कहा गया है कि “जो लोग चाहते हैं कि उन लोगों में, जो ईमान लाए हैं, अश्लीलता फैले, उनके लिए दुनिया और आखिरत में दुखद यातना है।”