आदरणीय अबू बकर रज़ि इस्लामी जगत के सुपरहिट हीरो नंबर 1(“छोटे शासनकाल में किए दिल मोह लेने वाले काम” )”मुस्लिम समुदाय को दिल खोलकर कर भूखों , कर्ज़दारों और परेशान हाल लोगों की सहायता करना चाहिए”-डॉ एम ए रशीद,नागपूर

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इस्लामी जगत के सुपरहिट हीरो नंबर 1 में आदरणीय अबू बकर सिद्दीक़ रज़ि का नाम आता है। उनके बारे में पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहू अ़लैहि वसल्लम ने अनमोल वचन व्यक्त किए हैं ।
(1) जो कुछ अल्लाह ने मेरे सीने में डाला, मैंने अबू बकर रज़ि के सीने में डाल दिया (रसूल सल्लल्लाहू अ़लैहि वसल्लम),
(2) अगर मैं अल्लाह के अलावा इंसानों में से किसी को अपना ख़लील (दोस्त) बनाता तो अबू बकर को बनाता (रसूल सल्लल्लाहू अ़लैहि वसल्लम) ,
(3) दूतों – पैग़म्बरों के अलावा सूरज अबू बकर रज़ि से बेहतर किसी इंसान पर तुलू व ग़ुरुब (उदय और अस्त) नहीं हुआ (रसूल सल्लल्लाहू अ़लैहि वसल्लम) ,
(4) मैंने सबके एहसानों का बदला चुका दिया है, लेकिन अबू बकर के अहसान मुझ पर बाक़ी पर हैं (रसूल सल्लल्लाहू अ़लैहि वसल्लम),
(5) उम्मते मुहम्मदिया में से अबू बकर रज़ि सबसे पहले जन्नत में प्रवेश करेंगे (रसूल सल्लल्लाहू अ़लैहि वसल्लम)।
सर विलियम म्योर (27 अप्रैल 1819 – 11 जुलाई 1905) एक स्कॉटिश ओरिएंटलिस्ट और औपनिवेशिक प्रशासक, एडिनबर्ग विश्वविद्यालय के प्रिंसिपल और ब्रिटिश भारत के उत्तर-पश्चिमी प्रांत के लेफ्टिनेंट गवर्नर थे) कहते हैं कि (6) अबू बकर रज़ि का शासनकाल छोटा था, लेकिन स्वयं हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहू अ़लैहि वसल्लम के बाद इस्लाम धर्म किसी और का इतना निषिद्ध उपकारी नहीं जितना कि अबू बकर रज़ि का है।
आदरणीय अबू बकर सिद्दीक़ रज़ि पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहू अ़लैहि वसल्लम के प्रशिक्षित, तर्बियत याफ़्ता थे , उनके शासन (ख़िलाफ़त ) के समय मुसलमानों में एकता तथा न्याय के प्रति निष्पक्षता थी। वे अल्लाह के अंतिम संदेश के प्रचारक थे। उनके दिन रात अल्लाह की इबादतों में बीतती थीं। वह विजयी क्षेत्रों के निवासियों के साथ भी न्याय और समानता का व्यवहार करते और उनका दिल जीत लेता थे। उन्होंने रोमियों और ईरानियों की भांति विजयी क्षेत्रों के निवासियों का तिरस्कार नहीं किया, न ही उन पर “कर” लादकर उनकी कमर तोड़ी, न उन्हें अपवित्र किया। वे इंसान को इंसान ही समझते थे। उनके अच्छे आचरण से लोग बहुत अधिक प्रभावित थे । वे अपने धर्म पर कायम रहने वाले लोगों की जान,माल, इज़्ज़त , आबरू की रक्षा जज़िया की बहुत छोटी राशि लेकर किया करते थे । उनकी धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला नहीं करते थे। उनके सेनापति भी सामान्य सैनिकों की भांति रहते थे । आदरणीय अबू बकर रज़ि ने उत्तराधिकारी , शासक के पद पर रहते हुए अपने छोटे से शासनकाल में बहुत से दिल मोह लेने वाले काम किए हैं।
उत्तराधिकारी आदरणीय अबू बकर सिद्दीक़ रज़ि के शासनकाल की एक दिलचस्प घटना इस प्रकार से है कि आदरणीय अबू बकर सिद्दीक रज़ि के शासनकाल के दौरान सीरिया देश से एक व्यक्ति यात्रा करते हुए आया और आपकी सेवा में हाज़िर हुआ। और निवेदन करने लगा कि आप शासक (अमीर ، ख़लीफा) हैं और मुसलमानों के प्रमुख भी हैं। निवेदन करने लगा हुज़ूर मेरे ऊपर क़र्ज़ अर्थात ऋण चढ़ गया है मेरी मदद करें । तो आप उस को अपने घर ले गए। व्यक्ति कहता है कि बाहर से दरवाज़ा , कपाट बहुत सुंदर था, लेकिन घर पर एक चारपाई भी न थी। खजूर की छाल की चटाईयां बिछी हुई थीं और वह भी फटी हुईं। वह व्यक्ति कहता है कि अबू बकर सिद्दीक रज़ि ने मुझे चटाई पर बिठा लिया और मुझे कहने लगे दोस्त एक अजीब बात न बताऊं। मैंने कहा बताएं । तो कहने लगे तीन दिनों से मैंने अनाज का एक दाना भी दाना नहीं खाया। मैं खजूर पर गुज़ारा कर लेता हूं। आज कल मेरी स्थिति कुछ ठीक नहीं है । तो वह व्यक्ति कहने लगा कि हूज़ूर मैं अब फिर क्या करूं? मैं तो बहुत दूर से आशा लगा कर आया था तो कहने लगे आप उस्माने ग़नी रज़ि के पास जाओ । वह व्यक्ति कहने लगा मुझे तो बहुत सारे पैसे चाहिए है तो आपने फ़रमाया तुम्हारी सोच वहां ख़त्म होती है जहां उस्मान ग़नी की सख़ावत यानी उदारता शुरू होती है। आप जाओ उन के पास , वह व्यक्ति कहने लगा आपका नाम लूं कि मुझे शासक अर्थात अमीरुल मोमिनीन ने भेजा है तो कहा कि उसकी ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी । सिर्फ़ इतना बताना कि मैं कर्जदार हूं और रसूल सल्लल्लाहू अ़लैहि वसल्लम का उम्मती हूं। वह व्यक्ति कहने लगा कि वे दलील, हवाला मांगेंगे , फ़रमाया उस्मान सख़ावत करते वक्त दलील या हवाले नहीं मांगते। उस्मान अल्लाह के राह में देते हुए जांच-पड़ताल नहीं करता और सख़ावत अर्थात उदारता करते समय टटोलना उस्मान की आदत नहीं । वह व्यक्ति कहता है कि मैं चला गया , पूछता पूछता दरवाज़े पर दस्तक दी, हज़रत उस्मान रज़ि की अंदर से बोलने की आवाज़ आ रही थी , अपने बच्चों को डांट रहे थे कि तुम लोग दूध के अंदर शहद मिलाकर पीते हो , ख़र्चा थोड़ा काम करो । इतना खर्चा बढ़ा दिया है दूध , मीठा शहद कोई एक इस्तेमाल कर लो , तुम कोई बीमार थोड़ी हो! व्यक्ति कहता है कि अबू बकर रज़ि तो बड़ी बातें बता रहे थे यहां तो दूध और शहद पर लड़ाई हो रही है , मुझे तो कई हज़ार दीनार चाहिए , क्या यह दे देगा? वह शख्स कहता है कि मैं अभी यह सोच ही रहा था कि अंदर से दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आई, वे बाहर आए और मैंने कहा अस्सलामु अ़लैकुम, उन्होंने सलाम का उत्तर दिया और वे समझ गए कि मैं मुसलमान हूं और संबोधित करते हुए कहने लगे, माफ़ करना, बच्चों को एक बात समझानी थी, आने में कुछ देर हो गई। उन का पहला वाक्य उनके बड़प्पन का प्रदर्शन कर रहा था । फिर दरवाज़ा खोला और उन्होंने मुझे अंदर बैठाया और मेरे लिए जो पहली चीज़ परोसी गई वह दूध में शहद डालकर दिया गया और फिर खजूर का हलवा परोसा। वह व्यक्ति कहता है कि मेरे दिल में ख़्याल आया अजीब व्यक्ति है घर वालों के साथ झगड़ा कर रहे थे एक चीज़ इस्तेमाल किया करो , मेरे लिए तीन-तीन चीज़ आ गई हैं। लेकिन मेरी कल्पना अभी जमा नहीं थी मैंने दिल में ख़्याल किया इतना तगड़ा नहीं जितना अबू बकर सिद्दीक़ रज़ि ने बताया है । वह व्यक्ति कहता है कि खिलाने पिलाने के बाद पूछने लगे कैसे आए हो? मैंने कहा कि मैं मुसलमान हूं और सीरिया देश के एक गांव का रहने वाला हूं और कुछ व्यावसायिक समस्याएं आईं तो मक़रूज़ यानी क़र्ज़दार हो गया हूं और मेरे ऊपर कर्ज़ा है और मुझे कुछ पैसों की ज़रूरत है, तो कहने लगा मैंने कुछ पैसे कहा तो उन्होंने एक आवाज़ दी तो एक गुलाम ऊंट पर सामान लदा हुआ लेकर हाज़िर हुआ । व्यक्ति कहता है कि मुझे तीन हज़ार अशर्फियां चाहिए थीं , अभी मैंने बताया नहीं था कि हज़रत उस्मान रज़ि कहने लगे कि उस ऊंट पर तुम्हारे लिए , तुम्हारे परिवार वालों के लिए मैंने कपड़े और खाने पीने का सामान और छह हज़ार अशर्फियां रखवा दी हैं और तुम पैदल आया थे अब ऊंट लेकर जाना। व्यक्ति ने कहने लगा मैंने फ़ौरन उन से कहा हुज़ूर यह ऊंट वापस करने कौन आएगा ? हज़रत उस्मान रज़ि कहने लगे वापस करने के लिए दिया ही नहीं , यह उपहार है तुम ले जाओ ।
शासक अबू बकर रज़ि और अथाह संपत्ति के मालिक आदरणीय उस्मान ग़नी रज़ि ( इस्लामी जगत के तीसरे शासक) की उपरोक्त घटनाएं मुस्लिम समुदाय के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। इसी परिपेक्ष्य में उसे चाहिए कि वह देशवासियों में हर एक संप्रदाय के परेशान हाल लोगों की दिल खोलकर सहायता करे।
आज यह चर्चा का विषय अवश्य बना हुआ है कि मुस्लिम समुदाय में तथाकथित लोग बजाय परेशान हाल लोगों की सहायता करने के मनमाने ढंग , विभिन्न तरीकों और बहानों से अपनी धन-संपत्ति को लुटा रहे हैं । इस समय वह यह भूल जाते हैं कि उनके आसपास कुछ ऐसे लोग भी हैं जो धन संपत्ति के अभाव में दो समय का खाना भी नहीं खा पाते। खाने की बर्बादी भी ऐसा की जाती है कि वह भूख से वंचित लोगों का भोजन भी नहीं बन पाती। दूसरी ओर मुस्लिम समुदाय में बहुत से तरह के व्यंजनों का फैशन बन गया है। विभिन्न आयोजनों में, होटलों और पार्कों में, यहां तक कि मेहमानों के साथ घरों या दैनिक दिनचर्या में उस प्रकार के व्यंजनों की बर्बादी एक सामान्य सी बात बन गई है। भोजन की बर्बादी आज मानवता के सामने सबसे बड़ी समस्याओं में से एक है, क्योंकि यह अनुमान लगाया गया है कि दुनिया भर में उत्पादित भोजन का एक तिहाई बर्बाद हो जाता है, इसका मतलब यह है कि पैसा, पानी, ऊर्जा, भूमि और परिवहन सब कुछ बर्बाद हो रहा है।
विदित हो कि भूख से वंचित लोग गरीबी श्रेणी में आते हैं। बेरोज़गारी के कारण गरीबी ने उन्हें इतना लाचार और मजबूर बना दिया है कि वे अपनी बुनियादी ज़रूरतें भी पूरी नहीं कर पा रहे हैं। उसकी पूर्ति के लिए उन्हें क़र्ज़ लेना पड़ रहा है। क़र्ज़ भी ऐसा कि जीवन पर्यन्त अदा नहीं होता। इन बातों पर ध्यान दिया जाए तो पवित्र क़ुरआन की सूरह बनी इजरायल की पंक्ति क्र 26 , 27 में अल्लाह का फ़रमान मिलता है कि “और नातेदार को उसका हक़ दो मुहताज और मुसाफ़िर को भी और फुज़ूलख़र्ची न करो। निश्चय ही फ़ु़ज़ूलख़र्ची करनेवाले शैतान के भाई हैं और शैतान अपने रब का बड़ा ही कृतघ्न है।”
पवित्र क़ुरआन की इस स्पष्ट आज्ञा के बावजूद अधिकांश मुस्लिम समुदाय के जानकार लोग बहुत से मामलों में लापरवाह दिखाई देते हैं । मुस्लिम समुदाय को चाहिए कि वह इंसानों को भूख की विभीषिका से बचाने का प्रयास करे। इसके लिए शहरों में विभिन्न नामों से सहायता केंद्र , रोटी बैंक या भोजनालयों के चैरिटी सेंटर खोले जाना चाहिए , जहां गरीब और भूखों को मुफ़्त खाना दिया जा सके और उनकी आर्थिक समस्याओं को दूर किया जा सके। दूसरी ओर मुस्लिम समुदाय को स्वत: फ़िज़ूलखर्ची से बचने के प्रयास पूरी तरह से करना चाहिए ताकि फ़िज़ूलखर्ची में बर्बाद होने वाला धन किसी क़र्ज़दार का क़र्ज़ा दूर करने में काम आ सके , उसी तरह जिस तरह हमारे पूर्वजों में पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहू अ़लैहि वसल्लम और उनके आदर्श साथियों ने कर दिखाया है।