आदरणीय अबू बकर सिद्दीक़ रज़ि के शासन काल में पवित्र क़ुरआन का संग्रह एक अज़ीमुश्शान कारनामा(मुस्लिम समुदाय के लिए पवित्र क़ुरआन लोक और परलोक में सफलता के मार्ग प्रशस्त करने वाला ईश्वरीय ग्रन्थ)-डॉ एम ए रशीद,नागपूर

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आदरणीय अबू बकर सिद्दीक़ रज़ि के शासन काल में पवित्र क़ुरआन का संग्रह एक अज़ीमुश्शान कारनामा
(मुस्लिम समुदाय के लिए पवित्र क़ुरआन लोक और परलोक में सफलता के मार्ग प्रशस्त करने वाला ईश्वरीय ग्रन्थ)
——— डॉ एम ए रशीद, नागपूर

हम सभी इस हक़ीक़त से परिचित हैं कि पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहू अ़लैहि वसल्लम पर क़ुरआन मजीद थोड़ा-थोड़ा 33 वर्षों तक बरावर अवतरित होता रहा। हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहू अ़लैहि वसल्लम के बहुत से आदर्श साथी ऐसे थे जिन्हें पूरा क़ुरआन कंठस्थ था और उन आदर्श साथियों की संख्या तो और भी अधिक थी जिन्हें क़ुरआन के बहुत से हिस्से याद थे ।लेकिन बहुत से हाफ़िज़े क़ुरआन (जिन्हें पवित्र क़ुरआन कंठस्थ था) लड़ाइयों व झड़पों में शहीद हो गये। विदित हो कि ऐसी लड़ाईयां, जंग और झड़पें नुबूवत के झूठे दावेदारों, इस्लाम से विमुख होने वालों और ज़कात के इन्कारियों आदि से हुईं थीं।


सही बुख़ारी में आदरणीय ज़ैद बिन साबित रज़ि से रिवायत है कि यमामा की जंग के अवसर पर आदरणीय अबु बकर सिद्दीक़ रज़ि ने मेरी ओर एक क़ासिद के हाथ पैग़ाम भेजा कि मेरे पास इस समय आदरणीय उमर फ़ारुक़ रज़ि बैठे हुए हैं और वे कहते हैं कि जंग के दौरान बेशुमार पवित्र कुरआन को कंठस्थ रखने वाले (हाफ़िज़े क़ुरआन ) शहीद हो गये हैं और अगर इसी तरह जंगों में क़ुरआन के कंठस्त शहीद होते रहे तो पवित्र क़ुरआन के एक बहुत बड़े हिस्से के ज़ाया होने का ख़तरा है। इसलिए उनकी राय यह है कि मैं पवित्र क़ुरआन करीम का संग्रह करुं।
आदरणीय अबू बकर सिद्दीक़ रज़ि कहते हैं कि मैंने कहा : मैं वह काम नहीं कर सकता जिसे हुज़ूर नबी ए करीम सल्लल्लाहू अ़लैहि वसल्लम ने अपनी जिंदगी में नही किया। वह पैगंबर के नक्शेकदम पर चलने में बहुत सख्त थे। फिर अल्लाह ने इस पुण्य कार्य के लिये मेरा सीना खोल दिया और मेरी राय भी आदरणीय उमर फ़ारूक़ रज़ि जैसी बन गई।आप एक बुद्धिमान युवक हैं, आप पर हम कोई आरोप नही पाते। और आप हुज़ूर सअ़व के कातिबे वह्यी (वह्यी लिखने वाले) भी हो इसलिए आप कुरआन का संग्रह करें ।
आदरणीय ज़ैद बिन साबित रज़ि कहते हैं कि अल्लाह की क़सम! अगर मुझे पहाड़ को एक जगह से दूसरी जगह स्थानांतरित करने का ओदेश दिया जाता तो मैं उसे कुरआन मजीद के संग्रह करने से ज़्यादा सरल समझता। आदरणीय अबू बकर सिद्दीक़ रज़ि ने मुझ से कहा कि यह पुण्य कार्य है और फिर अल्लाह अ़ज़ो जल ने मेरी राय वही कर दी जो आदरणीय अबू बकर सिद्दीक़ रज़ि और आदरणीय उमर फ़ारूक़ रज़ि की थी। मैंने खजूर के पत्तों,शाख़ों, कपड़े के टुकड़ों, पत्थरों के सिलों , आदर्श साथियों के सीनों , झिल्लियों और हड्डियों आदि से कुरआन का संग्रह किया ।
आदरणीय ज़ैद बिन साबित रज़ि को पवित्र कुरआन संग्रह का आदेश आदरणीय अबू बकर सिद्दीक़ रज़ि ने इसलिए दिया था कि वे कातिब वह्यी थे । बता दें कि आदरणीय ज़ैद बिन साबित रज़ि उस समय नौजवान थे और आपकी आयु 21 वर्ष थी ।पैग़म्बर हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहू अ़लैहि वसल्लम की प्रत्येक वह्यी उन्होंने लिखी थी। इसे के अलावा आप कुरआन के हाफ़िज़ (कंठस्त करना) भी थे। आप पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहू अ़लैहि वसल्लम को कुरआन सुनाया करते थे ताकि वे कोई ग़लती करें तो हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहू अ़लैहि वसल्लम उसमें सुधार फ़रमा दें। हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहू अ़लैहि वसल्लम के देहान्त से कुछ दिनों पूर्व ही आदरणीय ज़ैद बिन साबित रज़ि ने हुज़ूर सल्लल्लाहू अ़लैहि वसल्लम को पूरा कुरआन सुनाया और आप सअ़व ने उनकी प्रशंस फरमाई।
पवित्र क़ुरआन के सुरक्षात्मक पहलू के अंतर्गत सबसे पहले पवित्र क़ुरआन को याद करने (हिफ़्ज़े क़ुरआन) पर ज़ोर दिया गया , इसलिए पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहू अ़लैहि वसल्लम स्वयं उसके अवतरण के समय उसके शब्दों को दोहराते ताकि वे अच्छी तरह से याद , कंठस्थ हो जाएं। इस पर अल्लाह ईश्वर की ओर से वह्यी अवतरित हुई कि वह्यी के समय शब्दों को जल्दी-जल्दी दोहराने की ज़रूरत नहीं है, बल्कि अल्लाह तआ़ला ख़ुद आप में ऐसी स्मरण शक्ति को पैदा कर देगा कि एक बार वह्यी के अवतरण के बाद आप उसे भूल नहीं सकेंगे। इस प्रकार हुज़ूर सल्लल्लाहू अ़लैहि वसल्लम पहले हाफ़िज़े क़ुरआन ( पवित्र क़ुरआन को याद करने वाले) हैं, दूसरी ओर हर साल रमज़ान के महीने में आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हज़रत जिब्राइल अलैहिस्सलाम के साथ पवित्र क़ुरआन के अवतरित भागों की बतौर पुनरावृत्ति के पढ़ा करते थे। जिस वर्ष आप सल्लल्लाहू अ़लैहि वसल्लम का निधन हुआ, उसी वर्ष आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने पवित्र क़ुरआन की दो बार पुनरावृत्ति की।
आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपने आदर्श साथियों (सहाबियों) रज़ि को न केवल क़ुरआन के अर्थों की शिक्षा देते, बल्कि उन्हें इसके शब्दों को कंठस्थ भी कराते। सहाबा रज़ि (आदर्श साथी) स्वयं पवित्र क़ुरआन को याद करने के इतने शौकीन थे कि हर कोई एक दूसरे से आगे निकलने के बारे में चिंतित रहता था। इसलिए पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहू अ़लैहि वसल्लम के साथियों में एक अच्छा ख़ासा समूह ऐसा रहता जो अवतरित हुए क़ुरआन की पंक्तियों को याद कर लेता और रातों को नमाज़ में दोहराता था। पवित्र क़ुरआन की सुरक्षा के लिए सबसे पहले क़ुरआन को याद करने पर ज़ोर दिया गया । यह तरीका उस समय बहुत अधिक सुरक्षित और विश्वसनीय था।
पवित्र क़ुरआन की रक्षा के लिए पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहू अ़लैहि वसल्लम ने पवित्र क़ुरआन को लिखवाने के लिए भी एक विशेष व्यवस्था भी की। पवित्र क़ुरआन की वह्यी के अवतरण के बाद वह उसे शास्त्रियों (कातिबीने वह्यी) से लिखवा दिया करते थे । पैग़म्बर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का आदर्श और मामूल था कि जब पवित्र क़ुरआन का कोई हिस्सा अवतरित होता तो आप शास्त्रियों (कातिबीने वह्यी) को यह भी निर्देश देते थे कि वे इसे अमुक सूरह में अमुक अमुक छंदों के बाद लिखें ।उस समय कागज़ उपलब्ध नहीं था, इसलिए इन क़ुरआन की आयतों (छंद) को ज़्यादातर पत्थर की सिलों, चमड़े की पट्टियों, खजूर की शाखाओं, बांस के टुकड़ों, पेड़ के पत्तों और जानवरों की हड्डियों पर लिखा जाता था। कातिबीने वह्यी अर्थात पवित्र क़ुरआन की पंक्तियों को लिखने वालो में आदरणीय ज़ैद बिन साबित रज़ि, ख़ुल्फ़ाए राशिदीन रज़ि ( इस्लामी जगत के चारों शासक वर्ग – आदरणीय अबू बकर सिद्दीक़ रज़ि , आदरणीय उमर फ़ारूक़ रज़ि , आदरणीय उस्मान रज़ि , आदरणीय अ़ली रज़ि), आदरणीय अबी बिन क़ाब रज़ि, आदरणीय ज़ुबैर रज़ि और आदरणीय मुआविया रज़ि के नाम विशेष रूप से उल्लेख किये जाते हैं।
पवित्र कुरआन का संग्रह आदरणीय अबू बकर सिद्दीक़ रज़ि का एक अज़ीमुश्शान कारनामा है जिसकी वजह से रहती दुनिया तक मुस्लिम समुदाय के प्रत्येक मुसलमान को पवित्र कुरआन पढ़ने में आसानी होती रहेगी । इसके साथ ही यह ईश्वरीय ग्रन्थ मुस्लिम समुदाय के लिए लोक और परलोक में सफलता के मार्ग प्रशस्त करने वाला तब ही होगा जबकि उसका हक़ अदा किया जाएगा। यह पवित्र क़ुरआन सिर्फ़ पाठ या तिलावत करने वाली किताब नहीं , बल्कि यह मार्गदर्शन की पुस्तक है। इसलिए मुस्लिम समुदाय को पवित्र क़ुरआन के सभी पहलुओं को समझ कर उन्हें पूरा करने का प्रयास करना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वह किस प्रकार से लोक (दुनिया) और परलोक (क़ियामत) दोनों जहां में सफलता की ओर मार्ग प्रशस्त करता है। इसका पहला पहलू यह है कि इसे ठीक से और नियमित रूप से पढ़ा जाना चाहिए। इसका दूसरा पहलू इसे समझने का है तथा अंतिम पहलू यह भी कि पैगंबर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहू अ़लैहि वसल्लम की रिवायत या वर्णन के अनुसार उनका पालन किया जाए। ऐसा सुलूक करने वाले लोगों को दुनिया की हर कठिनाई से मार्गदर्शन और पुनरुत्थान (क़यामत) के दिन उसकी हिमायत – शफ़ाअ़त की ख़ुशख़बरी दी जाती है। लेकिन जैसा कि इस हदीस में चेतावनी दी गई है कि यह पवित्र क़ुरआन केवल उन लोगों के लिए मार्गदर्शन और दया है जो उसके पहलुओं का अल्लाह के दूत हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहू अ़लैहि वसल्लम की परंपराओं के अनुसार उचित रूप से पालन करते हैं।
जो लोग उसकी ग़लत व्याख्या करते हैं और सांसारिक चीज़ें जैसे कि प्रसिद्धि हासिल करने के लिए अपनी इच्छाओं के अनुसार अमल करते हैं, वे क़यामत अर्थात पुनरुत्थान के दिन इसके सही मार्गदर्शन और उसकी हिमायत से वंचित रह जाएंगे। दरअसल दोनों लोकों में उनका पूरी तरह से नुकसान उस समय तक बढ़ता रहेगा जब तक कि वे ईमानदारी से पश्चाताप यानी कि तौबा न कर लें ।
पवित्र क़ुरआन की सूरह बनी इजरायल , पंक्ति क्र 82 में अल्लाह ईश्वर का फ़रमान है कि “और हमने क़ुरआन में वह चीज़ उतारी जो ईमान वालों के लिए आरोग्य (शिफ़ा ) और रहमत व दया है, लेकिन यह अत्याचारियों ( ज़ालिमों ) की क्षति को ही अधिक करता है”।
अंत में यह समझना भी महत्वपूर्ण है कि पवित्र क़ुरआन सांसारिक समस्याओं का इलाज होने के बावजूद मुस्लिम समुदाय को सिर्फ इसके उद्देश्य के लिए ही नहीं उपयोग करना चाहिए। यानी किसी को पवित्र क़ुरआन केवल अपनी सांसारिक समस्याओं को हल करने के लिए नहीं पढ़ना चाहिए । पवित्र क़ुरआन को एक उपकरण के रूप में नहीं समझना चाहिए जो मुसीबत का समय हटा कर वापस उसे टूलबॉक्स में रख दिया जाए। पवित्र क़ुरआन का मुख्य कार्य आख़िरत का उचित मार्गदर्शन करना है। इस महत्वपूर्ण कार्य को नज़रअंदाज़ करना और इसे केवल अपनी सांसारिक समस्याओं को हल करने के लिए उपयोग करना सही नहीं है । यह एक सच्चे मुसलमान के आचरण के विरुद्ध है। यह उस इंसान की तरह है जो अभी तक बहुत से अलग-अलग सामानों के साथ कार खरीदता है लेकिन उस के पास कोई इंजन नहीं है। इसमें कोई संदेह नहीं कि यह इंसान बिल्कुल मूर्ख है। मुसलमानों की आने वाली पीढ़ियों के लिए पवित्र क़ुरआन के संग्रह हेतु अनथक परिश्रम किया गया। इसलिए मुस्लिम समुदाय को चाहिए कि वह पवित्र क़ुरआन के हुक़ूक़ अदा करते हुए अपनी अज़ीम मीरास का एहतेराम करे क्योंकि यही उन आदर्श साथियों की क़ुर्बानियों का उद्देश्य था। पैग़ंबर हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने नसीहत फ़रमाई है कि पवित्र क़ुरआन क़यामत के दिन शिफ़ाअ़त करेगा । जो लोग ज़मीन पर अपनी ज़िंदगी के दौरान इस पर अमल करते हैं उन्हें क़यामत के दिन जन्नत में ले जाया जाएगा लेकिन जो ज़मीन पर अपनी ज़िंदगी के दौरान उसको नज़र अंदाज करते हैं वह देखेंगे कि यह उन्हें क़यामत के दिन जहन्नुम में धकेल देगा।
आज यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि इस्लाम का सबसे बड़ा दुश्मन अज्ञानी मुसलमान है, जिसे देखकर अन्य संप्रदाय के लोग समझते हैं कि यही इस्लाम है, क्योंकि लोग पवित्र क़ुरआन नही पढ़ते बल्कि वे हमें पढ़ते हैं लिहाज़ा हमें इस्लाम का एक अच्छा नुमाईंदा(अनुयायी) बनने के लिए पवित्र क़ुरआन के आचरणों को अपनाना होगा।
“वो ज़माने में मुअ़ज़्ज़िज़ थे मुसलमां होकर ,
और तुम ख़्वार हुए तारिके क़ुरआ़ं होकर” !