नागपुर. जिंदगी में मिनटों और हर एक सकेंड की कीमत क्या होती है? रोजमर्रा की जिंदगी में शायद आपको कभी पता भी नहीं चलता होगा. पर महाराष्ट्र चुनाव में एक उम्मीदवार के लिए 2 मिनट अगले 5 साल बहुत दुख देंगे. असल में उम्मीदवार को पार्टी से टिकट भी मिला, पर उसके साथ ऐसा कुछ हुआ कि वह चुनाव नहीं लड़ पाएगे. असल में यह क्या है पूरा मामला जानने के लिए पढ़ें ये रिपोर्ट…
कांग्रेस से चार दशक पुराना नाता तोड़कर नागपुर सेंट्रल से चुनाव लड़ने का फैसला करने वाले अनीस अहमद ने मंगलवार को वंचित बहुजन आघाड़ी (VBA) से टिकट मिला. अनीस अहमद टिकट मिलने के बाद नामांकन दाखिल करने के लिए निकले लेकिन तय समय से 2 मिनट लेट हो गए. जिसके वजह से नामांकन दाखिल नहीं कर सके. इसके बाद कलेक्टरेट के बाहर हाई-वोल्टेज ड्रामा हुआ.
3 बार के विधायक समय के पाबंद
अनीस अहमद कई घंटों तक कलेक्टरेट के बाहर बैठे रहे. इस पर सवाल उठने लगे कि क्या यह जानबूझकर किया गया था? ताकि वह चुनावी दौड़ से बाहर हो सकें, क्योंकि खासकर जब तीन बार के विधायक अनीस अहमद समय की पाबंदी के लिए जाने जाते हैं. टाइम्स ऑफ इंडिया से बात करते हुए अहमद ने स्पष्ट रूप से कहा कि मेरा नामांकन रिटर्निंग ऑफिसर द्वारा स्वीकार नहीं किया गया क्योंकि मैं 3 बजे की समय सीमा से चूक गया.
8 बजे तक उम्मीदवार देते रहे धरना, पर…
महाराष्ट्र की राजनीति में पिछले पांच चुनावों के अनुभवी और दिल्ली, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस समितियों के पूर्व प्रभारी सचिव रह चुके अनीस अहमद 3 बजे की समय सीमा के कुछ ही क्षण बाद नागपुर सेंट्रल रिटर्निंग ऑफिसर के बूथ पर पहुंचे थे. बताया जा रहा है कि एनओसी, क्लीयरेंस सर्टिफिकेट लेने और नेशनलाइज बैंक अकाउंट खोलने में 2.30 बजे तक का समय लग गया. कलेक्टरेट के मेन एंट्री प्वाइंट तक पहुंचने के बावजूद, व्हीकल की एंट्री बैन के कारण मुझे घायल घुटने के साथ चलना पड़ा. बताया जा रहा है कि अहमद 8 बजे तक रिटर्निंग ऑफिसर के कैंप में रहे और उनका नामांकन स्वीकार करने की गुहार लगाते रहे.
अनीस के चुनाव न लड़ने से किसे होगा फायदा
अब, नागपुर सेंट्रल में VBA का प्रतिनिधित्व नहीं होगा और इससे अनजाने में कांग्रेस को फायदा होगा, ऐसा राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है. हालांकि अहमद ने इस बात से इनकार किया कि उन्हें कांग्रेस हाई कमान से कोई कॉल आया था जिसमें उन्हें उच्च सदन में नामांकन का आश्वासन दिया गया था, लेकिन अटकलें थीं कि यह कांग्रेस नेतृत्व को संदेश भेजने के लिए एक चतुर राजनीतिक कदम था.