जब रमज़ानुल मुबारक के रोज़े तक़्वा पैदा कर देते हैं तो किसी इंसान की अन्तरामा की पवित्रता या अपवित्रता की कसौटी उसके शिष्टाचार और नीतिगत आचरण (अखलाक़) होते हैं। अन्तरात्मा जिस प्रकार की होती है नीतिगत आचरण भी वैसे ही दिखाई देते हैं। यही कारण है कि आम तौर से इंसान के नीतिगत आचरण ही उसके गुणों व दोषों को प्रकट कर देने वाले समझे जाते हैं। इसलिए स्वाभाविक तौर पर आध्यात्मिक व्यवस्था के बाद नैतिक व्यवस्था ही का नम्बर आना चाहिएं। जहाँ तक धर्म का सम्बन्ध है उसका फ़ैसला भी यही मालूम होता है । क्योंकि उसने अच्छे शिष्टाचार और नीतिगत आचरण को अत्यन्त महत्त्व प्रदान किया है, इतना महत्त्व कि एक पहलू से मानो वही धर्म का सार है। अल्लाह के नबी हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फ़रमाते हैं कि "मैं इसलिए भेजा गया हूं ताकि नीतिगत सुआचरण को परिपूर्ण कर दूं" , 'भलाई अच्छे शिष्टाचार एवं व्यवहार का नाम है" । यह है शिष्टाचार और अच्छे आचरण का वह असाधारण महत्त्व जिसके आधार पर इस्लाम ने बड़े विस्तार से आदेश दिए हैं और उनकी बड़ी ताक़ीद की है।
इस्लाम में अच्छे शिष्टाचार (अखलाक़) और बुरे शिष्टाचार तयशुदा और हमेशा के लिए निश्चित हैं । अच्छी नैतिकता एवं शिष्टाचार वही चीज़ हो सकती जिसे अल्लाह और उसके रसूल हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अच्छी नैतिकता बताया हो। इसी प्रकार बुरी नैतिकता एवं बुरा शिष्टाचार केवल वह है, जिसे अल्लाह और उसके रसूल (सल्ल.) ने बुरी नैतिकता और बुरा आचरण कहा हो। अच्छे और बुरे आचरण किसी बुद्धि के निर्णय का मुहताज हैं, न किसी अनुभव के जरूरतमंद है। ये शिष्टाचार हमेशा से प्रत्येक समाज में प्रचलित रहे हैं । वे मात्र नाम ही की कोई विशिष्ट वस्तु नहीं है। मगर इसके बावजूद इस्लामी चरित्र और सामान्य रूप से प्रचलित शिष्टाचार दोनों को एक ही समझ लेना बड़ी भारी भूल होगी। क्योंकि इस्लाम ने किसी कार्यशैली को अच्छा शिष्टाचार कहा है।
यह हैं इस्लामी शिष्टाचार के सामाजिक मूल्य जो इस्लामी नैतिक व्यवस्था के स्वर्णिम वचन कहलाए जाते हैं।
अल्लाह तआला पवित्र कुरआन 28:77 में फ़रमाता है- “लोगों के साथ भलाई कर, जिस प्रकार कि अल्लाह ने तेरे साथ की है।”
इसी प्रकार पवित्र कुरआन 3:134 में फ़रमाया गया कि
“..(उन संयमी लोगों के लिए जो क्रोध को पी जाते हैं और लोगों को माफ़ कर देते हैं।”
आगे पवित्र कुरआन 22:31 में यह स्पष्ट निर्देश हैं कि “निस्सन्देह, अल्लाह किसी दग़ाबाज़ कृतघ्न को पसन्द नहीं करता “।
फुजूलखर्ची के लिए पवित्र कुरआन, 17:26 में कहा गया कि “..फुजूलखर्ची न करो।” “लोगों से (बातें करते समय) अपने गालों को (घमंड से) टेढ़ा न रख , न ज़मीन पर इतरा कर चल । कोई सन्देह नहीं कि अल्लाह किसी घमंडी और शेखीबाज़ को बिलकुल पसन्द नहीं करता।” ( पवित्र कुरआन, 31:18) , “तबाही है हर ताना देने वाले और ऐब लगाने वाले के लिए।” (पवित्र कुरआन, 10:1)
फिर पैग़ंबर हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फ़रमाते हैं कि “निस्सन्देह सच्चाई भलाई की ओर और भलाई जन्नत की ओर ले जाती है।
….. और झूठ बुराई का और बुराई जहन्नम का मार्ग दिखाती है।”, “थोड़ा-सा दिखावा भी शिर्फ है।” , “ज़ुल्म करने से बचो , क्योंकि ज़ुल्म क़यामत के दिन अंधियारों की शक्ल में प्रकट होगा।”
हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कपटाचारी की पहचान बताते हुए कहा कि “चार गुण जिस किसी के अन्दर होंगे, वह पक्का मुनाफिक (कपटाचारी) होगा और जिसके अन्दर उनमें से कोई एक होगा उसके अन्दर कपट का एक गुण होगा, यहां तक कि वह उसे छोड़ दे। (वे चार गुण ये हैं-)
(1) जब कोई धरोहर (अमानत) उसके पास रखी जाए तो वह ख़्यानत (बेईमानी) कर जाए, (2) बात करे तो झूठ बोले, (3) वादा करे तो पूरा न करे, (4) झगड़ा करे तो गालियों पर उतर आए।”।
आप सअव के अन्य हदीसों में मिलता है कि “नर्मी अपनाओ, सख़्ती और अपशब्द बोलने से दूर रहो।” , “चुग़ली खाने वाला जन्नत से वंचित रहेगा।” ,
“अल्लाह उस व्यक्ति पर दया न करेगा, जो दूसरे लोगों पर दया नहीं करता।” ,
“दग़ाबाज़ और कंजूस और एहसान जताने वाले जन्नत में न जाएंगे।”़