काग़ज़ की यह महक,यह नशा रूठने को है,यह आख़री सदी है किताबों से इश्क़ की” (मुस्लिम समुदाय के लिए किताबों के अध्ययन को लेकर लेक्चरर मोहम्मद जावेद शेख़ ने बताईं मुख्य बातें)-डॉ एम ए रशीद

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, नागपुर मोबाइल जैसी अहम वस्तु के हमारे हाथों में आ जाने से हमारा संबंध प्रायः किताबों से टूट सा गया है। किताबें ख़रीदना, पढ़ना उस का पूरा अध्ययन करना बडी भारी मुश्किल और असंभव कार्य लगने लगा है। किताबों से इश्क़ यानी उनका अध्ययन, मुताला के सिद्धांत और नियमों पर आधारित बहुत-सी बातें करते हुए लेक्चरर मोहम्मद जावेद शेख़ (एम.एससी बी.एड ) ने सूरह अज-ज़ुमर की पंक्ति क्र 9 में पवित्र क़ुरआन के संबंध से बताया कि ईश्वर अल्लाह कहता है कि”..क्या समान हो जायेंगे जो ज्ञान रखते हों तथा जो ज्ञान नहीं रखते? वास्तव में, शिक्षा ग्रहण करते हैं मतिमान लोग ही।” पवित्र क़ुरआन ने अध्ययन करने वालों का ध्यान अध्ययन और ज्ञान की ओर आकर्षित किया है। अध्ययन से ही ज्ञान प्राप्त होता है। पवित्र क़ुरआन की सुरह अलक़ की पहली पंक्ति अध्ययन की ही उद्घोषक है, जो पहली पंक्ति के रूप में अवतरित हुई थी कि “पढ़ो, अपने रब के नाम के साथ जिसने पैदा किया” । बता दें कि लेक्चरर मोहम्मद जावेद शेख़ वर्तमान में अंजुमन जूनियर कॉलेज में वाइस प्रिंसिपल हैं , यह कालेज नागपुर के सदर में स्थित है, वे 23 वर्षों का शिक्षण अनुभव रखते हैं , आप नीट कोचिंग में विशेषज्ञता के साथ शैक्षिक एवं कैरियर मार्गदर्शक भी हैं ।

इस विषय को लेकर चिंता जताते हुए उन्होंने कहा कि “काग़ज़ की यह महक , यह नशा रूठने को है , यह आख़री सदी है किताबों से इश्क़ की” । उन्होंने कहा कि मोबाइल हमारे हाथों में आने के बावजूद लोगों को पुस्तकों से प्रेम और मुहब्बत अवश्य होना चाहिए और पुस्तकों का अध्ययन भी अवश्य पूरा करना चाहिए। उन्होंने कहा कि इंसान अब पुस्तकों क मोबाईल पर पढ़ ले रहा है या फिर ऐसी कोई पुस्तक वह आडियो पर सुन ले रहा है। कुछ पुस्तकों के ऐसे आडियो पिछले 9-10 वर्षों से बहुत प्रचलित हैं। किताबों के अध्ययन की जहां तक बात है, उसके मुख्य बिंदु हमारे मस्तिष्क में बने रहते हैं। यदि हम सुनते या पढ़़ते रहें और उसके विशेष नोट्स न बनाए तो हम उसे भूल भी सकते हैं। कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं जो पढ़ते तो ज़रूर हैं लेकिन उन्हें याद नहीं रहता । इस बारे में उसका जवाब यही हो सकता है कि जब हम भोजन करते हैं तो हमें मालूम रहता है कि हमने बहुत सी चीज़ें खाईं हैं लेकिन उसके पोषक तत्व हमारे शरीर के बहुत से अंगों। को चले जाते हैं यह हमें मालूम नहीं हो पाता कि उस में से हृदय, मस्तिष्क, यकृत आदि को क्या-क्या गया !

इसी प्रकार पुस्तकों के संबंध में है कि हम जो कुछ पढ़ते हैं वह भूल जाते हैं। कारगर तरीके से पढ़ पर उसकी विशेष बातें मस्तिष्क में रहती हैं । ऐसे ही यदि हम उसे सुनते रहें तो उसके विशेष अंश भी मस्तिष्क में बने रहते हैं। वह पढ़े और सुने हुए शब्द तब हमारे मुंह से निकलते हैं जब हम बोलते हैं , यह अध्ययन का निचोड़ होता है। नोट्स बनाने पर भी ऐसे शब्द हमारे मस्तिष्क से निकलने लगते हैं , यही नोटिस के पोषक तत्व होते हैं। पुस्तकों के पढ़ने के सिद्धांतों के तहत सब से पहली बात यह है कि अध्ययन , ज्ञान विकास की हैसियत रखता है। इसके बिना हमारी सोच और फिक्र विकसित नहीं हो सकती। किसी भी कि पुस्तक के अध्ययन से पहले यह बात आवश्यकता के साथ ध्यान देने की है कि हम किसी भी पुस्तक को पढ़ने के लिए कभी भी बैठ जाएं ! ऐसा संभव नहीं होता। स्पष्ट तौर से यह करना ज़रूरी है कि दीन का अध्ययन सबसे पहले ज़रूरी है, इसमें हमें कुरआने करीम, हदीसे नबवी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का अध्ययन करना चाहिए और समय रहते यह अध्ययन पूरा भी हो जाना चाहिए। तत्पश्चात हमें किसी एक क्षेत्र की पुस्तक को अध्ययन के लिए सुनिश्चित करना चाहिए । जिसका जो भी क्षेत्र , कोई रुचिकर विषय है उसे उस पर प्राथमिकता देना चाहिए। इस्लाम में जीवन एक संपूर्ण पद्धति है । उसके संबंध में बहुत सी पुस्तकें हैं जिनका अध्ययन न केवल जीवन को बेहतर बनाएगा बल्कि अनुशासनात्मक जीवन शैली का मार्गदर्शन भी करेगा। इसमें एक कुरआन , हदीस , इतिहास , सीरते रसूल, आदर्श साथियों (सहाबा ए किराम की जीवनी) , फ़िक़ह आदि में से किसी की रुचि किसी विषय पर है तो उसे चाहिए कि वह पहले टॉपिक का चुनाव कर ले। इन में से पहले अध्ययन का क्षेत्र सुनिश्चित करना चाहिए है कि यह मेरा अध्ययन का क्षेत्र है , तत्पश्चात अध्ययनकर्ता को उसका अध्ययन करना चाहिए। इन सभी से हमें नैतिक मूल्यों और उत्तरदायित्वों का अहसास होगा। अध्ययन के संबंध में यदि कोई मोटिवेशनल के विषय पर पढ़ना चाहता है और उस से संबधित जानकारियां लोगों तक पहुंचाना चाहता है तो ज़रूरी है यह कि यह आपका क्षेत्र होगा और आप उसे बहुत रुचि से समझेंगे । किसी की राजनीति में की रुचि है तो उसे उसी से संबंधित किताबें पढ़ने का अध्ययन करना चाहिए । अर्थशास्त्र पर कोई अध्ययन करे तो रुचि के अनुसार उसके ज्ञान में बढ़ोतरी भी होगी और वह ज्ञान मस्तिष्क मे ताज़ा भी रहे‌गा। इसी प्रकार सोशोलाॅजी या सोशल समस्याओं से संबंधित कोई पुस्तक आप चुन कर अपनी मन पसंद के विषयों को लेकर ज्ञान बढ़ा सकते हैं। किताब के अध्ययन पर हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि सबसे पहले हम उसका समय निश्चित कर लें कि इस समय हम इस पुस्तक का अध्ययन करेंगे। सामान्यतः पुस्तक के अध्ययन के दो समय बहुत अच्छे होते हैं । सोने से पहले या सुबह के समय जब क़ुरआन का अध्ययन हो जाए उसके बाद का समय। यह दो समय ऐसे हैं जिनके समय अध्ययन पर बहुत सी चीज़ें याद रह जाती हैं । इसलिए पहले इनमें से कोई समय निश्चित कर लेना चाहिए अधिक पृष्ठों की पुस्तकों को विभिन्न भागों में बांट कर उसका अध्ययन करना चाहिए । अध्ययन के लिए 10 से 20 पृष्ठ हो सकते हैं । यह अध्ययन भारी नहीं लगेगा , जबकि इतने पृष्ठों की पुस्तक को देखकर दिल भरी हो जाता है कि यह असंभव कार्य है । कुछ लोग ऐसे होते हैं जो पुस्तकों के विषय को देखकर पुस्तक ज़रूर खरीद लेते हैं लेकिन उसका अध्ययन नहीं करते । कभी उस पर हाथ भी नहीं लगा कर देखते , लेकिन उसे देखकर वह यह ज़रूर ठानते हैं कि मैं इसका अध्ययन अवश्य करूंगा। जब पृष्ठों को विभाजित कर किसी पुस्तक का अध्ययन करने पर हमारे चार-पांच दिन बीत जाएंगे तो हमें विश्वास हो जाएगा कि हमने इतने पृष्ठों का पठन कर लिया है , उनसे बहुत अच्छी जानकारी प्राप्त हुई है , अब हमें इसका अध्ययन जारी रखना चाहिए और पुस्तक का पूरा अध्ययन करना चाहिए। पुस्तक के अध्ययन को लेकर सबसे पहले उसके इंडेक्स को अवश्य देख लिया जाना चाहिए कि उसमें कौन-कौन से टॉपिक हैं और पुस्तक का एक सरसरी अध्ययन कर लेना चाहिए । सरसरी अध्ययन के बारे में कुछ विरोधाभास मिलते हैं लेकिन पुस्तक का सरसरी अध्ययन आवश्यक होता है । उनमें बहुत सी चीज़ें ऐसी होती हैं जो खाने की होती हैं, स्वाद की होती है और कोई पाचन की होती हैं। समाचार पत्रों को लेकर मैं यह कहना चाहूंगा कि हम उसे याद करने के लिए नहीं पढ़ते बल्कि उसमें से हम कुछ ऐसी चीज़ें देखते हैं जो हमारे मनपसंद विषय को लेकर होती हैं , उसमें से किसी को संपादकीय अच्छा लगता है तो वह उसे पढ़ लेता है और कुछ जानकारी उसमें से नोट कर लेता है। ऐसी कुछ बातें ज़रूर है जैसे कि हम किसी टॉपिक पर लेक्चर देना चाहते हैं , लोगों को उस संबंध में बताना चाहते हैं तो ऐसे चयनित विषयों को हमें लिख लेना चाहिए और उस पर ज़रूर अध्ययन कर लेना चाहिए। बहुत से समय ऐसे होते हैं जब आडियो पुस्तकों का महत्व बढ़ जाता है। आडियो पुस्तकों के बहुतेरे बिंदू तो नहीं लेकिन कुछ बिंदु तो याद रह जाते हैं। आडियो पुस्तकों के माध्यम से हम अपने ज्ञान में बढ़ोतरी ज़रूर कर सकते हैं। बावजूद इसके पुस्तकों का अध्ययन के लिए समय अवश्य निकालना चाहिए। अध्ययन के बहुत अधिक लाभ होते हैं । इससे ज्ञान में बढ़ोत्तरी होती है । हज़रत अली रज़ि का क़ौल है कि मोमिन के दो एक जैसे दिन नहीं होते, दूसरा दिन पहले से बेहतर होता है। ज्ञान प्राप्त करते करते एक समय मा’रिफ़त अर्थात ईश्वर का ज्ञान, रहस्यवादी ज्ञान का आता है यानी इंसान को उस टापिक का अहसास होने लगता है उसमें एक बदलाव आने लगता है। वह अगर ईमान से संबंधित कोई चीज़ पढ़ रहा है जैसे ईमान के बारे में , कुरआन की कोई आयत, हदीसें या पुस्तकें पढ़ने से उसमें एक चीज़ प्रकाशवान होने लगती है कि यह बात हृदय में छा गई है। इसे ही मा’रिफ़त कहा जाता है। अध्ययन को लेकर अलग-अलग लोगों में अपने अनुभव होते हैं। अतीत में किसी लेखक ने अमुक विषय पर अपना दृष्टिकोण रखा , मध्य और वर्तमान समय में किसी ने अपना दृष्टिकोण लेखन शैली द्वारा प्रस्तुत किया तब अध्ययन कर्ता का अपना भी एक दृष्टिकोण सामने आता है।इस तरह अध्ययन कर्ता अपना दृष्टिकोण रख कर जीत प्राप्त कर सकते हैं। यह अध्ययन का बेहतरीन फायदा है । क़ायनात , ब्रह्मांड में इंसान चिंतन मंथन करने लगता है। वह अध्ययन करता है , पढ़‌ता है तो क़ायनात में भरोसे की आदत पड़़ती हैं और उसके अपने शऊर अर्थात चेतन में बढ़ोत्तरी होती है। जब हम विद्वानों के बीच बैठकर उनकी बातें सुनते है और वह ज्ञान हमारे पास नहीं होता तो हमें शांत रहना पड़ता है। अध्ययन से हमारा आत्मबल बढ़ता है। वह ज्ञान और शऊर देता है और उसमें बढ़ोत्तरी करता है। जब इंसान बोलता हैं तो उसका शऊर बोलता है यह शऊर पढ़ कर पैदा होता है। ज्ञानी किसी विषय पर खोज कर सकता है और वह किसी परिचर्चा में अपना पक्ष भी रख सकता है।