प्यारे नबी हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपने ख़िताब में दज्जाल से डराया (मुस्लिम समुदाय के लिए जुमे के आदाब और आचार) डॉ एम ए रशीद , नागपुर
दज्जाल के फ़ित्नों से हर एक नबी ने अपनी क़ौम को सावधान किया और उसे डराया भी है। अल्लाह तआ़ला ने दज्जाल का ज़िक्र सूरह कहफ़ में किया है। यह सूरह क़ुरआन करीम के 15 वे पारे के निस्फ़ यानि कि उसके अध्य से शुरू होती है। इस के बारे में बताया जाता है कि दज्जाल का ख़ुरुज अर्थात उसका निकलना , उभरना 15वीं सदी के निस्फ़ पर होगा। क़ुरआन करीम का 16वां पारा शुरू होते ही दज्जाल का ज़िक्र खत्म हो जाता है। इसे से मालूम होता है कि 16वीं सदी से क़ब्ल ही यह फ़िल्ना ख़त्म हो जाएगा। आगे यह भी कि अल्लाह तआला ने दज्जाल के ज़िक्र से पहले बनी इसाईल का ज़िक्र किया है । इस से यह मालूम होता है कि ये लोग लोग उससे पहले काफ़ी चर्चे में होंगे यानि उन्हें ख़ुरुज मिलेगा। दज्जाल के 15 वीं सदी के आधे में आने और मीडिया के अनुसार तीसरे विश्व युद्ध के बारे में प्रबल संभावनाओं की अटकलें तेज़ होती दिखाई दे रही हैं।
वर्तमान समय मुस्लिम समुदाय के लिए बहुत अहमियत रखता है । यह समय अपनी आख़िरत बेहतर करने के लिए कड़ी आज़माइश, परीक्षाओं से भरा हुआ रहेगा। बता दें कि इस वक्त 1445 हिजरी चल रही है । दज्जाल और वर्तमान समय की भविष्यवाणियों पर ध्यान देना चाहिए । दज्जाल के फ़ित्नों के साथ मुस्लिम समुदाय को फ़िलिस्तीनी मुद्दे की संवेदनशीलता पर जितना अवगत और सचेत रहने की ज़रूरत है उतना ही साम्राज्यवादी और अहंकारी शक्तियों की जटिल साज़िशों से सावधान रहने की भी ज़रूरत है। फिलिस्तीन की समस्या मुस्लिम दुनिया की वास्तविक और उत्पीड़ित समस्या है। ऐसी विषम परिस्थितियों में मुस्लिम समुदाय को इस्लामी निर्देशों का पालन करते हुए आपसी एकता की रक्षा करना चाहिए। भाईचारे और समुदाय को अक़ीदा व ईमान के साथ मज़बूत करने पर अपना ध्यान केंद्रित करना चाहिए। हम सभी मानते हैं कि दुनिया में जो कुछ भी होता है वह अल्लाह के आदेश से होता है। सभी इंसानों के दिल अल्लाह के क़ब्ज़े में हैं और इस उम्मत के इतिहास में ऐसी अनेकों कठिन परिस्थितियां पहली बार नहीं आई हैं। हमें निराश होने की बजाय हालात सुधारने की चिंता करनी चाहिए।
क्या यह सत्य नहीं है कि हम अपने व्यक्तिगत इस्लामी चरित्रों की दृष्टि से अत्यंत निम्न स्थिति में आ गये हैं ! हमारे बीच ऐसे कितने लोग हैं जो अल्लाह की शरीयत को अपने ऊपर पूरी तरह लागू कर रखे हैं , जिस से वे दूसरों के हक़ को पूरी ज़िम्मेदारी से अदा करते हैं। अपनी ज़ुबान या हाथों से दूसरों को चोट नहीं पहुंचाते हैं, अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए राष्ट्र और क़ौम को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं , इससे वे परहेज़ करते हैं और गंभीर चिंता भी रखते हैं । आज यह आवश्यक है कि प्रत्येक व्यक्ति अपने सुधार की चिन्ता करे और अल्लाह के साथ अपना सम्बन्ध पूरी तरह गम्भीरता से बनाये। जो मामले पूरे देश या मुस्लिम समुदाय से जुड़े हों, उनमें हर तरह से एकजुट रुख अपनाया जाना चाहिए, इसके लिए एक सामान्य मानसिकता विकसित करने का प्रयास करना चाहिए। जुमे के आदाब और आचार के तहत हर एक जुमा को क़ुरआन करीम की सुरा कहफ़ का पठन दज्जाल के फ़ित्नों से हिफ़ाज़त का सबब बनेगी।
हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा फ़रमाते हैं, हम लोग हज्जतुल विदाअ़् के बारे में (हज से पहले) बातें तो करते थे (कि हम लोग हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ हज करेंगे, वग़ैरह) लेकिन हमे यह ख़बर नहीं थी कि हुज़ूर सअ़व (अपनी उम्मत को) अल-विदाअ़् फ़रमाने के लिए यह हज कर रहे हैं। चुनांचे हज्जतुल विदाअ़् के इसी सफ़र में हुज़ूर सअ़व ने एक बयान में मसीह दज्जाल का ज़िक्र किया और बहुत तफ़्सील से उसके बारे में बातें कीं, फिर फ़रमाया, अल्लाह ने जिस नबी को भेजा, उसने अपनी उम्मत को दज्जाल से ज़रूर डराया। हज़रत नूह अलैहिस्सलाम और उनके बाद के सारे नबियों ने उससे डराया है, लेकिन उस की एक बात अभी तक तुम लोगों से छुपी हुई है और वह तुम लोगों से छुपी नहीं रहनी चाहिए। (कि वह काना होगा) और तुम्हारा रब तबारक व तआ़ला काना नहीं है।
हज़रत सफ़ीना रज़ि. फ़रमाते हैं कि एक बार हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हम में बयान फ़रमाया और इर्शाद फ़रमाया, मुझ से पहले हर नबी ने अपनी उम्मत को दज्जाल से डराया है। उसकी बाईं आंख कानी है और उसकी दाईं आंख में नाक की तरफ़ वाले पहलू में गोश्त का एक मोटा-सा टुकड़ा होगा जो आंख की स्याही पर चढ़ा हुआ होगा। उसकी दोनों आंखों के बीच काफ़िर लिखा हुआ होगा। उसके साथ दो वादियां भी होंगी। एक जन्नत नज़र आएगी और दूसरी दोज़ख़, लेकिन उसकी जन्नत हक़ीक़त में दोज़ख होगी और उसकी दोज़ख जन्नत होगी। और उसके साथ दो फ़रिश्ते होंगे जो नबियों में से दो नबियों से मिलते-जुलते होंगे। एक फ़रिश्ता दज्जाल के दाहिनी तरफ़ होगा और दूसरा बाईं तरफ़ और उसमें लोगों की आज़माइश होगी।
दज्जाल कहेगा, क्या मैं तुम्हारा रब नहीं हूं, मैं मारता हूं और ज़िंदा करता हूं? इस पर एक फ़रिश्ता कहेगा, तू ग़लत कहता है। इस जुमले को उसका साथी फ़रिश्ता सुन सकेगा और कोई नहीं सुनेगा। दूसरा फ़रिश्ता पहले फरिश्ते को जवाब में कहेगा, तुमने ठीक कहा । इस जुमले को तमाम लोग सुन लेंगे। इससे लोग यह समझेंगे कि यह फ़रिश्ता उस दज्जल की तस्दीक़ कर रहा है। यह भी आज़माइश की एक शक्ल होगी। फिर वह दज्जाल चलेगा और चलते-चलते मदीना पहुंच जाएगा, लेकिन उसे मदीना के अन्दर जाने की इजाज़त नहीं होगी। फिर वह कहेगा वह तो उस अज़ीम हस्ती (यानी हज़रत महम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की बस्ती है। फिर वहां से चलकर शाम देश पहुंचेगा कहेगा, यह और अफ़ीक़ मुक़ाम की घाटी के पास अल्लाह उसे हलाक करेंगे।
हज़रत जुनादा बिन अबी उमैया अज़्दी रह कहते हैं कि मैं और एक असारी हम दोनों नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के एक सहाबी की खिदमत में गए और उनसे अर्ज़ किया, हमें आप कोई ऐसी हदीस बयान करें जो आपने हुज़ूर सअ़व से सुनी हो और उसमें हुजूर सअ़व ने दज्जाल का ज़िक्र किया हो । उन्होंने फ़रमाया, एक बार हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हम लोगों में बयान फ़रमाया, उसमें इर्शाद फ़रमाया, मैं तुम्हें दज्जाल से डराता हूं। यह जुमला तीन बार दोहराया, फिर फ़रमाया, कोई नबी ऐसा नहीं आया, जिसने दज्जाल से न डराया हो। ऐ उम्मत वालो ! वह तुममें होगा, वह घुंघराले बालों वाला और गन्दुमी रंग वाला होगा। उसकी बाईं आंख पर हाथ फिरा हुआ होगा और वह मिटी हुई होगी। उसके साथ जन्नत और दोज़ख़ होगी और उसके साथ रोटी के पहाड़ और पानी की नहर होगी। वह बारिश बरसाएगा, लेकिन पेड़ नहीं उगा सकेगा और वह एक आदमी पर ग़ालिब आकर उसे क़त्ल कर देगा, उसके अलावा और किसी को क़त्ल नहीं कर सकेगा, वह ज़मीन पर चालीस दिन रहेगा और वह पानी के हर घाट पर पहुंचेगा, चार मस्जिदों के क़रीब नहीं जा सकेगा – मस्जिदे हराम,मस्जिदे मदीना, मस्जिदे तूर, मस्जिदे अक़्सा और तुम पर दज्जाल मुश्तबहा नहीं होना चाहिए। वह (काना होगा) और तुम्हारा रब काना नहीं है।