गणतंत्र दिवस के अवसर पर मुस्लिम समुदाय को समाज सेवा और देश के लिए एक संपत्ति बनने का संकल्प लेना चाहिए इसके लिए हमें अपने संकुचित क्षेत्र से बाहर आना चाहिए, डॉक्टर एम ए रशीद

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गणतंत्र दिवस के अवसर पर मुस्लिम समुदाय को समाज सेवा और देश के लिए एक संपत्ति बनने का संकल्प लेना चाहिए
इसके लिए हमें अपने संकुचित क्षेत्र से बाहर आना चाहिए


स्वतंत्र भारत का संविधान संकलन 26 नवंबर 1949 को पूर्ण हुआ था जो 26 जनवरी 1950 को देश में लागू हुआ । तदनुसार पूरे देश में हर दिन 26 जनवरी को राष्ट्रीय पर्व के रूप में इस गणतंत्र दिवस को बड़े ही धूमधाम, उत्साह और गरिमा के साथ मनाया जाता है। अत्याचारी अंग्रेजों ने वर्षों तक हमारे देश पर शासन किया था , देशवासियों को गुलामी की जज़ीरों से जकड़ दिया था । लेकिन गुलामी की जंज़ीरें जो देशवासियों के पैरों में थीं , वे काट दी गईं और हमारे देश के सभी लोग आज़ाद हो गए।
इतिहास के दस्तावेज़ गवाही देते हैं कि देश को अंग्रेज़ों के चंगुल से आज़ाद कराने के लिए देश के हर वर्ग और धर्म के लोगों ने भाग लिया था और अनगिनत कुर्बानियां दीं थीं । देश के मुसलमानों ने इस आज़ादी में जो भूमिकाएं निभाईं थीं वह आज़ादी के इतिहास का एक उज्जवल और सुनहरा अध्याय है।


आज हमने स्वतंत्रता के लिए सैकड़ों मुस्लिम आंदोलनकारियों के अद्वितीय बलिदानों को भुला दिया है जो निश्चित रूप से न्याय के ख़िलाफ़ है। आज़ादी की जंग की दर्दनाक कहानी में दर्ज है कि दिल्ली के चांदनी चौक से लाहौर के एक बाजार तक कोई ऐसा पेड़ नहीं था, जिस पर किसी सफेद बालों वाले बूढ़े की लाश न झूल रही हो। इन शहीद विद्वानों ने ही आज़ादी का बिगुल फूंका था। उन के दिलों में आज़ादी का सपना समाया हुआ था उस सपने में भारत का एक ऐसा दृश्य था जिसमें मानवीय मूल्यों पर आधारित धर्मनिरपेक्ष देश, बंधुत्व भाव और विकास के पहलू दिखाई देते थे ।
आज गिनी चुनी शिक्षण संस्थाओं के अतिरिक्त देश भर में मुस्लिम समुदाय की हजारों-लाखों छोटे-बड़े मुस्लिम शिक्षण संस्थाएं हैं। हर साल वहां बड़ी धूमधाम से कार्यक्रम और समारोह आयोजित किए जाते हैं। लेकिन बड़े अफ़सोस की बात है कि इन कार्यक्रमों में दो-चार को छोड़कर किसी मुस्लिम आंदोलनकारी के त्याग का आज नाम तक नहीं लिया जाता है। परिणामस्वरुप अधिकांश आंदोलनकारियों के त्याग के नाम इतिहास के पन्नों से धीरे-धीरे गायब होते जा रहे हैं।
हमें यह याद रखना चाहिए कि इतिहास को कभी नहीं भुलाया नहीं जाता , ज़िंदा लोग ही इतिहास और अपने पूर्वजों की उपलब्धियों को याद रखते हैं, वे इन ऐतिहासिक उपलब्धियों को अपनी पीढ़ियों के लिए सीख का उदाहरण बनाते हैं और उसे सहेज कर भी रखते हैं। आज उनकी वह कुर्बानियां धूमिल होती दिख रही हैं।
मुस्लिमो की कुर्बानियां और हमारी गफलतों भरी जिंदगानी पर विचार करने की आवश्यकता है। हमें अपने इस खोल से बाहर निकलने की बहुत अधिक आवश्यकता है । बड़े अफ़सोस की बात है कि हमारे मुस्लिम समुदाय की पहचान तेज़ी से एक ऐसे समूह की बनती जा रही है जिसके कार्यकलाप केवल अपने तक ही सीमित हैं और देश के प्रति उत्तरदायित्वों से विहीन हैं। वह जो भी रचनात्मक कार्य करती है, केवल अपने और अपने सहधर्मियों के लिए करती है और उसका संबंध समाज से सिर्फ विरोध या अपनै मांगों से है। सचमुच में अगर देखा जाए तो हमें अपनी बग़लों में झांकना चाहिए और यह देखना चाहिए कि खासकर देश की मुख्यधारा में हम मुसलमानों का क्या ख़ास योगदान है। इस्लाम की सच्ची शिक्षाओं पर केवल भाषण देने से इसका समाधान नहीं है। बल्कि इसके लिए व्यावहारिक दृष्टिकोण में मूलभूत परिवर्तनों की आवश्यकता है। तब कहीं जाकर फैली हुई अविश्वास की भावनाएं दूर हों सकेंगी। इस प्रकार की अविश्वास की भावनाएँ हमारे सामूहिक अस्तित्व के लिए बहुत घातक हैं। हम सभी को मिलकर सोचना चाहिए कि हम समाज के उत्धान और राष्ट्रीय विकास में किस प्रकार से सहायता कर सकते हैं । क्या हम समाज के लिए एक दाता नहीं बन सकते ? उच्च शिक्षा प्राप्त कर शिक्षा , चिकित्सा , इंजीनियरिंग क्षेत्रों में आगे निकल कर नये अनुसंधान कर देश और दुनिया की सहायता नहीं कर सकते? अगर हमारा समुदाय इस परोपकार, जनसेवा में भाग ले रहा है तो आटे में नमक जैसा प्रतीत होता है ।
शिक्षा और ज्ञान की जुस्तजू में स्पष्ट हदीस को मद्देनजर रखना चाहिए जिस के संबंध में पैगंबर हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम कहते हैं, “जो ज्ञान प्राप्ति की तलाश के मार्ग में चला, अल्लाह उसके लिए स्वर्ग का कोई रास्ता आसान कर देंगे”। मार्ग में चलने को विद्वानों के पास जाने , सीखने के स्कूल जाने, चलने और यात्रा के शाब्दिक अर्थ में आता है।
सियासत में गिने चुने ही सियतदां भाग ले रहे हैं । नये चेहरे की बहुत अधिक कमियां हैं । क्या ही अच्छा होगा कि अपने क्षेत्र में किसी एक प्रबल दावेदार का सियासत में हिस्सा लेकर देशवासियों को बेहतरीन सेवाएं दी जा सकती हैं। क्या कृषि क्षेत्र में ऐसा योगदान नहीं दिया जा सकता कि फ़सल को रोगों से बहुत कम खर्च से बचाकर किसान भरपूर फ़सल ले सके । ऐसी कीटनाशक वस्तुओं को ईजाद किया जाए जो हर प्रकार से किसानों की प्रेमी और फसलों के लिए लाभकारी बन जाए।
आधुनिक दौर में हर एक क्षेत्र विकल्प तलाश कर रहा है, क्या इसके हम भागीदार नहीं बन सकते ? हमें मुस्लिम वैज्ञानिकों का इतिहास पढ़ना, समझना चाहिए। इन सबके लिए ज़रूरी है कि शिक्षा हमारे बीच आम हो । यही शिक्षा से हमारे उद्यम फल फूल सकेंगे । हम अर्थव्यवस्था और व्यापार के क्षेत्र में बहुत आगे बढ़ सकेंगे । फिर यह भी कि उच्च शिक्षा द्वारा न्यायपालिका, नौकरशाही, पत्रकारिता आदि में हमारा अनुपात बढ़ सकेगा अर्थात हमें अपने प्रतिशत के आधार पर 4 गुना आगे निकलने की बहुत आवश्यकता है। फिर हम देश को महत्वपूर्ण सेवाएं देने वालों में अपना नाम दर्ज करा सकेंगे।
हमें मालूम होना चाहिए कि इस साल केरल के तीन मुसलमानों को पहली बार दुनिया के अरबपतियों की सूची में शामिल किया गया है। दक्षिण एशिया के जिन पांच मुसलमानों को इस सूची में शामिल किया गया है, वे सभी हमारे देश से संबंधित हैं। इससे पता चलता है कि अगर मुसलमान कोशिश करें तो वे उद्योग और शिल्प जैसे सबसे प्रतिस्पर्धी क्षेत्रों में भी आगे बढ़ सकते हैं।
फिर एक बात यह भी कि हम में से किसी ने अगर कोई उच्च ज्ञान प्राप्त कर लिया तो उसे घमंड नहीं करना चाहिए कि वह अपने खोल में बैठ जाए और यहां तक कि किसी के सलाम का जवाब भी न दे और सलाह मांगे तो सलाह भी न दे।
आज संकल्प लें कि हम देश की आज़ादी का स्वतंत्रता सेनानियों के साथ अपना इतिहास भी पढ़ेंगे, बच्चों को पढ़ाएंगे, याद रखेंगे, याद कराएंगे, आजादी के इन आंदोलनकारियों का ज़िक्र और चर्चा अपने दोस्तों में करेंगे और उनकी आशाओं, जिज्ञासाओं पर खरा उतरने का प्रयत्न करेंगे। इस प्रकार हमें अपने संकुचित क्षेत्र से बाहर आना चाहिए । इस संकल्प से हम एक संपत्ति बनकर समाज सेवा और देश के विकास में अपना बहुमूल्य योगदान देकर सबसे ऊपर आ सकते हैं ।