जुमे के दिन हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर कसरत से दुरूद पढ़ना बनता है नेकी का ज़रिया दुआ़ के पहले और बाद में दुरुद पढ़ना बनता है उसकी क़ुबूलियत का ज़रिया,मुस्लिम समुदाय के लिए जुमा के दिन के आदाब और आचार, डॉक्टर एम ए रशीद

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तरग़ीब व तरहीब हदीस ग्रंथ के अनुसार हज़रत अनस रज़ि ने फ़रमाया कि रसूले करीम हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर जुमा पेश किया गया, जिब्रिल अलैहिस्सलाम एक सफ़ेद शीशे की तरह अपने हाथ में लेकर आए जिसके बीच में एक सियाह नुक़्ता था , आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने जिब्रिल अलैहिस्सलाम से पूछा यह क्या है जिब्रिल अलैहिस्सलाम ने जवाब दिया कि यह जुमा मुबारक है जो कि आपके रब ने आपको अता फ़रमाया ताकि आपके लिए और आपकी उम्मत के लिए ईद हो और आप लोगों के लिए भलाई है।
इस तरह सबसे अच्छा दिन के बारे में भी जानकारी मिलती है जो कि वह मुस्लिम ग्रंथ में उपलब्ध है, उसके अनुसार पैग़ंबर हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि ” जिन दिनों में सूरज उगता है उन में सबसे अच्छा दिन जुमे का दिन है। इसी दिन आदम अलैहिस्सलाम पैदा किए गए इस दिन वे जन्नत में दाखिल हुए इस दिन उन्हें स्वर्ग (जन्नत) से निकाला गया और इसी दिन क़यामत क़ायम होगी “।


सब दिनों के अलावा जुमे के दिन दुरूद शरीफ़ को कसरत से पढ़ने की ताकीद भी प्यारे नबी हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने बताई है और हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर कसरत से दुरूद शरीफ़ पढ़ने की ताकीद मुख़तलिफ़ हदीसों में भी मिलती है। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ख़ुद लोगों को दुरूद के बारे में कहा है।
सुनन अबू दाऊद हदीस ग्रंथ के अनुसार पैग़ंबर हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि “तुम्हारे लिए सबसे अच्छा दिन जुमे का दिन है, इस में हज़रत आदम अलैहिस्सलाम का जन्म हुआ इसी दिन उनकी मृत्यु हुई इसी दिन सूर फूंका जाएगा इसलिए इस दिन कसरत के साथ मुझ पर दुरूद पढ़ा करो ,आप लोगों का दुरूद मेरे सामने पेश किया जाएगा , आदर्श
साथियों (सहाबाए किराम ) ने विनंती की या रसूल अल्लाह आपकी हड्डियाँ चूर चूर हो चुकी होगी फिर आप पर हमारा दुरूद किस तरह पेश किया जाएगा? आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया अल्लाह तआ़ला नबियों के धन्य शरीर को हर तरह की घट-बढ़ से सुरक्षित रखते हैं “।
परिवार, समाज , देश और दुनिया में शायद ही कोई मुसलमान होगा जो प्यारे नबी सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम से मोहब्बत , उल्फत और प्यार न करता हो ! हम तमाम मुसलमानों की उनसे प्यार मोहब्बत की निशानी है कि उनकी हर एक सुन्नत पर अमल करें । इस प्यार की एक निशानी प्यारे नबी हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर दुरूदो सलाम भेजना है जो सबसे ज़्यादा मक़बूल और लोकप्रिय अ़मल है। यह सुन्नते इलाहिया का दर्जा रखता है। इस संबंध में यह पैगंबर हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की अतुलनीय महिमा का प्रमाण है। वहीं इस विशेष कार्य की फ़ज़ीलत भी हसीन पैराए में उजागर होती है कि यह वह उत्कृष्ट और मुक़द्दस अ़मल है जो हमेशा के लिए शाश्वत (ला ज़वाल), अमर (ला फ़ानी) और अनन्त (तग़य्युर) के प्रभाव से सुरक्षित है।
अल्लाह तआ़ला न केवल स्वयं अपने प्रियतम और हबीब हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर दुरूद भेजते हैं, बल्कि उसने फ़रिश्तों और ईमानवालों को भी आदेश दिया है कि वे मेरे प्रियतम और हबीब को दुरूद भेजें। इस संबंध में पवित्र क़ुरआन की सूरह अहज़ाब में अल्लाह तआ़ला फ़रमाते हैं कि अल्लाह तथा उसके फ़रिश्ते दरूद भेजते हैं नबी पर। हे ईमान वालो! उनपर दरूद तथा बहुत सलाम भेजो
इस पंक्ति के विस्तार के अनुसार अल्लाह के दरूद भेजने का अर्थ यह है कि वह फ़रिश्तों के समक्ष आप की प्रशंसा भी करता है तथा आप पर अपनी दया भी भेजता है और फ़रिश्तों के दरूद भेजने का अर्थ यह है कि वे आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के लिये अल्लाह से दया की प्रार्थना करते हैं।
सह़ीह़ मुस्लिम नामी ह़दीस ग्रंथ में आता है कि आप सअव से प्रश्न किया गया कि हम सलाम तो जानते हैं पर आप पर दरूद कैसे भेजें? तो आप स अ़ व ने फ़रमाया कि यह कहो – ” ऐ अल्लाह, मोहम्मद पर और मोहम्मद के ख़ानदान पर अपना फ़ज़ल व करम फरमा, जैसा कि आपने इब्राहिम पर और इब्राहिम के ख़ानदान पर अपना फ़ज़ल व करम फरमाया, बेशक आप क़ाबिले तारीफ़ हैं, सबसे शानदार हैं। ऐ अल्लाह, मोहम्मद पर और मोहम्मद के ख़ानदान पर बरकत नाज़िल फ़रमा जैसा कि आपने इब्राहिम और इब्राहिम के ख़ानदान पर बरकत नाज़िल फ़रमाई, बेशक आप क़ाबिले तारीफ़ हैं, सबसे शानदार हैं”।( सहीह बुख़ारी)
इसी प्रकार धार्मिक एवं सांसारिक लक्ष्यों की प्राप्ति में उसकी बरकत विभिन्न रिवायतों से साबित हैं । रहमतुललिल आलमीन हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि मेरे पास अल्लाह सर्वशक्तिमान की ओर से आने वाला आया और कहा ऐ अल्लाह के दूत जो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का उम्मती मुझ पर एक बार दुरूद शरीफ़ पढ़ें उसके बदले उस उम्मती पर दस रहमतें प्रदान करता है और उस के दस स्तर ऊँचा कर देता है, उसके लिए दस अच्छे कर्म लिख देता है और दस पाप मिटा देता है। (नसाई)
जुमा जन्नत में दाख़िले का कारण बन जाता है जबकि इस हदीस पर अमल किया जाए , वह यह कि सहीह तरग़ीब व तरहीब में वर्णित है कि हज़रत अबू सईद बयान करते हैं कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सुना कि “जो शख़्स एक दिन में पांच चीजें करेगा अल्लाह उसे स्वर्ग के लोगों (जन्नतियों) में लिख देते हैं जिसने बीमार की इयादत की और जनाज़े में शामिल हुआ, रोज़ा रखा जुमा के लिए पैदल चल कर गया और किसी बन्दी को मुक्त करा दिया”।
प्यारे नबी हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि “शुक्रवार यानी कि जुमे के दिन एक मुबारक लम्हा ऐसा होता है कि जब कोई बंदा अल्लाह से जो कुछ भी मांगता है तो अल्लाह निश्चित रूप से उसे प्रदान करते हैं। आदर्श साथियों ने अर्ज़ किया या रसूल अल्लाह वह कौन-सी घड़ी है? आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया स़लाह (नमाज़) खड़ी होने से लेकर पूरी होने तक” । (सुनन इब्न माजा और तिर्मिज़ी)
सहीह बुख़ारी ग्रंथ के अनुसार अल्लाह के रसूल हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि “शुक्रवार यानी कि जुमे के दिन में एक ऐसा समय होता है कि जो मुसलमान बंदा उस समय में खड़ा होकर स़लाह (नमाज़) पढ़े और किसी चीज़ का सवाल करे तो अल्लाह तआ़ला उसे प्रदान कर देते हैं। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हाथ के इशारे से समझाया कि यह बहुत कम वक्त होता है इस वक्त से फ़ायदा उठाओ” ।
दुआ के क़ुबूलियत और स्वीकार के समय को लेकर बहुत से ज्ञानियों ने कई कहावतें बताई हैं, उनमें से दो बातें सबसे लोकप्रिय हैं जो हदीसों से प्रमाणित हैं। इन में पहला यह है कि इमाम के मिंबर पर बैठने से लेकर स़लाह (नमाज़) की समाप्ति तक। दूसरा अ़स्र के बाद का समय और इन दोनों में भी अ़स्र के बाद वाला कौन सा ज़्यादा लोकप्रिय है और विशेषताओं के साथ है वह इस हदीस मुबारक से स्पष्ट हो जाता है कि आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया जुमा का दिन बारह घड़ियों पर आधारित है , इनमें से एक घड़ी ऐसी भी है कि जो भी मुसलमान उसमें में अल्लाह सर्वशक्तिमान से सवाल कर रहा हो अल्लाह तआ़ला उसे ज़रूर प्रदान कर देते हैं उसे नमाज़े अ़स्र के बाद आखिरी घड़ी में तलाश किया करो । (अबू दाऊद)।
दूसरी ओर दुरूद शरीफ़ (जो अल्लाह के रसूल के पक्ष में सबसे ऊंची और सम्मानजनक दुआ है) वह तो अल्लाह तआ़ला निश्चित रूप से स्वीकार और क़ुबूल फ़रमाता है। फ़िर जब कोई बंदा दुआ से पहले भी और उसके बाद भी अल्लाह सर्वशक्तिमान से हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पक्ष में दुआ़ करे तो उसे पूरी आशा और उम्मीद रखनी चाहिए कि जिस दुआ़ के पहले और आखिर में हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर दुरूद भेजा जाएगा वह इन शा अल्लाह ज़रुर क़ुबूल होगी।