इस्लाम में पड़ोसियों का स्थान, पड़ोसियों के भवन से अपने भवन को ऊंचा न उठाओ..(मुस्लिम समुदाय को पड़ोसियों के साथ अच्छे व्यवहार करने से सुखी और शांतिपूर्ण समाज की कल्पना संभव हो सकती है)-डॉ एम ए रशीद ,नागपूर

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इंसान का अपने माता-पिता, अपने बच्चों तथा करीबी रिश्तेदारों के अलावा हर समय सबसे ज़्यादा संपर्क व संबंध होता है, उनके अपने पड़ोसियों से ! पड़ोसियों से मिलना-जुलना , व्यवहार करना तथा उनके सुख-दुख में शामिल होना नित्य प्रतिदिन का काम होता है। पैग़ंबर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहू अ़लैहि वसल्लम ने पड़ोसी के रिश्ते को बहुत महत्व दिया है । उसके आदर , सम्मान और निगरानी पर ज़ोर देते हुए उसको ईमान का हिस्सा बताया है और स्वर्ग में प्रवेश के लिए एक शर्त और अल्लाह और उसके रसूल की मुहब्बत का मियार करार दिया है ।


बुख़ारी और मुस्लिम हदीस ग्रंथों में है कि हज़रत आइशा रज़ि और हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ि दोनों से रिवायत है कि हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहू अ़लैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि “जिब्रील अमीन हमेशा मुझे पड़ोसी की रियायत और मदद पर इतना ज़ोर देते रहे कि मुझे यह अनुमान होने लगा कि शायद पड़ोसियों को भी रिश्तेदारों की तरह विरासत में शरीक कर दिया जाएगा”।
इस्लाम पड़ोसियों के लिए सुख का साधन है, वह केवल इतना ही नहीं चाहता कि पड़ोसी को किसी प्रकार का कष्ट न पहुँचे, बल्कि वह यह भी चाहता है कि पड़ोसी की आर्थिक, नैतिक, हर प्रकार की सहायता की जाए और उसके साथ अत्यंत शालीनता का व्यवहार अपनाया जाए ताकि समाज का हर व्यक्ति उसके साथ अत्यंत शालीनता के साथ जीवन बिता सके । इस प्रकार नैतिक व्यवहार से पड़ोसी को यह विश्वास हो जाना चाहिए कि वह शुभचिंतक लोगों के बीच रह रहा‌ है , उनसे उसे कभी भी कोई कष्ट नहीं पहुंचेगा, वह किसी भी विपत्ति के समय उसकी सहायता के लिए जो उचित होगा वह करेंगे और वे उसके दुख दर्द में भाईयों की तरह काम आएंगे। इस मामले में इस्लाम की शिक्षाओं की महत्ता का अनुमान इन हदीसों से लगाया जा सकता है कि जिसमें अबू सईद खुज़ाई रज़ि. कहते हैं कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहू अ़लैहि वसल्लम ने तीन बार फ़रमाया कि “ख़ुदा की क़सम ! वह व्यक्ति मोमिन नहीं। ख़ुदा की क़सम ! वह व्यक्ति मोमिन नहीं। ख़ुदा की क़सम ! वह व्यक्ति मोमिन नहीं।” पूछा गया कि’कौन ?’ आप सअव ने फ़रमाया कि “वह व्यक्ति जिसके कष्टदायक कामों से उसका पड़ोसी सुरक्षित न हो। (बुख़ारी, मुस्लिम)
इस हदीस में पड़ोसी को कष्ट पहुंचाने और दुख देने को ईमान के विरुद्ध ठहराया गया है। एक अन्य हदीस में हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ि कहते हैं कि मैंने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहू अ़लैहि वसल्लम को फ़रमाते सुना कि “वह व्यक्ति मोमिन नहीं है जो स्वयं तो पेट भरकर खाए और उसका पड़ोसी उसके निकट ही भूखा पड़ा रहे।” (मिशकात, बैहक़ी)
इससे पता चलता है कि ईमान की पहचान ही यह है कि इंसान का पड़ोसी उसकी वजह से शान्ति का अनुभव करे और वह उसके दुख-दर्द और कठिनाइयों में काम आए ।
इन हदीसों से सिद्ध होता है कि मुस्लिम समुदाय को पड़ोसियों के साथ अच्छा व्यवहार करना चाहिए।इस संबंध में पवित्र क़ुरआन की सूरा निसा की पंक्ति क्र 36 में पड़ोसियों की सेवा और उनके साथ अच्छा व्यवहार करने की हिदायत दी गई है कि “नातेदार पड़ोसियों, अजनबी पड़ोसियों और पास बैठनेवालों के साथ अच्छा व्यवहार करो ।” (पवित्र कुरआन 4:36 )
इस्लाम ने पड़ोसियों के तीन प्रकार बताए हैं। एक वह जो पड़ोसी होने के साथ नातेदार भी है, दूसरा वह जो केवल पड़ोसी है और तीसरा वह जिसका संयोग से या कभी-कभी साथ हो जाता है जैसे यात्रा में, कार्यालय में, स्कूल और कालेज में, कारखाना और फ़ैक्ट्री में, व्यापार और कारोबार में। जिन लोगों के साथ इस प्रकार का साथ हो वे भी एक प्रकार के पड़ोसी हैं। पड़ोसियों के साथ अच्छे व्यवहार का महत्त्व संसार के समस्त धर्मों ने बताया है। परन्तु इस्लाम ने पड़ोसियों के साथ सद्व्यवहार ही की शिक्षा नहीं दी, बल्कि पड़ोसी होने का इतना व्यापक विचार प्रस्तुत किया है कि संसार में इसका कोई उदाहरण नहीं मिलता। उसने कहा है कि इन्सान के साथ किसी भी प्रकार का थोड़ी-बहुत देर के लिए भी साथ हो जाए तो उसका हक़ क़ायम हो जाता है। यदि यह संपर्क स्थाई हो तो उसका हक़ भी बहुत अधिक बढ़ जाता है।
तबरानी के अल मुजमल कबीर में हज़रत मुआविया रज़ि इब्न हैदा रज़ि की एक रिवायत है जिसमें पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहू अ़लैहि वसल्लम ने पड़ोसियों के अधिकारों की शिक्षा देते हुए कहा कि पड़ोसी का आप पर यह अधिकार है कि यदि पड़ोसी किसी बीमारी से पीड़ित हो जाए तो उसकी इयादत करो ( हालचाल पूछने और ढारस देने के लिए उसके पास जाना) , यदि उसकी मृत्यु हो जाए तो उसके अंतिम संस्कार (जनाज़े) में शामिल हो और यदि किसी आवश्यकता आदि से क़र्ज़ मांगे उसको क़र्ज़ दो और यदि कोई बुरा काम कर बैठे तो उसके दोष छुपाओ और यदि उसको कोई नेमत (ईश्वरीय दान , उपहार) मिले तो उसे बधाई दो यदि किसी विपत्ति से ग्रस्त हो जाए तो सांत्वना व्यक्त करो और अपने भवन को उसके भवन से इतना ऊंचा न उठाओ कि उसके घर की हवा अवरुद्ध हो जाए और तुम्हारे हांडी ( पकवान) की ख़ुशबू उसके लिए कष्ट का कारण बन जाए और उसमें से थोड़ी सी करी उसे भी भेज दो यानी अगर घर में कुछ स्वादिष्ट और ज़ायकेदार व्यंजन बने उस स्थिति में या तो उसके घर भी थोड़ी सी करी पहुंचवाओ या फिर उसकी महक , ख़ुशबू पड़ोस के घर तक न जाए।
इस संबंध में हम सभी को अर्थात मुस्लिम समुदाय को अपनी सोच और विचार का दायरा बढ़ाना चाहिए । अपने दिल और दिमाग से उन विभिन्न बातें और हिदायतों पर ध्यान दे कर अमल करना चाहिए जिन्हें पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहू अ़लैहि वसल्लम ने फ़रमाया है। आप सअव ने कितनी सूक्ष्मता से पड़ोस में रहने वाले लोगों को पड़ोसियों के घर की दीवार से अपने घर की दीवार इतनी ऊंची करने की चेतावनी दी है कि उससे कहीं पड़ोसी की हवा बंद न हो जाए । वर्तमान समय में ऊंचे भवन और इमारतें सूर्य प्रकाश में रुकावट पैदा कर रहे हैं । आज इन बातों की घोर अनियमितताएं बरती जा रही हैं कि लोगों को सुबह का सूर्य प्रकाश भी नसीब नहीं हो पा रहा है ।
ऊंची इमारतों से मकान मेरा घिर गया ,
कुछ लोग मेरे हिस्से का सूरज भी खा गए ।
जब कभी हमारे घरों में उत्तम स्वादिष्ट भोजन बनता है तो उसकी ख़ुशबू से पड़ोसी और उनके बच्चों के मन में चाहत पैदा हो जाएगी, जो श पीड़ा का कारण बनती है। मुस्लिम समुदाय को चाहिए कि ऐसी दशाओं में सहृदय उन तक व्यंजन पहुंचाने की व्यवस्था की जानी चाहिए ताकि पड़ोसियों के हक भलीभांति अदा हो सकें ।
पैग़ंबर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहू अ़लैहि वसल्लम की इन शिक्षाओं और निर्देशों से हम समझ सकते हैं कि पड़ोसियों के प्रति अच्छे व्यवहारों का क्या स्थान और मर्तबा है। लेकिन आश्चर्य कि हम मुस्लिम समुदाय पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहू अ़लैहि वसल्लम का दम भरनेवाले , हमारी ज़िन्दगी , व्यवहार और हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहू अ़लैहि वसल्लम के आदेशों में इतना अंतर आ गया कि एक अनजान व्यक्ति के लिए यह विश्वास करना मुश्किल है कि यह शिक्षा और मार्गदर्शन पैगंबर हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहू अ़लैहि वसल्लम ने आज से लगभग 1450 वर्ष पूर्व दी हैं।
यह विचारणीय पहलू है कि हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहू अ़लैहि वसल्लम के उपरोक्त धन्य कथनों में अपने पड़ोसियों की भूख और प्यास की समस्याओं और उनकी अन्य ज़रूरतों की चिंता किए बिना रहने वालों के लिए कितनी सख़्त धमकी सुनाई है। यदि मुस्लिम समुदाय इन पहलुओं को अमली जामा पहनाएं तो अल्लाह ईश्वर की इच्छा से दुनिया जिस सुखी और शांतिपूर्ण समाज की कल्पना और तलाश कर रही है, वह सब कुछ संभव हो जाएगा।