जब कोई व्यक्ति एक शहर से दूसरे शहर जाता है तो उस शहर वालों से जान पहचान , पहली बार जिस तरह की बातचीत का अंदाज़ और व्यवहार करेगा वह बहुत महत्वपूर्ण होता है। उस समय की वे बातें वर्तमान समय के लिए भी बड़ी अहमियत रखती हैं । मस्जिदे जुमा में जुमा की अदायगी के बाद हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जब मरीना मुनव्वरा पहुंचे तो आप सअ़व अबु अय्यूब अंसारी रज़ि के मकान में ठहरे । उस समय मदीना मुनव्वरा के लोग ग़रीब ज़रूर थे लेकिन हर किसी की यही तमन्ना थी कि आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हमारे यहां क़ियाम फरमाएं। उनकी मेज़बानी के सम्मान पर यह बहुत ही दीप्तिमान , गौरवशाली ऐतिहासिक दिन था। सारे मदीनावासी उनके स्वागत के लिए एकत्र हो गये थे । आप सअ़व अंसार के घर या मोहल्ले से गुजरते लोग आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ऊंटनी की नकील पकड़ लेते थे और कहते थे कि ” हुज़ूर अलैहि सलातो वस्सलाम हमारी जान, हमारी धन दौलत सब आप पर क़ुरबान है।”
इस समय यदि पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने किसी एक व्यक्ति के अनुरोध को स्वीकार कर लिया होता तो बाकी लोगों का दिल टूट जाता और रहमतुललिल आलमीन को यह स्वीकार नहीं था। इसलिए पैगंबर मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम सभी को दुआ़एं देते और कहते “ऊंटनी का रास्ता छोड़ दो यह अल्लाह तआ़ला की तरफ से मामूर (नियुक्त) है।”
इस प्रकार ऊंटनी चलती रहती और वह उस स्थान पर जा कर बैठी जो एक खुला मैदान था। यहां लोग खजूरों को धूप में सुखाते थे । यह आप सअ़व के बनु नज्जार के दो अनाथ भाइयों के स्वामित्व में था। यह आप सअ़व के ननिहाल बनु नज्जार का मोहल्ला था। उसके पास ही हज़रत अबु अय्यूब अंसारी रज़ि का मकान था। स्पष्ट हो कि बाद में आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने क़ीमत चुकाकर वह ज़मीन खरीद ली थी और इसे मस्जिद के निर्माण के लिए निर्धारित कर लिया था । आज वहां मस्जिदे नबवी है। उस स्थान पर बैठी हुई ऊंटनी पर से हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तब तक नीचे नहीं उतरे थे जब तक कि ऊंटनी उठकर कुछ दूर नहीं चली गई फिर पीछे मुड़कर देखने के बाद वह पलट आई और अपनी पहली वाली जगह पर बैठ गई और हज़रत अबु अय्यूब अंसारी रज़ि की आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मेज़बानी करने का सम्मान मिला। इसी समय से सन् हिजरी का प्रारम्भ हुआ था। यहां आप सअ़व वहां सात महीने तक रहे।
इतिहास में एक घटना ऐसी आती है कि पैगंबर के जन्म से बहुत समय पहले एक महान राजा गुज़रा है जिसका नाम तुब्बा इब्न हस्सान था, वह ज़ुबूर नामी आसमानी ग्रंथ का अनुयायी और एक बहुत अच्छा नेक इंसान था। एक बार वह लगभग 250,000 लोगों को लेकर मक्का में हाज़िर हुआ और काबा की यात्रा के बाद उसने काबा पर रेशम का आवरण चढ़ाया। वापस जाते समय जब वह उस स्थान से गुज़रा जहां अब मदीना तैयबा है तब उनके साथ यात्रा कर रहे चार सौ विद्वानों ने इच्छा व्यक्त की कि हम यहां स्थायी रूप से निवास करना चाहते हैं। राजा ने इसका कारण पूछा तो उन्होंने कहा कि हमारे धार्मिक संदर्भ के अनुसार यह स्थान एक महान पैग़ंबर अहमद का विश्राम स्थल होगा। हम यहां इस लिए रहना चाहते हैं कि हमें उस पैग़म्बर का दर्शन और उनकी सेवा करने का सौभाग्य प्राप्त हो सके। नेकदिल राजा ने न केवल उन्हें अनुमति दी बल्कि सभी के लिए घर भी बनवाए और रहने की सभी आवश्यकताएं भी प्रदान कर दीं। फिर एक घर विशेष रूप से बनवाया और आने वाले पैग़म्बर के नाम एक पत्र लिखा जिसमें उसने लिखा कि मैं आप पर ईमान ला चुका हूं और यदि आप मेरे जीवन में तशरीफ़ लाए तो मैं आपकी भुजाओं की शक्ति और आप का मददगार बनूंगा। इसके बाद ये दोनों चीज़ें यानी घर और पत्र उस विद्वान को सौंप दीं जो उनमें सबसे अधिक पवित्र और तक़्वे वाला था और कहा कि “अभी तुम इस घर में रहो और यह पत्र अपने पास सुरक्षित रखो, यदि तुम्हारे जीवन में पैगम्बर प्रकट हो गए तो ये दो चीजें मेरी ओर से उन की सेवा में अर्पित कर देना वरना फिर इसे अपने बच्चों को सौंप कर वसीयत कर जाना ताकि ये दोनों चीजें पैगंबर तक पहुंच जाएं।
यह वसीयत पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलती रही और जो व्यक्ति इसके लिए जिम्मेदार और पाकदामन था, उसके वंशजों को वे चीजें हस्तांतरित होती रहीं । इस तरह काफी समय बीत गया। अब इस नेक इंसानों के वंशजों में से एक हज़रत अबू अय्यूब अंसारी इस घर के संरक्षक थे और पत्र भी उनके पास सुरक्षित था। पैग़ंबर हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सेवा में यह पत्र प्रस्तुत किया गया तो हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इस पत्र को पढ़वा कर सुना और उन चीज़ों से इतने प्रसन्न हुए कि उन्होंने तीन बार कहा, “मेरे अच्छे भाई तुब्बा का स्वागत है ।”
मदीना आने पर मदीना वासियों ने आप सरकारे दो आ़लम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम काका बड़ी गरम जोशी से इस्तकबाल किया, उनसे बडी मुहब्बत का इज़हार किया । अहलन व सहलन मरहबा जैसे शब्दों की आवाज़ें बुलंद होने लगीं । इससे तात्पर्य यह कि “आप अपने घर वालों में ही आए हैं , आपको अजनबीपन का बिल्कुल भी अहसास नहीं होगा , आप अच्छी जगह आए हैं , आपको यहां कोई सख़्ती और तंगी पेश नहीं आएगी। आपने कुशादा मुकाम हासिल किया , स्वागत, ख़ुश आमदीद ! नरहबा का मतलब खुशआमदीद “।
मदीना मुलव्वरा में अब्दुल्लाह बिन सलाम यहुदियों के बहुत बड़े आलिम थे । वे कहते है जब मुझे यह सूचना मिली तो मैं उन्हें देखने के लिए आया । जब मैं आपके सामने आया तो आपका चेहरा मुबारक देखकर फौरन मैंने कहा लोगों अल्लाह की क़सम यह किसी झूठे बंदे का नहीं बल्कि सच्चे नबी का चेहरा है।
हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मदीना वासियों से अपने पहले ख़िताब में 4 बातों पर ध्यान केंद्रित कराया। उन्हें संबोधित करते हुए कहा जो संक्षिप्त रूप से इस प्रकार से है कि”ऐ लोगों सलाम को आम करो । छोटा है वो भी सलाम करे बड़ा है वह भी सलाम करे अमीर है ग़रीब है फ़कीर है ग़नी है एक दूसरे के साथ सलाम करो और सलाम करने से आजज़ी और इन्किसारी पैदा होती हैमुहब्बत और प्यार बढ़ता है, सुन्नत पर अमल भी हो जाता है और मुफ़्त का सेवाब भी मिल जाता है।उसके बाद आप सअ़व ने फ़रमाया कि एक दूसरे को खाना खिलाओं, दोस्तों को बतौरे हदिया (गिफ्ट) ग़ुरबा , फ़ुकरा , मसाकीन को बतौरे सदका दो। तत्पश्चात कहा कि उस वक़्त नमाज़ अदा करो जिस वक़्त सब सोए हुए हों। व्याख्या करने वाले बताते हैं कि इस से मुराद तहज्जुद की नमाज़ है। अल्लाह के नबी हज़रत मोहम्मद सअ़व ने फ़रमाया मैं ज़मानत देता हूँ जो यह अमल करेगा, अल्लाह तआ़ला सलामती के साथ उसे जन्नत में दाख़िल फ़रमा देंगे।”