आओ क़ुरआन की तरफ़, डॉ एम ए रशीद नागपुर 

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क़ुरआन की तरफ लौटिए क्यों कि आज का इंसान ऐसे मोड़ पर आ चुका है कि उसकी रुह बेचैन हो कर रह गई है उसका अखलाकी और नफ़सियाती मामला चोर होकर रह गया है । भौतिकवाद संस्कृतियों ने भी उसका अमन चैन छीन लिया है।
जिंदगी के मसाइल मैं वह उलझ कर रह गया है , उसकी जिंदगी दीने हक से बेपरवाह होकर तबाही के दरवाज़े पर आ खड़ी हो हुई है !!!
अगर इस मौके पर मुस्लिम समुदाय क़ुरआन की शिऐ को ले कर उठ खड़े हों तो ऐन मुमकिन है वे अपना रुख बदल सकते हैं। क़ुरआन का सही इल्म अगर हासिल हो जाए तो वह हर तरफ़ रोशनी ही रोशनी बन जाएगा …. ना कोई क़दीम चीज़ से घबराहट हो सकेगी और ना कोई जदीद चीज़ उसे नुक़सान पहुंचा सकेगी।
पवित्र कुरआन अल्लाह तआला की सुरक्षित और आखिरी किताब है । यह अल्लाह की सबसे बड़ी नेयमत है, इससे दूरी के भयानक नतीजे होते हैं। क़ुरआन अवतरित होने के उद्देश्य को समझना चाहिए और अपना जायज़ा भी लेना चाहिए । इस बहुमूल्य और अज़ीम ग्रंथ के सिलसिले में जमाअ़त ए इस्लामी हिंद राष्ट्रीय स्तर पर रुजू इलल क़ुरआन मुहिम का आयोजन कर मुस्लिम समुदाय को क़ुरआन से जोड़ने का प्रयास कर रही है। हमारा मानना है कि पवित्र क़ुरआन अल्लाह की आख़िरी किताब है। अल्लाह ने अपने बंदों के मार्गदर्शन के लिए अपने कुछ चुने हुए बंदे भेजे (जिन्हें हम रसूल कहते हैं) और उन पर अपनी किताबें उतारीं। लेकिन ये सभी किताबें सुरक्षित नहीं रह सकीं। उन के मानने वालों ने उनमें कमी बेशी कर ली। कुछ बुनियादी शिक्षाएं उनसे निकाल दीं और अपनी खाहिशों के मुताबिक़ कुछ चीजें उनमें डाल लीं। इस तरह अल्लाह की हिदायत गुम हो गई और उस की मर्ज़ी क्या हैं, यह जानने का कोई ऐसा ज़रिया नहीं बचा, जिसपर भरोसा किया जा सके। सबसे आखिर में अल्लाह ने अपने आखिरी नबी हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर पवित्र क़ुरआन उतारा |
पवित्र क़ुरआन पूर्णतया सुरक्षित पुस्तक है । दूसरी आसमानी किताबों के मुकाबले में पवित्र कुरआन को यह ख़ास दर्जा प्राप्त है कि उस की आयतें, उस के शब्द, बल्कि उस का एक एक अक्षर उसी तरह सुरक्षित है जैसा वह उतारा गया था। इसलिए कि अल्लाह ने इस की सुरक्षा का ज़िम्मा खुद लिया है। (कुरआन, 49:9)
चौदह सौ वर्षों से ज़्यादा समय गुज़र गया, लेकिन इस में मामूली सी भी तब्दीली नहीं हुई है। इस की प्रतियां अनगिनत संख्या में दुनिया के कोने-कोने में मौजूद हैं, वह करोड़ों इन्सानों के सीनों में सुरक्षित हैं और दुनिया की सभी भाषाओं में इस के अनुवाद हो गए हैं।
क़ुरआन अल्लाह की सबसे बड़ी नेमत है , यह मार्गदर्शन की किताब हैं, यह दुनिया और आख़िरत में कामयाबी की राह दिखाती है। यह रोशनी है। गुमराहियों के अंधेरे दूर करती है । यह शिफ़ा है, सीनों की बीमारियों को दूर करती है। यह ज़िकरा ( याद-दिहानी) है, पढ़ने वालों को अल्लाह की याद दिलाती है। यह इन्सानों के लिए अल्लाह की सबसे बड़ी नेमत है। यह मुसलमानों की सबसे बड़ी ताक़त है।
क़ुरआन से दूरी के बुरे नतीजे भी होते हैं। कुरआन से दूरी ने मुस्लिम समुदाय को गंभीर नुक्सान पहुंचाया है। उनमें तरह-तरह की गुमराहियां फैल गई हैं। अनपढ़ मुसलमानों में अंधविश्वास आम हो गया है। पढ़े-लिखे मुसलमान पश्चमी विचारधारा से प्रभावित हो गए हैं। उनमें ईमानी जज़्बा ठंडा पड़ गया है और हालात से मुक़ाबला करने की ताक़त कमज़ोर पड़ गई है। हालात को समझने और समस्याओं को हल करने की योग्यता उनमें बाक़ी नहीं रही। शिर्क, बिदअत और इलहाद को उम्मत के अंदर घुसने का रास्ता मिल गया। मुसलमान दीन के तकाज़ों से ग़ाफ़िल हुए और अपनी ज़िम्मेदारी को भी भुला बैठे।
करआन उतारे जाने का मक़सद को समझना चाहिए । कुरआन उतारा गया था, ताकि उस के आदेशों पर अमल किया जाये, उस के ज़रिये अल्लाह की मर्ज़ी हासिल करने तरीके और नाराज़ी के कारण मालूम किए जाएं, जिन कामों का हुक्म दिया गया है उन पर अमल किया जाए, इस तरह अल्लाह की मर्ज़ी हासिल करने की कोशिश की जाये, जिन कामों से रोका गया है और वे अल्लाह के गुस्से को भड़काते हैं उनसे बचने की कोशिश की जानी चाहिए।
जब तक मुसलमानों ने पवित्र कुरआन को सीने से लगाए रखा, उस के आदेशों पर अमल किया और उस से मार्गदर्शन हासिल करते रहे, उन्हें दुनिया में विकास हासिल हुआ और वे दूसरी क़ौमों पर छाए रहे । लेकिन जैसे-जैसे वे कुरआन रो दूर होते गए वैसे-वैसे वे पतन का शिकार होते गए। दुनिया की कौमें उन पर शेर होती गईं, उनकी हवा उखड़ गई और वे पतन के निजले स्तर पर पहुंच गए। इस तरह अल्लाह के रसूल का यह कहना सच साबित हुआ : “अल्लाह इस किताब के ज़रिये कुछ लोगों को बुलंदी अता करता है और (इसे पीठ के पीछे डाल देने की वजह से कुछ लोगों को नीचे ढकेल देता है।’ (सही मुस्लिम: 817)
इस से मालूम हुआ कि हम मुसलमानों का उत्थान और पतन क़ुरआन से जुड़ा है। अगर हम इस को मज़बूती से थामेंगे, इस से रहनुमाई हासिल करेंगे और इस के हुक्मों पर चलेंगे तो तरक़्क़ी करेंगे, इज़्ज़त पाएंगे, लेकिन अगर हम इस से मुँह मोड़ेंगे, इस से मार्गदर्शन नहीं लेंगे और इस के बताए हुए तरीके पर नहीं चलेंगे तो अपमानित होंगे।
अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने आख़िरी हज के खुत्बे में फ़रमाया था, “मैं तुम्हारे बीच ऐसी चीज़ छोड़कर जा रहा हूँ कि अगर उसे मज़बूती से पकड़े रहोगे तो कभी गुमराह न होगे। वह है अल्लाह की किताब (सही मुस्लिम : 1218)
इस समय हमें अपना जायज़ा लेने की आवश्यकता है । हम में से कितने लोग हैं जो क़ुरआन पढ़ सकते हैं? हम में से कितने लोग हैं जो इस की सही तिलावत कर सकते हैं? हम में से कितने लोग हैं जो पाबंदी से इस की तिलावत करते हैं? हम में से कितने लोग हैं जो इसे समझ कर पढ़ते हैं? हम में से कितने लोग हैं जो इस की शिक्षाओं पर अमल करते हैं? हम में से कितने लोग हैं जो इस की शिक्षाएं दूसरे इन्सानों तक पहुंचाने की कोशिश करते हैं?
इन जाएज़े से हम में यदि कमज़ोरी है तो हमें अपना रवैया बदलना होगा और पक्का इरादा करना होगा कि अगर अब तक कुरआन नहीं पढ़ सकते थे तो अब पढ़ना सीखेंगे । अगर अब तक सही तरीके से तिलावत नहीं करसकते थे तो अब उसका हक अदा करेंगे ।
अगर अब तक पाबंदी से तिलावत नहीं करते थे तो अब करेंगे । अगर अब तक बिना समझे कुरआन पढ़ते थे तो अब इसे समझ कर पढ़ेंगे । अगर अब तक क़ुरआन की शिक्षाओं पर अमल करने का जज़्बा नहीं था तो अब उन पर अमल करेंगे । अगर अब तक क़ुरआन की शिक्षाएं दूसरों तक नहीं पहुंचाते थे तो अब इस की कोशिश करेंगे।
रुजूअ इलल कुरआन (पलटो कुरआन की ओर) मुहिम का मक़सद यह है कि हर मुसलमान का कुरआन से रिश्ता मज़बूत हो। ये मुहिम वक़्त की सबसे बड़ी ज़रूरत है।
इस के लिए हमें कुछ कामों का बीड़ा उठाना चाहिए कि अपने मुहल्ले/ बरती में दरों कुरआन का सिलसिला शुरू किया जाए । स्कूलों में कुरआन की शिक्षा की व्यवस्था की जाए । अपने करीबी लोगों तक क़ुरआन का अनुवाद पहुंचाया जाए। निकाह के मौक़ा पर कुरआन की कोई तफ़्सीर
तौहफे में दी जाए।
यह लेख रुजू इलल क़ुरआन के चौकन्ने से लिया गया है।