नागपुर
पर्दा अ़रबी ज़ुबान के शब्द हिजाब का शाब्दिक अर्थ है। अ़रबी में जिस चीज़ को हिजाब कहते हैं उसी को फ़ारसी और उर्दू ज़ुबान में पर्दा कहा जाता है। इस्लामी आदेशों में यह किसी अजनबी पुरुष को किसी महिला से आज़ाद मेल-मिलाप से रोकने का सरल , सुगम उपाय है। पर्दा, हिजाब के आदेश के साथ पर्दे की पाबंदियों की शुरुआत हुई , फिर इस सिलसिले में जितने हुक्म आए, उन सबके जमावड़े को हिजाब के हुक्म यानी पर्दे के अहकाम कहा जाने लगा। पर्दे के ये नियम सूरह नूर और सूरह अहज़ाब में विस्तार से मौजूद हैं । इसमें महिलाओं को अपने घरों में सम्मान के साथ रहने के आदेश दिए गये हैं । जाहिलिया / अज्ञानी युग की महिलाओं की तरह अपनी सुंदरता का प्रदर्शन नहीं करने का आदेश दिया गया है। अगर कोई महिला घर से बाहर जाना चाहती है तो अपने ऊपर एक चादर डाल ले और बजने वाले गहने पहनकर बाहर न निकले। घर के अंदर भी महरम पुरुषों और गैर महरम , अनजान , अजनबी पुरुषों के बीच भेदभाव करे। महरम पुरुषों के अलावा किसी के सामने ज़ीनत यानी बनाव शृंगार करके न जाने की हिदायत दी गई । ज़ीनत ही शृंगार और सजावट के अर्थ में आता है, इसमें सुंदर कपड़े, आभूषण और श्रृंगार तीनों चीज़ें शामिल मानी जाती हैं।
ग़ैर पुरुषों के सामने महिलाओं को अपने घूंघट के सिरों को अपनी गर्दन पर रखने और अपने अंगों को छिपाने का आदेश दिया गया । घर के पुरुषों को निर्देश दिया गया है कि जब भी मां बहनों के पास आएं तो इजाज़त लेकर आएं ताकि वे अचानक ऐसी स्थिति में न हों कि उनके शरीर का कोई अंग उघाड़, खुला दिख रहा हो। ये पवित्र क़ुरआन और उसके द्वारा दी गई आज्ञाएं हैं। इनका नाम पर्दा है।
महिला के “सतर” में चेहरा, कलाई के जोड़ तक हाथ और टखनों तक पैरों को छोड़कर उसका पूरा शरीर होता है, जिसे छिपाकर रखा जाना चाहिए। किसी को ऐसे कपड़े नहीं पहनने चाहिए जो शरीर को दिखाते हों। महिलाओं को महरम पुरुषों के अलावा किसी भी ग़ैर पुरुष के साथ अकेले रहने से मना किया गया है । महिलाओं को इत्र , ख़ुश्बू लगाकर घर से बाहर निकलने से भी मना किया है।
पैग़ंबर हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मस्जिद के अंदर महिलाओं को नमाज़ अदा करने की अनुमति दी थी और उनकी नमाज़ के लिए एक अलग जगह नियुक्त की थी । पुरुषों और महिलाओं को एक पंक्ति में एक साथ नमाज़ पर पाबंदी थी। नमाज़ समाप्त करने के बाद महिलाओं के निकल जाने तक सभी पुरुष मस्जिद में तब तक बैठे रहते थे।
इस्लाम में यह पर्दा , हिजाब किसी ख़ातून की आज़ादी में न तो रुकावटें डालता है और न ही उससे किसी तरह के विकास में बाधा पड़ती है। बल्कि उसके बिना फैलने वाली अश्लीलता, बेहयाई और उससे जुड़े हुए बहुत से अपराधों को रोकने का वह बेहतरीन साधन बन कर सामने आता है। समाज में अक्सर महिलाओं के प्रति हो रहे अपराधों को हम देखते और सुनते हैं, यहां तक कि उन्हें नज़र अंदाज़ कर दिया जाता है । परन्तु कई बार बड़े अपराध की शुरुआत छोटी-छोटी नज़र अंदाज़ की गई हरकतों का अंजाम होता है। स्कूल, कॉलेज से लेकर कार्यस्थल तक महिलाओं से संबंधित कुछ ऐसे अपराध घटित होते हैं, जिन्हें हम नज़र अंदाज़ करना आसान समझते हैं। इससे अपराधी को अपराध पुनः कारित करने के लिए उत्प्रेरणा मिलती है और इसके कारण महिलाएं असहज व असुरक्षित महसूस करती हैं। यदि मुस्लिम समुदाय में कोई महिला इस्लामी आदेशों का पालन करते हुए पर्दे, हिजाब के साथ निकलती है तो उससे बहुत से अपराधों में रोक लग जाती है। सामान्य तौर पर कोई अनजान, अजनबी पुरुष हिजाब पहनी महिला को न ही घूर कर देख सकता है और न ही टकटकी लगाए देख सकता है।
पर्दे और हिजाब में महरम और नामहरम शब्दों का उल्लेख मिलता है। इस पर मुस्लिम समुदाय को अत्यधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। पर्दे की विशेषता यह है कि वह घर और समाज को बुराइयों से पवित्र रखता है। पर्दे का मुख्य सबब , कारण किसी का ग़ैर महरम होने से है । इस प्रकार जहां जहां पर्दे का सबब और कारण पाया जाएगा वहां पर्दा करना ज़रूरी होगा। उससे बचने के लिए यह नहीं कहा जा सकता कि अमुक जगह बुराईयां और बेहयाईयों का ख़तरा नहीं है इसलिए वहां पर्दा करने की ज़रूरत नहीं है ।इस बात को यहां स्पष्ट करना ज़रूरी है कि पर्दे की निर्भता दिल के जज़्बे और भावना की बात पर नहीं है । उदाहरण के तौर पर हम उम्मत की माताएं जिन्हें उम्माहातुल मोमीनीन कहा जाता है, इन उम्माहातुल मोमीनीन का सहाबाए किराम रज़ि ( पैग़ंबर हज़रत मोहम्मद सअ़व के आदर्श साथियों) के अंदर उन उम्माहातुल मोमीनीन के बारे में पाकीज़ा ख़्यालात थे। इसके बावजूद उन पाकीज़ा तरीन महिलाओं ने भी पाकीज़तरीन अर्थात पैग़ंबर हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के आदर्श साथियों से पर्दा किया था।
अल्लाह तआ़ला ने पवित्र कुरआन में बता दिया है कि कौन महरम है जिससे पर्दा नहीं और कौन ग़ैर महरम है जिन से पर्दा ज़रूरी है । पवित्र क़ुरआन की सूरह नूर की पंक्ति क्र 31 में बताया गया कि “और ईमान वाली महिलाओं से कह दो कि वे अपनी निगाहें नीची रखें और विनम्र रहें, और अपना श्रृंगार केवल वही प्रदर्शित करें जो दिखाई दे, और अपने सीने पर पर्दा डालें, और अपने पति या पिता या पतियों के अलावा अपना श्रृंगार प्रकट न करें। पिता, या उनके बेटे या उनके पतियों के बेटे, या उनके भाई या उनके भाइयों के बेटे या बहन के बेटे, या उनकी स्त्रियां, या उनके दास, या पुरुष परिचारक जिनमें जोश की कमी है, या ऐसे बच्चे जो महिलाओं की नग्नता के बारे में कुछ भी नहीं जानते हैं। और वे अपने पांव न पटकें, जिससे प्रगट हो जाए कि वे अपने श्रृंगार में क्या छिपाते हैं। और ऐ ईमानवालों, सब मिलकर अल्लाह की ओर फिरो, ताकि तुम सफल हो जाओ”।
सूरा अहज़ाब की पंक्ति के 55 में इस संबंध में पवित्र क़ुरआन में बताया गया है कि “उनके पिता या उनके बेटों, उनके भाइयों, या उनके भाई के बेटों, या उनकी बहनों के बेटों, या उनकी महिलाओं, या (गुलामों) के सामने जो उनके दाहिने हाथ के पास हैं, उनके सामने (इन महिलाओं पर) कोई दोष नहीं है। और (महिलाओं), अल्लाह से डरो; क्योंकि अल्लाह हर चीज़ का गवाह है”।
महिला के महरम रिश्तेदार (जिनसे पर्दा ज़रूरी नहीं) में पिता, दादा, नाना, भाई, बेटा, भतीजा, पोता, भांजा, दामाद और ऐसे मदहोश जो महिला के बारे में कुछ नहीं जानते आदि शामिल हैं। महिला के लिए ससुर महरम है और ख़ाला (मौसी) और मामू , चाचा , फूफी के बेटे , बहनोई (जीजा), नंदोई , ख़ालू , फूफा , तथा पति (शौहर ) का चाचा और उसका मामू , ख़ालू , फूफा , भतीजा , भांजा , जेठ , देवर नामहरम / ग़ैर महरम ( जिनसे पर्दा अनिवार्य) हैं।
यदि मुस्लिम समुदाय इन इस्लामी आदाब और आचार को अपनी ज़िंदगी में अपनाता है तो बहुत से अपराधों से महिलाओं की सुरक्षा निश्चित हो जाती है। वरना अपराधी अल्लाह के क़ानून में तो पकड़ में आएंगे ही और भारतीय दंड संहिता (भादंसं) की धारा 354 , 354 सी और 354 डी के तहत दोषी पाए जाने पर अपराथी को सज़ा भी हो सकती है।