जुमा की नमाज़ के बाद वैध जीविका के लिए दौड़ धूप दूसरे दिनों में भी है ज़रूरी प्रतिस्पर्धा के दौर में प्रतिष्ठित व्यवसायी हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के अनुसरण से बदल सकती है व्यापार की तस्वीरें मुस्लिम समुदाय के लिए जुमा के दिन के आदाब और आचार-डॉ एम ए रशीद, नागपुर

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जुमा की नमाज़ के बाद वैध जीविका के लिए दौड़ धूप दूसरे दिनों में भी है ज़रूरी प्रतिस्पर्धा के दौर में प्रतिष्ठित व्यवसायी हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के अनुसरण से बदल सकती है व्यापार की तस्वीरें मुस्लिम समुदाय के लिए जुमा के दिन के आदाब और आचार-डॉ एम ए रशीद, नागपुर

जुमे के दिन के अज्रो सवाब से कोई भी मुसलमान इंकार नहीं कर सकता। इसके अज्रो सवाब के लिए अल्लाह तआ़ला ने व्यापार के सिलसिले में पहले से ही हुक्म नाज़िल फ़रमा दिया है ताकि कोई ढील और सुस्ती बरतने वाले बाद में पछताएं नहीं ।अल्लाह तआ़ला पवित्र क़ुरआन की सूरह जुमा की पंक्ति क्र 10 में फ़रमाते हैं कि “जब नमाज़ मुकम्मल हो जाए तो अल्लाह तआ़ला की ज़मीन पर फ़ैल जाओ और अल्लाह की रोज़ी को तलाश करो और उसको कसरत से याद करते रहो ताकि उसमें कामयाबी पाओ”।


यह आयत जो जुमा की नमाज़ का जहां ज़िक्र कर रही है , वहीं वह जुमा की नमाज़ के बाद ज़मीन पर फैलने और जीविका के लिए दौड़ धूप करने की इजाज़त भी दे रही है। जुमे की अज़ान सुनने के बाद व्यापार छोड़ने का हुक्म देने के बाद कहा जा रहा है कि नमाज़ ख़त्म होने के बाद अपने व्यवसाय के लिए फैल जाओ और वैध अर्थात (हलाल ) तरीके से अपना व्यवसाय करो। यह भी स्वीकार करने की ज़रूरत है कि हलाल जीविका का तरीका अपनाना दूसरे दिनों पर भी लागू होता है। इस्लाम ने इबादत, जीविकापार्जन में सुस्ती, काहली और आलसीपन से मना किया है। अल्लाह का फ़ज़ल की तलाश का मतलब वैध रोज़गार और व्यवसाय से है। उस व्यवसाय पर जिसकी खरीद और बिक्री पर नमाज़ के लिए प्रतिबंध लगा दिया गया था वह प्रतिबंध उसके अदा करने के बाद हटा दिया गया और खरीद-फरोख्त की अनुमति दे दी गई ।
व्यापार , व्यवसाय के महत्व को समझते हुए इस्लामी परिपेक्ष्य में उसे सुबह जल्दी शुरू करने की जानकारी मिलती है । इस तरह उसमें बरकत और उस में कल्याण होता है। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने जो कि व्यापार से जुड़े हुए एक प्रतिष्ठित व्यवसायी थे, 25 साल की उम्र में उन्होंने सीरिया की यात्रा की थी । यह व्यापार जानी मानी व्यापारी हज़रत ख़दीजा रज़ि के वृहत स्तर के व्यापार से संबंधित था। पैग़ंबर मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इस व्यापार में ईमानदारी का ऐसा उदाहरण पेश किया था जो सभी व्यापारियों के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उनके उपदेशों से व्यापार की बिगड़ी तस्वीरें बदल सकती हैं।
अल्लाह के पैग़ंबर हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम कहते हैं कि “जो व्यापारी व्यापार में सच्चाई और अमानत को अपनाए तो वह न्याय अर्थात क़यामत के दिन अंबिया , सिद्दीक़ीन और शहीदों के साथ होगा” (सुनन , तिर्मिज़ी) । आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि “आदमी अपने कन्धे पर रस्सी डाल कर जलाऊ लकड़ियां उठाए हुए बाज़ार में बेचने के लिए ला रखे और उसी से धन दौलत कमाकर अपने ऊपर खर्च करे। यह उससे कहीं बेहतर है कि वह लोगों के सामने हाथ फैलाता फिरे वे उसे दें या न दें”।(मुसनद इमाम अहमद इब्ने हंबल)
सैय्यदना राफ़े बिन ख़दीज (रज़ि) से वर्णित है कि पैग़ंबर हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से पूछा गया कि “ऐ अल्लाह के दूत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! कौन सी कमाई सबसे ज़्यादा पाकीज़ा (शुद्ध) है? आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया मनुष्य के हाथ की कमाई और ईमानदारी वाला व्यापार”। (मुसनद अहमद)
आज के संकट भरे युग में हमारे युवाओं का एक बड़ा वर्ग तथाकथित कंपनियों की गिरफ्त में है । ऐसी कंपनियों जिनमें धोखाधड़ी पाई जाती हैं उनपर विश्वास कर व्यवसाय और व्यापार नहीं किया जा सकता । इनके व्यवसाय से होने वाली आमदनी , धन दौलत उन कंपनियों के मालिकों के पास चली जाती हैं, उसके सदस्यों और मेहनत करने वालों को मृगतृष्णा और धोखाधड़ी के शिकार हो जाते हैं। इस तरह के व्यवसाय से स्वयं और ग्राहकों को बचने और बचाने के लिए चौकन्ना रहने की आवश्यकता है। साफ सुथरे व्यापार और व्यवसाय पर ध्यान देना चाहिए। व्यापार में एक व्यापारी को किस तरह के आचार व्यवहार बरतने चाहिए इसे हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की हदीसों से समझने की ज़रूरत है। एक बार अल्लाह के दूत (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) अनाज के ढेर के पास से गुज़रे, आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने अपना हाथ मुबारक उस ढेर में डाला तो उंगलियों पर कुछ गीलापन महसूस हुआ। आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने अनाज वाले से कहा यह क्या है? दुकानदार ने कहा: ऐ अल्लाह के दूत! इस ढेर पर बारिश हो गई थी। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया फिर आपने गीले अनाज को ऊपर क्यों नहीं रख दिया कि लोग इसे देख लेते, जो व्यक्ति धोखा दे , उसका मुझ से कोई संबंध नहीं” । (सहीह मुस्लिम )
हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि ख़रीदने और बेचने वाले यदि सच्चाई से काम लें और मामले को स्पष्ट कर दें तो उनके ख़रीद और बेचने (क्रय विक्रय) में बरकत दी जाती है, यदि कोई बात छिपा लें और झूठ बोलें तो उनके व्यापार से बरकत उठा ली जाती है”। (सहीह बुख़ारी )
आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया “अल्लाह उस व्यक्ति पर दया फ़रमाता है जो खरीदने-बेचने और तक़ाज़ा करने में नम्रता और ख़ुश अख़्लाक़ी ( प्रसन्नचित्त) व्यवहार से काम लेता है” (सहीह बुखारी)।
हम जानते हैं कि मुसलमान पूरी दुनिया में फैले हुए हैं, लाखों मस्जिदें हैं जहां नमाज़े अदा की जाती हैं और क़ुरआन पढ़ा जाता है। हर साल लाखों मुसलमान हज और उमरा करते हैं और बड़े से बड़े धार्मिक आयोजन होते हैं तो फिर आश्चर्य की बात मुसलमान पीछे क्यों रह गए? क़ुरआन हमें बताता है कि पहली क़ौमें कम तौलने, बुरे व्यवहार, गरीबों के साथ दुर्व्यवहार, ज्ञान और धन का उपयोग आम लोगों की भलाई के लिए व्यवहार में न लाने, सामाजिक दोष और अल्लाह के दूतों की अवज्ञा के कारण तबाह और बरबाद हो गए थीं।
जब मुसलमानों ने अपने पैग़ंबर हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के संदेशों को दिल व जान से स्वीकार कर लिया था तो दुनिया उनके सामने नतमस्तक हो गई थी। तत्पश्चात उनके बीच मतभेद हो गए और राजवंशीय शासनों ने लोगों की स्वतंत्रता और अदालतों की शक्तियों को समाप्त कर दिया। मुसलमान सर
शासन के लिए आपस में लड़ने लगे और उनमें में फिरक़े बनने लगे । इस्लाम , धर्म न रहकर सीमित धर्म बन कर रह गया जो केवल मस्जिदों में देखा जा सकता था, शासक वर्ग सत्ता में डूबा रहा और इस्लाम के सब कुछ व्यवस्थित सिद्धांत छिन्न-भिन्न हो कर रह गए।
हमें मालूम होना चाहिए कि क़ुरआन बार-बार चिंतन और शोध पर ज़ोर देता है , ब्रह्मांड का ज्ञान हासिल करने के लिए प्रोत्साहित करता है । उसकी इस शिक्षा को त्यागकर बिना समझे क़ुरआन पढ़ने की रस्म निभाई जाने लगी। जबकि क़ुरआन की शिक्षा सिर्फ़ धार्मिक ज़िंदगी तक ही सीमित न रह कर वह लाभकारी ज्ञान को प्राप्त करने पर भी हिदायत देता है। उसे भी भुला दिया गया। फिर धर्मगुरु भी अपनी ज़िम्मेदारियां भूल गए । अल्लाह के प्रति सच्ची आज्ञाकारिता के बजाय औपचारिकताएं ही रह गईं। उसका नतीजा आज हमारे सामने है। इस तरह के इंसानों के दिल सांसारिक सुखों में खो कर आख़िरत को भुला बैठा हैं, उनके दिल बीमार हो गए हैं। बीमार दिल के लोग नश्वर वस्तुओं को अन्य वस्तुओं की तुलना में अधिक तरजीह देने लगते हैं। उन्हें इस दुनिया का घर , सुख सुविधाएं तो अच्छी लगती हैं, किन्तु वे परलोक अर्थात आख़िरत के घर बनाने की चिन्ता नहीं करते। वे इस दुनिया में सम्मान चाहते हैं, परन्तु परलोक (आख़िरत) में सम्मान या अपमान की चिंता नहीं करते ।
व्यवसाय हो कि व्यापार कहीं झूठ और कहीं फरेब का जाल दिखाई देता है, नापतौल में कमी और मिलावट कर इंसान की जान से खिलवाड़ होता हैं । इन व्यवसायियों को आख़िरत की सज़ा से बचने की भी कोई परवाह नहीं होती । बार बार के इस प्रकार के करतूतों से उनके दिल कठोर हो जाते हैं , उनके दिल मुर्दा हो जाते हैं। मुर्दा दिलों की चाहत सिर्फ लोगों तक संबंध बनाए रखने तक सीमित रहती है । लेकिन वे अल्लाह तआला से रिश्ता जोड़ने और मिलने की चाहत नहीं करते। मुर्दा दिल लोग अल्लाह महान की याद से डरते हैं , इबादत के बहाने बनाते हैं। उनका तस्बीह, ज़िक्र और ध्यान करने में मन नहीं लगता । उन्हें मस्जिद में बैठना बोझ लगता है। वे न तो जुमे में समय की पाबंदी करते हैं और न ही अन्य धार्मिक उसूलों पर चलते हैं। वे लोगों के साथ बैठकर ही खुश होते हैं ।
आज के प्रतिस्पर्धा दौर में मुस्लिम समुदाय को अपने मुर्दा दिलों को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है। उन्हें क़ुरआन को पढ़ने , उस पर चिंतन मनन करने और हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की शिक्षाओं के अनुसार व्यवसाय में नई क्रान्ति लाने की ज़रूरत है, जिससे कि हराम , मिलावटी वस्तुएं बाज़ार से स्वत: ही निकल जाएं । व्यापारियों को शुद्ध अर्थात हलाल वस्तुएं जो गुणवत्ता से भरपूर और सस्ती हों ऐसे उत्पाद और सामग्रियों को बाज़ार में लाने की कोशिश करना चाहिए। इन वस्तुओं की पहुंच आम और गरीबों तक इस प्रकार से होनी चाहिए जिससे कि हर कोई उसकी प्रतीक्षा में आंख लगाए बैठा है ।