रमज़ानुल मुबारक का हर दिल अज़ीज़, रहमतों का महिना आ ही रहा है । इस महीने में अल्लाह तआ़ला की रहमत के दरवाज़े खुल जाते हैं। इसके खिलाफ़ अल्लाह तआ़ला इस महिने में जहन्नुम के दरवाज़ों को बंद कर देता है। इस महीने में अल्लाह तआ़ला अपने रोज़ेदार बंदों पर ख़ास रहमत फरमाते हैं। लेकिन कामयाबी, रहमतें , बरकतें , मग़फ़िरत उनको ही मिलती है जो इबादतों के साथ अपने हाथ अल्लाह तआ़ला के सामने फैलाते हैं। इन बातों को लेकर जामा मस्जिद मोमिनपुरा के नायब ईमाम मुफ़्ती मोहम्मद आरिफ़ ने रमज़ानुल मुबारक की बरकतों को लेकर मुस्लिम समुदाय के लिए कुछ हिदायत की बातें अर्ज़ की हैं । बता दें कि मुफ़्ती मोहम्मद आरिफ़ क़ासमी मदीनतुल उलूम, सदर में उस्ताद और दारुल इफ़्ता में विभिन्न समस्याओं पर आए पत्रों का लिखित जवाब अर्थात फ़तावा नवीसी के कार्यों को अंजाम देते हैं। आप मोमिनपुरा की जामा मस्जिद में ख़तीब भी हैं । इसके अलावा फ़ारुक़ नगर , टेका की मुहम्मदी मस्जिद, अंसार नगर की अंसार मस्जिद , सदर की बड़ी मस्जिद , बुद्दूखां का मीनारा मस्जिद में भी बयान देते हैं । आप जामा मस्जिद
में प्रतिदिन फ़जर की नमाज़ के बाद और मुहम्मदी मस्जिद में ईशा की नमाज़ के बाद क़ुरआन की व्याख्या भी करते हैं। उन्होंने इस मौके पर आगे कहा कि ऐसे बंदे जिन्होंने अपने हाथों को समेट कर इस प्रकार से बंद कर लिया कि उससे ऐसा महसूस होने लगे कि इन्हें या तो किसी चीज़ की आवश्यकता ही नहीं है मानों कि इन के पास सब कुछ मौजूद है , फिर अल्लाह तआ़ला की ओर से निर्णय यही होता है कि जैसे इन बंदों ने मुझ से दूरी को अपना लिया है मैं भी इन से बेनियाज़ हो गया हूं । उन्होंने कहा कि हमें मालूम होना चाहिए कि अल्लाह तआ़ला की ज़ात, गुण सबसे आ़ली और सर्वश्रेष्ठ हैसियत रखतै है , उसमें बहुत ग़ैरत होती है । लेकिन दुनिया परस्त लोगों में उस ग़ैरत का नज़ारा कुछ इस तरह से दिखाई देता है कि बहुत से लोग अपने आप को बहुत ग़ैरतमंद बताने लगते हैं। वे ऐसा भी दावा करते हुए दिखाई देते हैं कि हम से बड़ा कोई ग़ैरतमंद नहीं है। लेकिन हकीकत यही है अल्लाह सबसे बड़े ग़ैरतमंद वाले हैं। उस से बड़ा कोई नहीं।
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अल्लाह तआ़ला की रहमत की तलब हम सभी में होना चाहिए , बंदगी के साथ उससे अदब के साथ मांगते रहना चाहिए। अगर हम यह चाहें कि अल्लाह के सामने हाथ न फैलाएं , उस के सामने रिझाव हो कर न बैठें और अल्लाह की तरफ़ से अपने आप हम पर उसकी रहमते बरकतें बरसने लगें और ऐसे ही हमारी मग़फ़िरत भी हो जाए ! तो ऐसा होना बिल्कुल ही नामुमकिन है। ऐसे गुण वाले लोग तक़ब्बुर करने वाले होते हैं जैसे कि वह शैतान में यह पाया जाता है। लेकिन इसके बावजूद अल्लाह ने शैतान को इतनी ताक़त ज़रूर दी है कि वह कमज़ोर ईमान वालों को ज़रा ही में भटका सकता है । इंसान के अंदर जिस रफ्तार से खून गर्दिश करता है शैतान भी उस के साथ साथ चल सकता है।
आदम अलैहिस्सलाम ने अल्लाह तआ़ला से फ़रमाया था कि ऐ अल्लाह, तूने शैतान के इतनी ताक़त दी कि वह तक़ब्बुर करने वाला, नाफ़रमानी करने वाला बन कर वह हमारे ऊपर तरह-तरह से हमला आवर होगा ! तो इससे बचाव के लिए हमारे पास क्या है? अल्लाह तआ़ला ने हज़रत आदम अलैहिस्सलाम को यह ताक़त और क़ुव्वत दी और फ़रमाया देखो शैतान की मेहनत बहुत ज़्यादा होगी और इंसान दो चार लम्हो के अंदर अल्लाह के हुज़ूर दुआ करेगा , तौबा करेगा । अल्लाह तआ़ला शैतान की सारी मेहनत को ज़ाया कर देगा। लेकिन जब कोई अल्लाह की तरफ़ मुतावज्जोह होकर , उसकी ख़ुशनुदी हासिल करने के लिए नेकी के काम करेगा तो अल्लाह तआ़ला
उसकी मेहनत को ज़ाया नही करेगा। अल्लाह तआ़ला ने अगर एक तरफ़ जहाँ शैतान को ताक़त दी है तो वहीं उसने इंसान पर नवाजिशें भी कीं हैं । रमजानुल मुबारक में अल्लाह की इन नवाजिशों से शैतान की सारी मेहनतें ज़ाया हो जाती हैं। रमजानुल मुबारक का महिना जब आता है तो शैतान चिल्लाता और पुकारता है । अल्लाह तआ़ला उसकी सारी मेहनतें ज़ाया कर देते हैं।
अल्लाह तआ़ला को राज़ी करने के लिए हमने जितनी भी कोशिशें कीं और वे काम जिन के बारे में अल्लाह तआ़ला ने मना फ़रमाया उनसे रुकते रहे हैं तो अल्लाह तआ़ला उनका बेहतरीन अज्र हमें ज़रूर इनायत फ़रमाएंगे। लेकिन यहां सवाल यह है उठता है कि जिन के बारे में अल्लाह तआ़ला ने मना फ़रमाया उनसे हम नहीं रुकते और फिर रमजानुल मुबारक के महिने में रोज़ा रखने वाले को रोजा रखकर जिन कामों से रुकना चाहिए तो वह उन कामों से नहीं रुकता तब इस सिलसिले हमें संबंधित हदीसे मुबारक पर ग़ौरो फ़िक्र करना चाहिए । हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया जब “तुम में से कोई बंदा रोज़ादार हो तो उसको चाहिए कि फिस्क व फ़ुजूर वाले काम न करे”। फ़िस्क व फ़ुजूर से मतलब रोज़ा रखकर किसी को गाली देना, ग़ीबत करना, किसी को बुरा मला कहना और लड़ाई झगडे करना, झूठ बोलना, क़ीना , हसद , कपट , ईर्ष्या करना ये सारी चीज़े नफ़्स के अंदर आ जाती हैं और इन बुरे कामों का दिल में रखना, वे बातें करना जिनके ज़रिए से इंसानी शहवत बढ़ती हों ऐसी तमाम चीजें रोजों को ख़राब कर देती हैं। हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया जब तुम में से किसी का रोज़ा हो तो ऐसी सूरत में वह फिस्क फ़ुजूर वाले काम न करे। इन से ने बचने का एक और तरीक़ा आप सअ़व ने हमें बताया है कि आप सअ़व ने फ़रमाया “कि जब कोई बंदा आपको गाली दे तो उस बंदे को चाहिए कि वह उससे कहे कि मैं रोज़े से हूं”। इन बातों से ज़ाहिर होता है कि कोई रोज़ेदार को गाली दे रहा हो तो रोज़ेदार को चाहिए कि वह जवाब में उसे गाली न दे । हमें ऐसा कोई काम नहीं करना चाहिए जिससे कि हदीस मुबारक की नाफ़रमानी होती हो, उसके बताए हुए तरीके की ख़िलाफ़वर्ज़ी होती हो इस से हम सब को बचना चाहिए। हमें रमज़ानुल मुबारक के दौरान इकट्ठे हो कर बातों बातों में और जाने अनजाने में किसी की बुराई, ग़ीबत करने लगते हैं। इन सब सब से रोज़ेदार को बचना चाहिए। इस तरह ये शैतानी काम ज़ाया होते जाएंगे और अल्लाह की रहमत और माफ़िरत के हम भागीदार बन जाएंगे।