अंतरराष्ट्रीय मानव अधिकार दिवस और सार्वभौमिक घोषणापत्र
- मानवाधिकारों का दावा करने वालों को पीड़ित वर्ग की पुकारें सुनाई नहीं देतीं
— डॉ एम ए रशीद, नागपुर
हर साल पूरी दुनिया 10 दिसंबर 1948 से अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस का आयोजन करती आ रही है। इस अवसर पर मानवाधिकारों के अंतर्गत बहुत से कार्यक्रमों का आयोजन होता है। ऐसा वातावरण बन जाता है जिसे देखकर लगता है कि हर एक मानवाधिकारों के प्रति सचेत है। फिर इसके बाद वह उससे ज्यादा बेहोश – अचेत सा हो जाता है।
मानवाधिकारों के प्रति अक्सर कहने और करने में विरोधाभास दिखाई देते हैं । फिर चाहे मानव जीवन की सुरक्षा की बात हो या महिलाओं की स्वतंत्रता की बात, यहां पाखंड के रूप स्पष्ट दिखाई देने लगते हैं। कहीं किसी व्यक्ति को मौत के घाट उतार दिया जाता है कहीं इंसानों की लाशों के ढेर दिखाई देते हैं।
महिलाओं की आजादी के नाम पर उन्हें अपमानित किया जाता है । बाज़ार उनके अश्लील दृश्यों से अटे पड़े रहते हैं । इससे आगे सोशल मीडिया पर महिलाओं को गुमनाम लोगों की ओर से ब्लैकमेल करने की घटनाएं लगातार सामने आ रही हैं। उनकी निजी जानकारियां, तस्वीरें सोशल मीडिया साइट रेडिट पर साझा की जा रही हैं । ऐसे ही एक ग्रुप चलाने वाले व्यक्ति का खुलासा बीबीसी ने किया था।
देश में महिलाओं के खिलाफ अपराधों पर ध्यान दिया जाए तो 2020 के मुकाबले साल 2021 में अपराधों में उनके प्रति 15.3 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है । राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो द्वारा जारी हालिया आंकड़ों के मुताबिक बताया गया है कि 2021 में महिलाओं के खिलाफ अपराधों के 4,28,278 मामले दर्ज हुए हैं, जबकि 2020 में 3,71,503 मामले दर्ज हुए थे। महिलाओं के प्रति अपराध भी दिल दहलाने वाले होते हैं ।
दहेज लोभियों के घर में ही महिला का जीवन नारकीय बन जाता है। उसकी रक्षा के दावे करने वालों की नज़र वहां नहीं जाती जहां उसके जन्म लेते ही उस पर संकट के बादल मंडराने लगते हैं , तंग और कांटों भरी जिंदगी उसका जीवन बनती है। फिर यदि दहेज हत्या पर ध्यान दिया जाए तो पुलिस रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2020 में दहेज हत्या के 63 मामले सामने आए थे, जबकि 2021 में यह आंकड़ा बढ़कर 70 पहुंच गया है। महिलाओं के अपहरण के मामले भी बढ़े हैं। इसके अलावा महिलाओं के अपहरण के मामले एक वर्ष में 237 से 370 तक पहुंच गए हैं। महिलाओं की तस्करी के जहां 2020 में आठ मामले दर्ज हुए थे, 2021 में यह आंकड़ा बढ़कर 33 तक पहुंच गया है। दुष्कर्म के मामलों में उत्तराखंड देश में 15वें स्थान पर है। पहले नंबर पर राजस्थान (6074), दूसरे पर मध्य प्रदेश (2898), तीसरे नंबर पर उत्तर प्रदेश (2668), चौथे नंबर पर महाराष्ट्र (2496), पांचवें पर असोम (1709), छठे स्थान पर हरियाणा (1697), सातवें नंबर पर झारखंड (1298), आठवें नंबर पर आंध्र प्रदेश (1298), नौवें नंबर पर छत्तीसगढ़ (1088) और दसवें नंबर पर पश्चिम बंगाल (911) है। इन अपराधों की रोकथाम पर अमल करना संभव होना चाहिए और महिलाओं के प्रत्येक छोटे बड़े अपराधों को गंभीर माना जाना चाहिए ।
हमें उस ओर भी ध्यान दिया जाना चाहिए जहां आज इस घोषणापत्र के अस्तित्व में आने के सात दशक बाद भी मानवाधिकारों की पुन: प्राप्ति नहीं हो पाई है और इसके संरक्षण की दिशा में कोई सकारात्मक कदम नहीं उठाए जा सके । लोग ऐसा जीवन जीने को विवश हैं जहां नैतिक पतन चरम पर है, अज्ञानता आम है, महिलाएं हर प्रकार के शोषण की शिकार , कमज़ोर देश शक्तिशाली देशों के दमन के शिकार हैं। आज भी मानवता कराह रही है चीख रही है लेकिन इस पुकार को सुनने वाला कोई नहीं।
घोषणापत्र के अनुसार शक्तिशाली ताकतों को मानवाधिकारों का पूरा ध्यान रखने और समानता के आधार पर सभी मनुष्यों को उनके मूल अधिकार प्रदान करने के लिए बाध्य किया गया है। इस के अनुसार नागरिक अपने धार्मिक आदेशों के पालन में स्वतंत्र होंगे , उन्हें पूर्ण अधिकार प्राप्त होंगे , उन्हें जीने की आज़ादी होगी, उन्हें अभिव्यक्ति की आज़ादी होगी, वे अपने शासकों से अन्याय और असमानता के बारे में पूछ सकेंगे, वे सवाल उठा सकेंगे, उन्हें लिखने और बोलने की आज़ादी होगी।
संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रत्येक सदस्य देश का यह उत्तरदायित्व है कि वह इस सार्वभौम घोषणा का सम्मान भी करे , उसे स्वीकार भी करे और उस पर अनिवार्य रूप से कार्य भी करे । इसी तारतम्य में सार्वभौम घोषणा पत्र के आलोक में अपने देश के नागरिकों के अधिकारों के प्रावधानों को सुनिश्चित किया जाना चाहिए । इन अधिकारों में नागरिकों को जीने का अधिकार, नस्लीय भेदभाव और समानता का अधिकार , अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकार शामिल हैं। इन मानवाधिकारों का घोषणापत्र के अनुसार देखा जाए तो उसके सिद्धांत मानव के कल्याण और संरक्षण के लिए बनाए गए हैं । इसीलिए मानवाधिकार कानून सरकारों को कुछ कार्रवाई करने के लिए बाध्य करता है और उन्हें अन्य कार्रवाई करने से रोकता भी है। नागरिकों की भी जिम्मेदारियां हैं कि वे अपने मानवाधिकारों का उपयोग करते समय दूसरों के अधिकारों का सम्मान भी करें । किसी को भी ऐसा कुछ भी करने का अधिकार नहीं है जो दूसरों के अधिकारों का उल्लंघन करता हो । मानवाधिकार सार्वभौमिक, अविभाज्य और अविच्छेद्य हैं। यह दुनिया में हर जगह, सभी लोगों के लिए एक अधिकार है जो कि हर इंसान की गरिमा में निहित हैं।
समानता और गैर-भेदभाव में मनुष्य की अंतर्निहित गरिमा के आधार पर सभी व्यक्ति मनुष्य के रूप में समान हैं। सभी लोग जाति, रंग, लिंग, जातीय मूल, भाषा, धर्म आदि
किसी भी प्रकार के भेदभाव के बिना मानवाधिकारों के हकदार हैं। प्रत्येक नागरिक को राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक विकास में सक्रिय , स्वतंत्र रूप से भाग लेने का अधिकार इसी में मिलता है। इसी क्रम में कर्तव्यधारियों को मानवाधिकार में निहित कानूनी मानकों और मानदंडों का पालन करना चाहिए। विफल रहने पर प्रभावित द्वारा स्थापित नियमों और प्रक्रियाओं के अनुसार पर्याप्त राहत प्राप्त करने के लिए वह एक सक्षम अदालत या अन्य मध्यस्थ्त निकाय के समक्ष कार्यवाही कर सकता है ।
एक सोचने। समझने की बात यह है कि जब महिलाओं पर गंभीर अपराध होते हैं तो उनके अपराधों की रोकथाम के प्रति अपराधियों को शरिया कानून के तहत सज़ा देने की बात आने लगती है । देखा जाए तो शरिया कानून प्रत्येक अपराध को रोकने में सक्षम है। पहले तो वह व्यक्ति के व्यक्तिगत और सामूहिक मामलों को शांतिपूर्ण तरीके से चलने की ओर इंगित करता है , फिर अगर उसमें ज़रा सी भी अपराधिक भावना सामने आती है तो पहली दृष्टया में उसे कठोर दंड से दंडित किया जाता है ताकि दोबारा वैसा अपराध हो ही ना सके।
उदाहरणतः महिला के हर एक अपराध को व्यक्तिगत आधार पर ऐसे रोका जा सकता है कि पवित्र क़ुरआन की सूरा नूर की 30 वीं पंक्ति में है कि ” (हे नबी!) आप ईमान वालों से कहें कि अपनी आँखें नीची रखें और अपने गुप्तांगों की रक्षा करें। ये उनके लिए अधिक पवित्र है, वास्तव में, अल्लाह सूचित है उससे, जो कुछ वे कर रहे हैं।31 वीं पंक्ति में बताया गया है कि ” और ईमान वालियों से कहें कि अपनी आँखें नीची रखें और अपने गुप्तांगों की रक्षा करें और अपनी शोभा का प्रदर्शन न करें, सिवाय उसके जो प्रकट हो जाये तथा अपनी ओढ़नियाँ अपने वक्षस्थलों (सीनों) पर डाली रहें और अपनी शोभा का प्रदर्शन न करें, परन्तु अपने पतियों के लिए अथवा अपने पिताओं अथवा अपने ससुरों के लिए अथवा अपने पुत्रों अथवा अपने पति के पुत्रों के लिए अथवा अपने भाईयों अथवा भतीजों अथवा अपने भांजों के लिए अथवा अपनी स्त्रियों अथवा अपने दास-दासियों अथवा ऐसे अधीन पुरुषों के लिए, जो किसी और प्रकार का प्रयोजन न रखते हों अथवा उन बच्चों के लिए, जो स्त्रियों की गुप्त बातें न जानते हों और अपने पैर धरती पर मारती हुई न चलें कि उसका ज्ञान हो जाये, जो शोभा उन्होंने छुपा रखी है और तुम सब मिलकर अल्लाह से क्षमा माँगो, हे ईमान वालो! ताकि तुम सफल हो जाओ।
ऐसा ही यदि हम मिलावट मिलावटी पदार्थों पर बात करें तो भी यही सामने आता है कि बाजार में उपलब्ध खाद्य पदार्थों में मिलावट का संशय बना रहता है। दालें, अनाज, दूध, मसाले, घी से लेकर सब्जी व फल तक कोई भी खाद्य पदार्थ मिलावट से अछूता नहीं है। आज मिलावट का सबसे अधिक कुप्रभाव जीवनोपयोगी वस्तुओं पर पड़ रहा है। यह संभव होना चाहिए कि बाजार में मिलने वाली खाद्य सामग्री, दालें, अनाज, दुग्ध उत्पाद, मसाले, तेल इत्यादि मिलावट रहित हों। यह शत प्रतिशत सही है कि खाद्य अपमिश्रण से उत्पाद की गुणवत्ता काफी कम हो जाती है।
भारत सरकार द्वारा खाद्य सामग्री की मिलावट की रोकथाम तथा उपभोक्ताओं को शुद्ध आहार उपलब्ध कराने के लिए सन् 1954 में खाद्य अपमिश्रण अधिनियम (पीएफए एक्ट 1954) लागू किया गया था। उपभोक्ताओं के लिए शुद्ध खाद्य पदार्थों की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय बनाया गया। तत्पश्चात खाद्य अपमिश्रण रोकथाम अधिनियम बनाया गया। इसके मुख्य उद्देश्य हैं जिससे जहरीले एवं हानिकारक खाद्य पदार्थों से जनता की रक्षा करना ,
घटिया खाद्य पदार्थों की बिक्री की रोकथाम और धोखाधड़ी प्रथा को नष्ट कर उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा की जा सके । ऐसे बहुत से मामले हैं जहां मानवाधिकार कहने का शब्द रह गया है । बहुत से स्थानों पर उसका हनन दिखाई देता है।