हर एक मुसलमान को हलाल कमाने पर तवज्जो देना चाहिए” मुस्लिम समुदाय में जो हराम खाता,पीता और पहनता है उसकी इबादत अल्लाह ईश्वर द्वारा अस्वीकार कर दी जाती है “-डॉ एम ए रशीद, नागपुर

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मुसलमान को हलाल कमाने पर तवज्जो देना चाहिए ” मुस्लिम समुदाय में जो हराम खाता , पीता और पहनता है उसकी इबादत अल्लाह ईश्वर द्वारा अस्वीकार कर दी जाती है ” —— डॉ एम ए रशीद, नागपुर मुस्लिम समुदाय के लिए संसार में इंसान का अस्तित्व उसकी मूलभूत आवश्यकताओं और इच्छाओं की पूर्ति पर निर्भर करता है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए इस्लाम में हलाल शब्द का की बड़ी अहमियत है । यह अरबी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है “वैध या अनुमेय” और इसमें न केवल भोजन और पेय शामिल हैं बल्कि दैनिक जीवन के सभी मामले शामिल हैं। मुस्लिम समुदाय को वैध (हलाल) जीविका अर्जित करने पर बहुत अधिक ज़ोर दिया गया है, जिसका समर्थन क़ुरआन और हदीस दोनों करते हैं।

इस्लाम अपने अनुयायियों को वैध तरीकों से आर्थिक समृद्धि प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित करता है। हलाल जीविका खाने से अच्छे कर्मों की प्राप्ति होती है, जबकि निषिद्ध जीविका खाने से अच्छे कर्मों की जीविका नष्ट हो जाती है। जिस प्रकार भोजन मानव शरीर और स्वास्थ्य पर प्रभाव डालता है, उसी प्रकार यह शरीर पर भी प्रभाव छोड़ता है, इसका कारण यह है कि हलाल खाने वालों के बीच रिश्तों का महत्व, सद्भावना अधिक होती हैं, इससे परिवार और फिर एक समाज मज़बूत होता है। इस्लाम जीवन की एक संपूर्ण संहिता और जीवन जीने का एक आदर्श तरीका है, वह अपने अनुयायियों को जीवन के किसी भी बिंदु पर अपनी इच्छानुसार जीवन बिताने का पूर्ण अधिकार नहीं देता है, बल्कि यह ऐसी संपूर्ण सुरक्षा है कि लोग सच्चरित्र दिखाई दें। इस्लाम जहां मुसलमानों को इबादत के सिद्धांत और उसकी पद्धति के बारे में बताता है, वहीं आजीविका कमाने के लिए सही नियम कानून भी प्रस्तुत करता है । यह महत्वपूर्ण है कि इस्लाम के सभी सदस्य ईमान के सिद्धांतों का पालन जीविका प्राप्त करें । मुसलमानों का कोई भी कार्य अल्लाह ईश्वर के सामने सम्मानित नहीं किया जाता जब तक कि उनका भोजन और पेय हलाल , वैध न हो। इस्लाम एक पवित्र धर्म है, जिस प्रकार यह मुसलमानों को बुरे व्यवहार से रोकता है, उसी प्रकार यह हराम , नाजायज़ और अवैध जीविका से परहेज करने का सख्त आदेश देता है। यही कारण है कि हराम का भोजन करने से बंदा इबादत के योग्य नहीं रह सकता। जो हराम खाता है, पीता है, पहनता है उसकी इबादत अल्लाह ईश्वर द्वारा अस्वीकार कर दी जाती है । इस्लाम धर्म जीवन की एक परिपूर्ण और संपूर्ण व्यवस्था है, इसलिए इस्लाम धर्म द्वारा दिए गए सिद्धांतों और नियमों के प्रकाश में जीविका के प्रावधान के संबंध में भी मानवता के लिए मार्गदर्शन मौजूद है। हलाल माध्यम से ही प्राप्त किया गया धन संपदा हलाल मानी जाएगी। इस्लाम ने अपने अनुयायियों को हलाल कमाने और के हराम अवैध जीविका से बचने के लिए भी प्रोत्साहित किया है। इस सिलसिले में पवित्र कुरआन 2:168 में आदेशित है कि “ऐ लोगो ! जो वस्तुएं धरती पर पाई जाती हैं, उनमें से अवर्जित (हलाल) और पवित्र वस्तुओं को खाओ और शैतान का अनुसरण न करो। वास्तव में वह तुम्हारा खुला शत्रु है।” पवित्र कुरआन 2:172 में ईमानवालों को कहा गया कि “ऐ ईमानवालो! जो पवित्र वस्तुएं हमने तुमको प्रदान की हैं, उनमें से खाओ और अल्लाह की प्रशंसा व शुक्र करो, यदि वास्तव में तुम उसी की उपासना करनेवाले हो।” पवित्र वस्तुओं के संबंध में ये खुले और स्पष्ट ईश्वरीय आदेश हैं। किन्तु आज हम इन्हें कितनी बुरी तरह ठुकरा रहे हैं? आज हम दूसरों के माल पर हाथ साफ़ करना, लूट-खसोट का धन प्राप्त करना उचित समझ रहे हैं। रसूले करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने तो इस बारे में इतना ज़ोर दिया है कि मुसलमानों को पढ़कर चकित रह जाना चाहिए। आप सअ़व पवित्र कमाई को अत्यन्त महत्व देते थे। इस विषय में आपके आदेश अनगिनत हैं। इन आदेशों का एक-एक शब्द पढ़ने के योग्य है। आप सअ़व फ़रमाते हैं कि (1) अपने हाथ से प्राप्त की हुई जीविका से अच्छी कोई जीविका नहीं है।(2) जो व्यक्ति पवित्र जीविका खाए, मेरे मार्ग पर चले और जन-साधारण को अपनी बुराइयों से सुरक्षित रखे वह स्वर्ग में जाएगा।(3) अल्लाह पवित्र धन के अतिरिक्त किसी धन को स्वीकार नहीं करता।(4) पवित्र कमाई का दान चाहे एक खजूर ही हो तो अल्लाह उसको दाएं हाथ से ग्रहण करता है और दान देनेवाले को इस प्रकार बढ़ाता है, जैसे कोई आदमी अपने बछड़े को बढ़ाता है। यहाँ तक कि वह पहाड़ के बराबर हो जाता है।(5) जो व्यक्ति अपने खाने के लिए, भीख माँगने से बचने के लिए और अपने बाल-बच्चों के पालन-पोषण के लिए और अपने पड़ोसी के साथ उपकार करने के लिए पवित्र कमाई उचित रूप से प्राप्त करे तो वह क़ियामत के दिन अल्लाह से इस अवस्था में भेंट करेगा कि उस व्यक्ति का चेहरा चौदहवीं रात के चाँद के समान चमकता होगा।(6) आप सअ़व के साथी अबू हुरैरा (रज़ि०) का बयान है कि एक बार रसूले करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मेरा हाथ पकड़कर मुझे इन पाँच बातों का उपदेश दिया कि (क) अपवित्र माल खाने से बचो। इससे तुम सबसे बड़े अल्लाह के उपासक बन जाओगे। (ख) जो अल्लाह से प्राप्त हो, उस पर सन्तुष्ट रहो। इससे तुम सबसे ज़्यादा मालदार हो जाओगे। (ग) अपने पड़ोसी के साथ सद्व्यवहार करो, तुम मोमिन हो जाओगे।(घ) दूसरे लोगों के लिए वही पसन्द करो जो तुम अपने लिए पसन्द करते हो तो तुम मुस्लिम हो जाओगे।(च) अधिक हंसा न करो; अधिक हंसना दिल को बुझा देता है। (7) जो व्यक्ति अपवित्र धन अपने घर लाएगा, वह उसके बाल-बच्चों की हानि का कारण होगा और कोई पुरुष उस हानि की पूर्ति नहीं कर सकता। यदि एक मनुष्य के अच्छे कर्म पहाड़ के बराबर होंगे तो भी उसे क़ियामत (कर्मफल) के दिन तराजू के पास ठहराकर पूछेंगे कि तूने अपने बाल-बच्चों का पालन-पोषण कहां से किया? उसकी इस बात पर पकड़ की जाएगी और उसके समस्त पुण्य-कर्म अकारथ चले जाएंगे। उस समय फ़रिश्ता आवाज़ देगा कि देखो यह वह व्यक्ति है कि उसके परिवारवाले उसके समस्त पुण्य-कर्म खा गए और यह स्वयं पकड़ लिया गया।(8) रसूले करीम (सल्ल०) ने फ़रमाया कि मुसलमान केवल इसी प्रकार सदाचारी, संयमी और धार्मिक हो सकता है जब वह उन वस्तुओं को हाथ न लगाए जिनके बारे में उसे अपवित्र होने की आशंका हो।हर एक मुसलमान को हलाल कमाने पर तवज्जो देना चाहिए ” मुस्लिम समुदाय में जो हराम खाता , पीता और पहनता है उसकी इबादत अल्लाह ईश्वर द्वारा अस्वीकार कर दी जाती है ” —— डॉ एम ए रशीद, नागपुर मुस्लिम समुदाय के लिए संसार में इंसान का अस्तित्व उसकी मूलभूत आवश्यकताओं और इच्छाओं की पूर्ति पर निर्भर करता है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए इस्लाम में हलाल शब्द का की बड़ी अहमियत है । यह अरबी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है “वैध या अनुमेय” और इसमें न केवल भोजन और पेय शामिल हैं बल्कि दैनिक जीवन के सभी मामले शामिल हैं। मुस्लिम समुदाय को वैध (हलाल) जीविका अर्जित करने पर बहुत अधिक ज़ोर दिया गया है, जिसका समर्थन क़ुरआन और हदीस दोनों करते हैं। इस्लाम अपने अनुयायियों को वैध तरीकों से आर्थिक समृद्धि प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित करता है। हलाल जीविका खाने से अच्छे कर्मों की प्राप्ति होती है, जबकि निषिद्ध जीविका खाने से अच्छे कर्मों की जीविका नष्ट हो जाती है। जिस प्रकार भोजन मानव शरीर और स्वास्थ्य पर प्रभाव डालता है, उसी प्रकार यह शरीर पर भी प्रभाव छोड़ता है, इसका कारण यह है कि हलाल खाने वालों के बीच रिश्तों का महत्व, सद्भावना अधिक होती हैं, इससे परिवार और फिर एक समाज मज़बूत होता है। इस्लाम जीवन की एक संपूर्ण संहिता और जीवन जीने का एक आदर्श तरीका है, वह अपने अनुयायियों को जीवन के किसी भी बिंदु पर अपनी इच्छानुसार जीवन बिताने का पूर्ण अधिकार नहीं देता है, बल्कि यह ऐसी संपूर्ण सुरक्षा है कि लोग सच्चरित्र दिखाई दें। इस्लाम जहां मुसलमानों को इबादत के सिद्धांत और उसकी पद्धति के बारे में बताता है, वहीं आजीविका कमाने के लिए सही नियम कानून भी प्रस्तुत करता है । यह महत्वपूर्ण है कि इस्लाम के सभी सदस्य ईमान के सिद्धांतों का पालन जीविका प्राप्त करें । मुसलमानों का कोई भी कार्य अल्लाह ईश्वर के सामने सम्मानित नहीं किया जाता जब तक कि उनका भोजन और पेय हलाल , वैध न हो। इस्लाम एक पवित्र धर्म है, जिस प्रकार यह मुसलमानों को बुरे व्यवहार से रोकता है, उसी प्रकार यह हराम , नाजायज़ और अवैध जीविका से परहेज करने का सख्त आदेश देता है। यही कारण है कि हराम का भोजन करने से बंदा इबादत के योग्य नहीं रह सकता। जो हराम खाता है, पीता है, पहनता है उसकी इबादत अल्लाह ईश्वर द्वारा अस्वीकार कर दी जाती है । इस्लाम धर्म जीवन की एक परिपूर्ण और संपूर्ण व्यवस्था है, इसलिए इस्लाम धर्म द्वारा दिए गए सिद्धांतों और नियमों के प्रकाश में जीविका के प्रावधान के संबंध में भी मानवता के लिए मार्गदर्शन मौजूद है। हलाल माध्यम से ही प्राप्त किया गया धन संपदा हलाल मानी जाएगी। इस्लाम ने अपने अनुयायियों को हलाल कमाने और के हराम अवैध जीविका से बचने के लिए भी प्रोत्साहित किया है। इस सिलसिले में पवित्र कुरआन 2:168 में आदेशित है कि “ऐ लोगो ! जो वस्तुएं धरती पर पाई जाती हैं, उनमें से अवर्जित (हलाल) और पवित्र वस्तुओं को खाओ और शैतान का अनुसरण न करो। वास्तव में वह तुम्हारा खुला शत्रु है।” पवित्र कुरआन 2:172 में ईमानवालों को कहा गया कि “ऐ ईमानवालो! जो पवित्र वस्तुएं हमने तुमको प्रदान की हैं, उनमें से खाओ और अल्लाह की प्रशंसा व शुक्र करो, यदि वास्तव में तुम उसी की उपासना करनेवाले हो।” पवित्र वस्तुओं के संबंध में ये खुले और स्पष्ट ईश्वरीय आदेश हैं। किन्तु आज हम इन्हें कितनी बुरी तरह ठुकरा रहे हैं? आज हम दूसरों के माल पर हाथ साफ़ करना, लूट-खसोट का धन प्राप्त करना उचित समझ रहे हैं। रसूले करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने तो इस बारे में इतना ज़ोर दिया है कि मुसलमानों को पढ़कर चकित रह जाना चाहिए। आप सअ़व पवित्र कमाई को अत्यन्त महत्व देते थे। इस विषय में आपके आदेश अनगिनत हैं। इन आदेशों का एक-एक शब्द पढ़ने के योग्य है। आप सअ़व फ़रमाते हैं कि (1) अपने हाथ से प्राप्त की हुई जीविका से अच्छी कोई जीविका नहीं है।(2) जो व्यक्ति पवित्र जीविका खाए, मेरे मार्ग पर चले और जन-साधारण को अपनी बुराइयों से सुरक्षित रखे वह स्वर्ग में जाएगा।(3) अल्लाह पवित्र धन के अतिरिक्त किसी धन को स्वीकार नहीं करता।(4) पवित्र कमाई का दान चाहे एक खजूर ही हो तो अल्लाह उसको दाएं हाथ से ग्रहण करता है और दान देनेवाले को इस प्रकार बढ़ाता है, जैसे कोई आदमी अपने बछड़े को बढ़ाता है। यहाँ तक कि वह पहाड़ के बराबर हो जाता है।(5) जो व्यक्ति अपने खाने के लिए, भीख माँगने से बचने के लिए और अपने बाल-बच्चों के पालन-पोषण के लिए और अपने पड़ोसी के साथ उपकार करने के लिए पवित्र कमाई उचित रूप से प्राप्त करे तो वह क़ियामत के दिन अल्लाह से इस अवस्था में भेंट करेगा कि उस व्यक्ति का चेहरा चौदहवीं रात के चाँद के समान चमकता होगा।(6) आप सअ़व के साथी अबू हुरैरा (रज़ि०) का बयान है कि एक बार रसूले करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मेरा हाथ पकड़कर मुझे इन पाँच बातों का उपदेश दिया कि (क) अपवित्र माल खाने से बचो। इससे तुम सबसे बड़े अल्लाह के उपासक बन जाओगे। (ख) जो अल्लाह से प्राप्त हो, उस पर सन्तुष्ट रहो। इससे तुम सबसे ज़्यादा मालदार हो जाओगे। (ग) अपने पड़ोसी के साथ सद्व्यवहार करो, तुम मोमिन हो जाओगे।(घ) दूसरे लोगों के लिए वही पसन्द करो जो तुम अपने लिए पसन्द करते हो तो तुम मुस्लिम हो जाओगे।(च) अधिक हंसा न करो; अधिक हंसना दिल को बुझा देता है। (7) जो व्यक्ति अपवित्र धन अपने घर लाएगा, वह उसके बाल-बच्चों की हानि का कारण होगा और कोई पुरुष उस हानि की पूर्ति नहीं कर सकता। यदि एक मनुष्य के अच्छे कर्म पहाड़ के बराबर होंगे तो भी उसे क़ियामत (कर्मफल) के दिन तराजू के पास ठहराकर पूछेंगे कि तूने अपने बाल-बच्चों का पालन-पोषण कहां से किया? उसकी इस बात पर पकड़ की जाएगी और उसके समस्त पुण्य-कर्म अकारथ चले जाएंगे। उस समय फ़रिश्ता आवाज़ देगा कि देखो यह वह व्यक्ति है कि उसके परिवारवाले उसके समस्त पुण्य-कर्म खा गए और यह स्वयं पकड़ लिया गया।(8) रसूले करीम (सल्ल०) ने फ़रमाया कि मुसलमान केवल इसी प्रकार सदाचारी, संयमी और धार्मिक हो सकता है जब वह उन वस्तुओं को हाथ न लगाए जिनके बारे में उसे अपवित्र होने की आशंका हो।

(9) रसूले करीम (सल्ल०) ने फ़रमाया- “मकानों के निर्माण में वर्जित ढंग से प्राप्त धन न लगाओ, क्योंकि वह बुराई एवं विनाश का आधार है।”(11) क़ियामत के दिन किसी मनुष्य से सर्वप्रथम उसके परिवारवाले झगड़ेंगे और कहेंगे कि ऐ अल्लाह ! इसका और हमारा न्याय कर। इसने हमको वर्जित (हराम) भोजन खिलाया। हम इस बात को नहीं जानते थे; जो बातें हमको सिखाने की थीं, वह हमको नहीं सिखाई; हम मूर्ख रह गए। इसलिए जो व्यक्ति पवित्र विरासत न पाए या पवित्र जीविका न कमाए, उसे विवाह ही न करना चाहिए, यदि वह अपने आपको व्यभिचार से सुरक्षित रख सके। जो धन अवैध तरीके से प्राप्त किया गया हो, जैसे चोरी, रिश्वतखोरी, ब्याज , गबन , हड़पना, धोखाधड़ी, उत्पीड़न और गैरकानूनी कब्जे जैसे अवैध तरीकों से प्राप्त किया गया है, वह इस दुनिया में और उसके बाद ऐसा कृत्य करने वाले के लिए क़ियामत में रुस्वा करने वाली सज़ाएं हैं। जैसे कि पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की हदीस से मालूम होता है कि जिसने किसी की ज़मीन ज़ुल्म से ले ली उसे क़ियामत के दिन सात ज़मीनों का तोक़ पहनाया जाएगा अर्थात सातों तबक़ों में उसे धंसा दिया जाएगा।इसी से जुड़ी एक हदीस पर हमें तवज्जो देना चाहिए कि हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि “अल्लाह ईश्वर फ़रमाता है कि तीन लोग ऐसे हैं (जिनका रोज़े क़ियामत मैं दुश्मन हो जाऊंगा) और मैं उनसे अच्छी तरह निपटूंगा उन में से एक वह पुरुष जिसने मेरा नाम लेकर वादा किया फिर उसने वादा पूरा न किया दूसरा वह व्यक्ति है जिसने आज़ाद पुरुष या महिला को बेचा और उसकी क़ीमत को खा गया। तीसरा वह व्यक्ति है जिसने पगार पर मज़दूर लिया उससे काम तो पूरा कराया मगर मज़दूरों पूरी नहीं दी “।