शांति और न्याय से ही समाज का विकास संभव-मोहम्मद राशिद ख़ान

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नागपूर – मदीना हिजरत (प्रवास ) के बाद पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहू अ़लैहि वसल्लम ने मदीना चार्टर के तहत संविधान की पृष्ठभूमि प्रस्तुत की । यह दुनिया का पहला लिखित संविधान 48 प्रावधानों पर आधारित था । शांतिपूर्ण सह अस्तित्व स्थापित करने हेतु यह संविधान मुसलमानों, यहूदियों और अन्य समुदायों से बातचीत करने पश्चात तैयार किया गया था। दस्तावेज़ ने न्याय, समानता, और आज़ादी समेत धर्म की स्वतंत्रता और सह-असतित्व के सिद्धांत के मामले में हर व्यक्ति और समुदाय की आवश्यकता को पूरा करने का प्रयास किया। फिर पहली बार एक बहु-धार्मिक समाज का जन्म हुआ। पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के नेतृत्व में स्थापित इस बहु-धार्मिक शांतिपूर्ण समाज में, हर धर्म के अनुयायियों को उनकी धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी दी गई थी और सभी विवादों को आपसी बातचीत के माध्यम से सुलझाया जाता था, किसी भी विवाद का अंतिम निर्णय पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के धन्य हाथ से होता था।ये विचार बतौर अध्यक्ष मुंबई से पधारे मोहम्मद राशिद ख़ान ने “जल्सा ए सुरतुन्नबी” में “मिसाली मुआ़शरा” विषय पर व्यक्त किए। यह कार्यक्रम जमाअ़त ए इस्लामी हिंद नागपूर वेस्ट के तत्वावधान में जाफर नगर, टीचर्स कालोनी में स्थित मर्कज़े इस्लामी हॉल में आयोजित किया गया था। उन्होंने आगे कहा कि यदि समाज की बुनियाद अमन और न्याय पर हो तो अवश्य ही वह उन्नति करेगा।

हिंसा, अत्याचारों से मुक्त होकर वह समाज सद्भाव और सद्गुणों से ओतप्रोत रहेगा। समाज की अवनति के मुख्य कारण अशिक्षा , ब्याज का लेन-देन है , जबकि गरीबी दूर करने का सर्वोत्तम साधन ज़कात और दान पुण्य है। इसी प्रकार मीरास के बंटवारे पर हमें सावधान रहना चाहिए, इसमें लाख कुछ भी हो जाए बहनों को उनका हक़ दिया जाना चाहिए।

इस बाबत मस्जिदों को केंद्रीय हैसियत मिलना चाहिए। जमिअ़तुल उल्मा नागपूर के नायब सदर मौलाना मुफ़्ती इमरान क़ासमी ने कहा कि मुस्लिम समाज में बड़ी कमज़ोरी यह है कि वे न ही क़ुरआन पढ़ना जानते हैं और न ही अपनी शरीयत समझते हैं। एक बड़ा वर्ग ऐसा है जिसने हज़रत मुहम्मद मुस्तफा सअ़व़ की जीवनी को ही नहीं पढ़ा । वे अपने आप को पैगंबर की सुन्नत की रोशनी से दूर रखना चाहते हैं जबकि ईमान वालो को क़ुरआन के मार्ग और हज़रत मुहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहू अ़लैहि वसल्लम के उपदेशों को अपनाना चाहिए। नासमझी के कारण परिवार , समाज में किसी के भी अधिकारों को पूर्ति नहीं हो पा रही है।

सलाम और मुस्कुराहट के साथ हमारा घर में आना जाना होना चाहिए और घर में आकर किसी भी प्रकार की बाहरी घटनाओं की चर्चा भी नहीं होना चाहिए जैसा कि पैगंबर मोहम्मद सल्लल्लाहू अ़लैहि वसल्लम का व्यवहार था । हमें अवैध और हराम कमाने से पूरी तरह बचना चाहिए, ऐसी क्रिया के साथ नमाज़, रोज़ा ज़कात , हज वैसा ही है जैसे शराब की बोतल पर जमज़म का लेबल। शहर अध्यक्ष ख़्वाजा इज़हार अहमद ने परिवारों की सफलताओं और एक अच्छे समाज के निर्माण पर विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि एकल और संयुक्त परिवारों में अल्लाह का डर और पारस्परिक अधिकारों की पूर्ति भी होना चाहिए। कार्यक्रम का आरंभ हाफ़िज़ रेहान ने पवित्र क़ुरआन पठन से किया , मुज़म्मिल अहमद ने हिंदी , फव्वाद हालेह ने मराठी और सा’द क़ादरी ने इंग्लिश अनुवाद किया । ख़लील अंसारी ने ना’त पढ़ी । मंच संचालन क़ारी , हाफ़िज़ शाकिरुल अकरम फ़लाही और आभार व्यक्त अशरफ़ बेलिम ने किया। यह जानकारी जेआईएच मीडिया सचिव डॉ एम ए रशीद ने दी।