नागपुर : बजट बनाकर ज़िंदगी गुज़ारने के बहुत सारे फायदे हैं । एक कंपनी की तरह घर का बजट बनना चाहिए , यह मनी मैनेजमेंट करने का बहुत अच्छा तरीका है। इस बारे में के घर के सभी अफराद को सोच समझकर ख़र्च पर तवज्जो देना चाहिए । आमदनी से ज्यादा खर्च फ़िज़ूलख़र्ची , जहालत और बेवकूफ़ी की निशानी है। आमदनी से ज़्यादा ख़र्च पर बचाव करना बहुत जरूरी है। वरना बात आती है कि इतनी आमदनी में गुज़ारा नहीं होता, आमदनी पूरी नहीं पड़़ती, हाथ तंग हो गये हैं, उधारी देना बाकी है । इस तरह की बातें अक्सर सुनने में आती रहती हैं। किसी की आमदनी ही इतनी कम होती है कि वह अपना ख़र्च कितना ही कम कर ले उनकी जिंदगी की बुनियादी ज़रूरतें पूरी नहीं हो पाती। किसी बेचारे की ग़ुरबत का यह हाल होता है कि बढ़ी मुश्किल से उसके दिन रात गुज़रते हैं। सफ़ेद पोश इंसान तो अपनी जिंदगी तो भूखे रहकर गुजारते हैं । इस से हटकर कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो कमाई तो बहुत करते हैं लेकिन खर्च करना नहीं जानते ! ऐसे खर्च में बेलगाम लोग बाद में बहुत पछताते हैं । इसलिए बेहतर है बुनियादी खर्चों को नोट कर आमदनी और खर्च में संतुलन बनाया जाए। मुस्लिम समुदाय के लिए ज़िंदगी के आदाब और आचार में यह दीने इस्लाम का बेहतरीन तरीक़ा है। इससे सद्का करने में आसानी होती है। ख़र्च के बारे में ख़ानदान के हर एक फ़र्द की तरबियत होना चाहिए। यह कामयाबी के उसूलों है में से एक उसूल है। इस पर हर माह पूरी फ़ैमिली के साथ एक जायज़ा मीटिंग भी होना चाहिए।
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इस पूरे मामले में ख़ातूने ख़ाना अर्थात गृहिणियों की भूमिकाएं बहुत महत्वपूर्ण होती हैं । इसलिए एक मुसलमान को इस बात से पूरी तरह जानकार होना चाहिए कि इस्लाम जीवन में एतिदाल , संतुलन पैदा करने और अर्थव्यवस्था में संयम अपनाने का आदेश देता है । उसका पवित्र क़ुरआन की सूरह अंआ़म की 141 पंक्ति में अल्लाह तआ़ला का इरशाद से कहता है कि “और फिजूलखर्ची मत करो अल्लाह फिजूलखर्ची करने वालों को पसन्द नहीं करता” । आगे और पवित्र क़ुरआन की सूरह बनी इसराईल की पंक्ति क्र 26,27 में अल्लाह तआ़ला इरशाद फ़रमाते हैं कि “और फिजूलखर्ची अर्थात अपव्यय मत करो। अपव्यय करने वाले शैतान के भाई हैं।” संतुलित जीवन और ऐतिदाल का तक़ाज़ा है कि किसी भी मुसलमान को ऋण , क़र्ज़ की ज़रूरत न आने पाए। इसलिए पवित्र क़ुरआन ने इन आफ़ात से बचने बचाने के लिए ईमान वालों से अल्लाह की राह में ख़र्च करने की मांग की है कि वह अल्लाह की दी हुई संपत्ति में से कुछ ख़र्च करें। इस प्रकार जो कोई अपनी आमदनी में से एक भाग संपत्ति ख़र्च करेगा तो शायद वह कभी मोहताजी की ज़िंदगी नहीं गुज़ार सकेगा । यह बात हक़ीक़त से सामने दिखाई देती है कि जब कोई व्यक्ति मोहताजी की ज़िंदगी गुज़ारने पर मजबूर हो जाता है तो फिर गुज़र बसर के लिए क़र्ज़ की तलाश में निकल पड़ता है। लेकिन बड़ी मुश्किल से उसे बिना ब्याज के क़र्ज़ मिलता है और फिर अदायगी की फ़िक्र में उसकी नींद हराम हो जाती है। बिना सूद वाला क़र्ज़ हो कि सूदी अर्थात ब्याज वाला क़र्ज़ वह उसके गले का फंदा बन जाता है, कितनी ही कोशिशें की जाएं वह अदा नहीं होता। अक्सर क़र्ज़दार ख़ुदकुशी कर अपनी ज़िंदगी को और मुश्किल में डाल देते हैं। जबकि उन्हें मालूम होना चाहिए कि ख़ुदकुशी , आत्महत्या इस्लाम में नाजाइज़ और हराम अमल है। इसलिए संतुलित जीवन का तक़ाज़ा है कि कभी भी किसी भी मुसलमान को क़र्ज़ लेने की आवश्यकता ही नहीं पड़ना चाहिए। हमारे जीवन शैली के रहनुमा प्यारे हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने क़र्ज़ को नापसंद फ़रमाया है क्योंकि क़र्ज़ , ऋण दिन-रात की परेशानियों का कारण बन जाता है। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम क़र्ज़ अर्थात ऋण से पनाह मांगा करते थे। इस संबंध में प्रसिद्ध बुख़ारी हदीस ग्रंथ में है कि आप सअ़व नमाज़ में अक्सर यह दुआ मांगा करते थे कि “ऐ अल्लाह मैं तेरी पनाह मांगता हूं गुनाह और कर्ज़ से। किसी ने पूछा, ऐ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम, क्या बात है आप सअ़व अक्सर कर्ज़ से पनाह मांगते हैं ? फ़रमाया, आदमी जब क़र्ज़ में डूब जाता है तो उसका हाल यह हो जाता है कि जब बात करता है तो झूठ बोलता है और जब वादा करता है तो उसे तोड़ देता है”। ज़िन्दगी में जब कभी क़र्ज़दार की मौत हो जाए हो तो उसके जनाज़े के मामले में एक हदीस बहुत मायने रखती है। हज़रत सलमा बिन अकवाअ़ रज़ि से रिवायत है कि हम पैग़ंबर हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास बैठे हुए थे, उस समय एक जनाज़ा (अंतिम संस्कार) लाया गया लोगों ने अर्ज़ किया इस पर नमाज़ पढ़ दीजिए। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया इस पर कोई क़र्ज़ है? आदर्श साथियों ने कहा नहीं। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उस पर नमाज़ पढ़ी। फिर एक दूसरा जनाज़ा लाया गया। लोगों ने अर्ज़ किया ऐ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इस पर नमाज़ पढ़ दीजिए । आप सअ़व ने फ़रमाया क्या इस पर कोई क़र्ज़ है? लोगों ने उत्तर दिया हां ! आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया उसने कोई चीज छोड़ी है? लोगों ने कहा तीन दीनार, तो आप सअ़व ने उसकी नमाज़ पढ़ी। फिर एक तीसरा जनाज़ा लाया गया और लोगों ने कहा आप इस की नमाज़ पढ़ दीजिए, आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया इसने कोई चीज़ छोड़ी है?” लोगों ने कहा नहीं। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया इस पर क़र्ज़ है? लोगों ने कहा तीन दीनार। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया आप अपने साथी की नमाज़ पढ़ लीजिए। अबू क़तादा रज़ि ने कहा या रसूले ख़ुदा आप इसकी नमाज़ पढ़ दीजिए मैं इसके कर्ज का ज़िम्मेदार हूं, इस प्रकार आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उसकी नमाज़े जनज़ा पढ़ी। आज समाज में क़र्ज़, ऋण के मामलों बहुत पनप रहे हैं। “समूह लोन” ने महिलाओं के लिए बड़ी मुश्किलें खड़ी कर दी हैं । न जाने क्यों मुस्लिम समुदाय की महिलाएं भी इसमें बढ़ चढ़ कर भाग ले रही हैं। देखा जाए तो लोन कारोबार को देख परखने के बाद ही दिया जाता है । लेकिन सोचने वाली बात यह है कि ऐसी महिलाओं को लोन क्यों दिया जा रहा है जिनका कोई रोज़गार ही नहीं होता। फिर लोन लेने वाली ये महिलाएं लोन की भरपाई और अदायगी केसे करेंगी। समूह लोन से समाज सूद अर्थात ब्याज के दलदल में फंसते जा रहा है । अगर बुनियादी हक़ीक़त की बात की जाए तो ऐसी बहुत सी महिलाएं हैं जो किश्त न भर पाने की सूरत में उन्हें धमकियां मिलती हैं और ज़लील किया जाता है वे ज़हनी तौर से परेशान हो जाती हैं। आने वाले कुछ सालो में इसके भयंकर दुष्परिणाम दिखने की संभावनाएं हैं । इस समूह में कम पढ़ी लिखी ऐसी मुस्लिम महिलाएं आकर्षित हो रही हैं जिन्हें हिसाब या गणित बिल्कुल भी नही आता। इन महिलाओं को बस उधार लोन मिल रहा होता है बस वही समझ में आता है । लेकिन कब और कितना भरना है वे इस पहलू से बेख़बर रहती हैं। उनसे ब्याज कम बता कर वसूली अधिक की जाती है , कोरे स्टाम्प पेपर पर उनकी दस्तखत , हस्ताक्षर , अंगूठा ले लिया जाता है और वे बड़े धोखाधड़ी में भी फंस जाती हैं । यह क़ाबिले फ़िक्र बात है कि ऐसी ख़्वातीन लोन अदा करने के बाद भी दिन पर दिन क़र्ज़दार बनी हुई रहती हैं । जबकि “समूह लोन कंपनियां” दिनों दिन फल फूल रही हैं। इस्लामी शरीयत में ब्याज या सूद का लेन-देन हराम है। शरियत में सूद का दस्तावेज़ लिखने वाले और उसके गवाहों को भी गुनाह में हिस्सेदार ठहराया गया है। बेहतर यही होगा कि जो भी इस दलदल में फंसे जा रहा है वह तौबा, अस्तग़फ़ार कर जल्द से जल्द बाहर आ जाए । ब्याज या सूद के बारे में हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फ़रमाते हैं कि ” अल्लाह ने सूद खाने वाले, खिलाने वाले, गवाह बनने वाले और लिखने वाले सब पर लानत फ़रमाई है”। ऐसी जानकारियां आ रही हैं कि जो महिलाएं सूद, ब्याज के चंगुल में फंस जाती हैं, उस से निजात हासिल करने के लिए वे अनैतिक कार्य शैलियों में गिरफ्तार हो जाती हैं और किश्त भरने के लालच में उनका शोषण होने लगता है। गरीबों की बस्तियां ऐसी लपेट में आ रही हैं। मुस्लिम समुदाय के साथ एक बड़ी साजिश नज़र आ रही है। बहरहाल मुस्लिम महिलाओं को इस दलदल से बाहर निकालने के लिए इस विषय पर मिल्लत के ज़िम्मेदार हज़रात को अपने ब्यानों से मुस्लिम समुदाय को जागरूक करने की बहुत ज़्यादा ज़रूरत है। यहीं ज़रिया है कि मुस्लिम समुदाय में सोंच समझ पैदा होगी और वह इस दलदल से बाहर निकलने के लिए कोशिश करेगा। (क्रमशः)