वक़्फ़ क्या है, क्यों किया जाता है, मुस्लिम समुदाय को क्या करना चाहिए?———- वाइस प्रिंसिपल मुहम्मद जावेद, नागपूर वक़्फ के संबंध में हमें यह समझने की ज़रूरत है कि वक्फ़ की ऐतिहासिक स्थिति क्या है, हमारे पूर्वजों के ने इसका उपयोग किस तरह के कामों में किया था, हमसे क्या गलतियां हुईं और हमने इसका उपयोग किस लिए नहीं किया, हमें क्या करना चाहिए? हल यही है कि हमें इस पर गहन विचार करना चाहिए। प्रिय पाठकों! सबसे पहला वक़्फ़ अल्लाह के पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम के समय में किया गया था, वह बनू नसीर के एक यहूदी , मुख़्ज़िन बिन नसीर थे । इनके संबंध में कुछ रिवायतों में यह बात सामने आती है कि उन्होंने कहा था कि उहद की लड़ाई में मैं शहीद हो जाऊं तो मेरे पास जो बाग़ है, उसे मैं अल्लाह के पैग़म्बर (सअ़व ) को वक़्फ़ (समर्पित) कर दे रहा हूं और वे इसका इस्तेमाल किसी भलाई और कल्याण के कामों के लिए करें। फिर यही हुआ कि वे शहीद हो गए और फिर अल्लाह के पैगंबर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इसे लोगों के लिए वक़्फ़ / समर्पित कर दिया। हम हमेशा सुनते आ रहे हैं कि उन दिनों जब पानी की बहुत कमी थी और अरब में यहूदी का एक कुआँ था । पानी के बदले वह बहुत पैसा लिया करता था , इस कारण मुसलमान बड़ी परेशानी में थे। हज़रत उस्मान ग़नी रज़ि ने उस कुआं को खरीद लिया और उसे मुसलमानों के लिए वक़्फ़/ समर्पित कर दिया। पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहू अ़लैहि वसल्लम यह सुनकर बहुत ख़ुश हुए। उस समय का हज़रत उस्मान रज़ि का वक़्फ़/ समर्पित कुआं से आज भी लोगों को लाभ मिल रहा है। जब पवित्र क़ुरआन की सूरह आले इमरान की आयत 92 नाज़िल हुई कि “जब तक तुम अपनी प्रिय वस्तुएँ ख़र्च न करो, तब तक तुम नेकी को प्राप्त नहीं कर सकोगे। जो कुछ तुम ख़र्च करते हो, अल्लाह उसे जानता है।” तब हमने हज़रत अबु तल्हा अंसारी (रज़ियल्लाहु अन्हु) का वाक़या बहुत बार सुना है । इस आयत का तात्पर्य यह कि अल्लाह के रास्ते में (अपनी पसंदीदा) अच्छी चीज़ सदक़ा की जाए । हज़रत अम्र बिन मेमून (रह.) कहते हैं कि ‘बिर्र’ (नेकी व भलाई) से यहाँ जन्नत मुराद है यानी “जब तक तुम अपनी पसंदीदा चीज़ को अल्लाह तआला की राह में ख़र्च न करोगे, हर्गिज़ जन्नत में दाख़िल न होगे।” हज़रत अनस बिन मालिक (रज़ि) से रिवायत है कि तमाम अंसार में से हज़रत अबू तलहा (रज़ि) सबसे ज़्यादा मालदार थे। वह अपने तमाम माल और जायदाद में ‘बीरेहा’ (नामी बाग) को जो मस्जिदे नबवी (सअ़व) के सामने था, सबसे ज़्यादा पसंद करते थे। आँ हज़रत (सअ़व) भी अकसर उस बाग़ में जाया करते थे और उसके कूएँ का उम्दह मीठा पानी पिया करते थे। जब यह आयत नाज़िल हुई तो हज़रत अबू तलहा (रज़ि) ने हाज़िर होकर आप सअ़व से अर्ज़ किया कि या रसूलल्लाह (सअ़व)! अल्लाह तआला इस तरह फ़रमाता है और मेरा सबसे ज़्यादा अज़ीज़ माल यही ‘बीरेहा (नामी बाग) है। लिहाज़ा में इसको इस उम्मीद में कि जो भलाई अल्लाह तआला के पास है वही मेरे लिए जमा रहे, अल्लाह तआला की राह में सदक़ा करता हूँ, लिहाज़ा आप (सअ़व) को इख़्तियार है जिस तरह मुनासिब समझें इसको बांट दें। आप (सअ़व) ख़ुश होकर फ़रमाने लगे कि “वाह! वाह! यह बहुत ही फ़ायदेमंद माल है, इससे लोगों को बहुत फ़ायदा होगा” फिर फ़रमाया, “मेरी राय यह है कि इस बाग़ को अपने रिश्तेदारों में तक़्सीम कर दो।” हज़रत अबू तलहा (रज़ि) ने अर्ज़ किया कि “बहुत अच्छा” और फिर उसे अपने रिश्तेदारों और चचाज़ाद भाईयों में तक़्सीम कर दिया। (मुस्नद अहमद 3/141; सहीह बुखारी, सहीह मुस्लिम 998; मुअता इमाम मालिक: 2/595)तत्पश्चात अबुतल्हा रज़ि अपने बाग़ की ओर गए और बाग़ के बाहर से खड़े होकर अपनी पत्नी को आवाज़ देनी शुरू कर दी, पत्नी से कहा कि अपना सामान लेकर बाग़ से बाहर लेकर चले आओ ! मैंने इसका सौदा कर लिया है। बुखारी व मुस्लिम में आया है कि एक दफ़ा हज़रत उमर (रज़ि) भी आप सअ़व की ख़िदमत में हाज़िर हुए और अर्ज किया कि या रसूलल्लाह (सअ़व)! मेरा सबसे ज़्यादा अज़ीज़ और बेहतर माल वह है जो ख़ैबर में मेरी ज़मीन का एक हिस्सा है (मैं उसको अल्लाह की राह में सदक़ा करना चाहता हूं) फ़रमाइए क्या करूं? आप (सअ़व) ने फ़रमाया कि “असल (ज़मीन) को अपने क़ब्ज़े में रखो ओर उसकी पैदावार फल वगैरह अल्लाह की राह में वक़्क़ कर दो।” (सहीह बुखारी, किताबुल वसाया बाबुल वक़्फ़ कैफ़ युक्तुब : 2772; सहीह मुस्लिम : 1632; नसाई 3633; इब्ने माजा: 2397)इस तरह के सौदे और वक़्फ़ की जाने वाली जायदादें हमारा इतिहास रही हैं। लोगों के कल्याण के लिए मुसलमानों ने हमेशा अपनी संपत्तियां और चीज़ें दान दीं और वक़्फ़ की हैं। एक समय युद्ध में सलाहुद्दीन अय्यूबी को पता चला कि फौजियों ने विरोधियों के बच्चों की घेराबंदी कर ली है। समस्या के फलस्वरूप बच्चों को दूध नहीं मिल पा रहा था , बच्चे दूध से तड़प रहे थे। सलाहुद्दीन अयूबी ने बड़े-बड़े परनाले बनवाए और दूध में चीनी मिलवाकर परनाले के माध्यम से दूध उन तक पहुंचाया। इसके लिए एक समय निर्धारित किया गया था कि दूध वहां तक पहुंच सके । हमारे पास समाज सेवा का एक बहुत बड़ा और अद्भुत इतिहास है। मुस्लिम समुदाय में ऐसे बहुत से लोग अवश्य रहे हैं जिन की सेवाओं ने हमेशा अपने दुश्मनों हों कि दोस्त , अपने देश और क़ौम सब के लिए सेवा और दान के मौके को हाथ से जाने नहीं दिया। हम कह सकते हैं कि मुसलमानों ने इतिहास में समाज सेवा और लोगों की सेवा का जो मॉडल पेश किया है दुनिया में इससे बेहतर कोई मॉडल नहीं मिलता। लेकिन हमने इस माॅडल को समझा ही नहीं । न ही हमने इसे उस तरह से देखा ही नहीं, इसलिए वह हमारी समझ में आता भी नहीं कि वक्फ़ क्या है, इससे क्या किया गया, क्या किया जा सकता है! यह किन कार्यों के लिए समर्पित है, इसका उपयोग किन कार्यों के लिए किया जाता था और किया जाना चाहिए । इसलिए आवश्यक जान पड़ता है कि इसे हम समझें । हमें वक़्फ़ की संपत्ति के उपयोग पर ध्यान देना चाहिए। प्राचीन काल से ही लोग अस्पतालों में डॉक्टरों की खुशमिजाज़ी , सुशीलता की ट्रेनिंग के लिए अपने माल को वक़्फ़ किया। इस संबंध में यह आश्चर्य की बात है कि सन् 1545 ई. में अज़ीज़ुद्दीन सलाम द्वारा यह वक़्फ़ किया गया था। इसके साथ यह वास्तविकता थी कि मुस्लिम समुदाय को दान और वक़्फ़ की जाने वाली संपत्ति के विभिन्न मद बताए जाते थे। इस तरह किसने, कहां और क्या वक़्फ़/ समर्पित किया? इसका पूरा इतिहास मौजूद है। चिकित्सा के क्षेत्र में अनुसंधान के लिए भी वक़्फ़ का रिकॉर्ड मिलता । इस्तांबुल में 1540 के आसपास एक व्यक्ति ने अपनी संपत्ति को इसलिए वक़्फ़ किया ताकि चिकित्सा के क्षेत्र में अनुसंधान हो सके और उस अनुसंधान के माध्यम से लोगों को लाभ पहुंचा सके। वक़्फ़ की भूमि से जो धन आता था, उसका उपयोग शिक्षकों की नियुक्ति करने के लिए किया गया। गर्मियों में लोगों को ठंडा पानी उपलब्ध कराने के लिए लोग संपत्ति को वक़्फ़ किया करते थे । गर्भावस्था के दौरान ग़रीब महिलाओं को स्वस्थ भोजन उपलब्ध कराने के लिए भी वक़्फ़ की रकम दी जाती रही। गरीबों को स्वास्थ्यवर्धक फल और मेवे उपलब्ध कराने के लिए वक़्फ़ की संपत्ति का उपयोग हुआ ।इन सेवाओं का रिकॉर्ड में समाहित रखा जाता रहा कि कोई अन्य इन्हीं मदों में अपनी संपत्ति को दोबारा वक़्फ़ न कर सके। इसलिए ये सारे काम एक दूसरे से ओवरलैप नहीं होते थे । वक़्फ़ की संपत्ति का उपयोग कैदियों को अच्छा भोजन उपलब्ध कराने के लिए किया जाता रहा । यह पढ़ कर अवश्य ही आश्चर्य होगा कि विद्यार्थियों को छुट्टियों के दौरान खर्च के लिए पैसे दिए जाते। उस समय लोगों की ऐसी सोच प्रशंसनीय है। लोगों ने इतनी सूक्ष्म बातों पर ध्यान देकर अपनी चीजें वक़्फ़/ समर्पित कीं। उन्होंने दुनिया के सामने एक ऐसा मॉडल प्रस्तुत किया जिसका तात्पर्य एक अलग स्वरूप वाली सामाजिक सेवा से है।पहले जो वैज्ञानिक शोध हुआ करते थे, उन्हें और विज्ञान की पुस्तकों को प्रकाशित कराने के लिए इसी वक़्फ़ की संपत्ति का उपयोग किया जाता रहा। इस संबंध में इब्न सीना का नाम बहुत प्रसिद्ध है। ऐसे बहुत से शोधकर्ताओं को नियमित वेतन भी इसी वक़्फ़ प्रापर्टी में से दिया जाता था। जरूरतमंदों का टैक्स चुकाने के लिए वक्फ की संपत्ति का इस्तेमाल होता था। यही धन संपत्ति का उपयोग किसी कारणवश घाटे में चल रहे व्यापारियों को दिया जाता ताकि वे अपने पैरों पर खड़े हो सकें । सड़कों और पुलों की मरम्मत के लिए झीलों और तालाबों की सफाई के लिए वक़्फ़ की निधि से धन दिया गया। कल्पना कीजिए कि इस्लाम का दृष्टिकोण कितना बड़ा है। हमें वक़्फ़ या दान करने वालों की सकारात्मक मानसिकता पर ध्यान देना चाहिए कि उन्होंने क्या क्या सोच समझ कर और आख़िरत में उसका सर्वोत्तम लाभ पाने के लिए धन दौलत का वक़्फ़ किया। पुस्तकों में यह भी वर्णिंत है कि प्रवासी पक्षियों के लिए भी वक़्फ़ प्रापर्टी से धन खर्च किए जाते रहे । घरों और सड़कों का कचरा हटाने के लिए कुशल व्यवस्था की गई । इसी वक़्फ़ प्रापर्टी से “सराय” में यात्रियों को भोजन और चिकित्सा की व्यवस्था की गई।यात्रियों के वाहन में कोई समस्या होती या उनमें का कोई बीमार होता तो उनके इलाज, भोजन आदि के लिए इसी वक़्फ़ प्रापर्टी की राशि खर्च की जाती । लोगों के क़र्ज़ चुकाए जाते । बूढ़े जानवरों को एक स्थान पर इकट्ठा किया जाता था और उनके भोजन के लिए वक़्फ़ से धन खर्च किया जाता था। शहर के सौन्दर्यीकरण, वृक्षारोपण और फव्वारे लगाने के लिए भी वक़्फ़ निधि से धन खर्च किया जाता । लोगों के लिए सभी कल्याणकारी कार्यों में वक़्फ़ की संपत्ति उपयोग में लाई जाती । जहां हमारे देश के लिए यह वक़्फ़ एक आदर्श है तो वहीं विश्व के लिए भी एक बेहतरीन मॉडल और आदर्श है। हमने इस चीज़ को इस नज़रिए से नहीं देखा है, न ही हमने इसे लोगों के सामने पेश किया है। यह हमारी बहुत बड़ी लापरवाही है। कैदियों की रिहाई के बाद उनके रोजगार की चिंता वक़्फ़ प्रापर्टी से ही संभव हुआ करती थी। जिन किसानों की फसलें खराब हुआ करती थीं, उन्हें उसका मुआवजा वक़्फ़ प्रापर्टी से ही दिया गया। वक़्फ़ प्रापर्टी के उपयोग में एक पूरा मॉडल और आदर्श है। जो लोग अपना धन या अपनी संपत्ति वक़्फ़/ समर्पित करते हैं, वे ऐसा इसलिए करते हैं ताकि सभी तरह के कल्याणकारी कार्य हों सकें , अल्लाह इसका अज्र , प्रतिफल उन्हें आख़िरत में सर्वश्रेष्ठ दे सके । हम वक़्फ़ प्रापर्टी का बेहतरीन सदुपयोग कर सकते हैं कि राष्ट्र के कल्याण के लिए मुख्य कार्य किए जा सकते हैं । जहां संभव हो बड़ी बड़ी फैक्ट्रियां खोली जा सकती हैं। बहुत से शहरों में बड़े स्तर के मल्टीस्पेशलिटी अस्पताल खोले जा सकते हैं। मुस्लिम समुदाय को वक़्फ़ प्रापर्टी के अतिरिक्त बहुत से पहलुओं से अवगत होने की आवश्यकता है। यदि हम उसे समझ सकेंगे तो देशवासियों को समझने में आसानी होगी।