इस्लामी जगत के सुपरहिट हीरो नंबर 1, शासक अबू बकर सिद्दीक़ रज़ि की ईमानदारी के इष्टतम दृष्टांत (मुस्लिम समुदाय को ईमानदारी से नेक कार्यों की ओर बढ़ने का प्रयत्न करना चाहिए) – डॉ एम ए रशीद,नागपूर

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आदरणीय अबू बकर सिद्दीक़ रज़ि के शासन काल मे राजकोष आपके निपटान में था । आप प्रतिदिन राजकोष में आने वाली वस्तुओं, धन आदि को ग़रीबों और ज़रूरतमन्दों में वितरित कर देते थे। राजकोष से अपने घर का खर्च चलाने के लिए बहुत कम पैसे लेते हैं। एक दिन आप रज़ि की पत्नी ने कहा कि – हे

अमीरुल मोमिनीन / मुसलमानों के शासक ! काफ़ी दिनों से कोई मीठी चीज़ नहीं खाई । आज कुछ मीठा खाने का मन करता है। अगर आप कुछ मीठी चीज़ मंगा दें तो अच्छा हो।
आप कहते हैं कि मुसलमानों का राजकोष (बैतुलमाल) इसके लिए नहीं है। यह मुसलमानों की अमानत है। इसमें से हमारे लिए सिर्फ़ उस मात्रा में लेना जायज़ है जिससे हम साधारण ढंग से अपना गुज़ारा कर सकें, मेरे पास भी कुछ पैसा नहीं कि कुछ बुला सकूं।
यह सुनकर आपकी पत्नी चुप हो जाती हैं । मीठा खाने का जी चाहता था, इसलिए एक वैध तरीका निकालती हैं ।
घर के ख़र्च में से थोड़ा-थोड़ा बचाती हैं और उससे एक दिन मीठा मंगा लेती हैं। मीठा खाना तैयार कर आदरणीय अबू बकर सिद्दीक़ रज़ि के सामने पेश करती हैं।
अमीरुल मोमिनीन पूछते हैं, यह मीठा कहां से आ गया? पत्नी जवाब देती हैं कि कई दिन से प्रतिदिन के ख़र्चे में से थोड़ा-थोड़ा बचाकर यह रक़म इकट्ठा की थी उस रक़म से मीठा मंगाई हूं।
आदरणीय अबू बकर सिद्दीक़ रज़ि बोले कि आप प्रतिदिन थोड़ा-थोड़ा बचाती रहीं वह हमें महसूस भी ना हुआ। इसका मतलब यह है कि हम इतनी रक़म अधिक ले रहे हैं ——- और उसके बाद वे अपने वज़ीफ़े में से इतनी रक़म कम करा देते हैं ।
मुस्लिम जगत के पहले शासक (ख़लीफ़ा) आदरणीय अबू बकर सिद्दीक़ रज़ि कमर पर पानी का थैला बांधे माज़ूर , दिव्यांगों के घरों तक पानी पहुंचाते । अपने मोहल्ले वासियों के काम अपने हाथों से करते हैं। वे पड़ोसियों की बकरियों का दूध दोहते हैं और उनकी आवश्यकताओं की वस्तुएं बाज़ार से खरीद कर ला देते हैं। वे चरागाह में मवेशी चराते दिखाई देते हैं। लोग पूछते हैं ओह ख़लीफ़ाए रसूल! यह इतने जानवर किसके हैं ?
आप रज़ि कहते हैं “मेरे पड़ोसियों के”।
आदरणीय अबू बकर सिद्दीक़ रज़ि के शासनकाल में मदीना के पास एक बूढ़ी अंधी औरत रहती थी। उसकी कोई संतान नहीं थी जो बुढ़ापे में उसका सहारा बन सकती । वह बहुत ही मजबूर और बेबसी का जीवन जी रही थी। आदरणीय उमर फ़ारूक़ रज़ि को उसकी बेबसी का पता चला। आप सवाब , पुण्य पाने के लिए अक्सर इसी प्रकार के अवसरों की तलाश में रहते थे, इसलिए आपने दिनचर्या बना ली कि प्रतिदिन सुबह-सुबह बुढ़िया के घर जाते, उनके घर में झाड़ू लगाते, बाज़ार से खाने-पीने का सामान लाकर रख देते और इस तरह बुढ़िया की सेवा करते रहते। कुछ दिनों के बाद उन्हें ऐसा प्रतीत हुआ कि कोई व्यक्ति उनसे भी पहले आकर यह सारे काम कर जाता है । उन्हें यह चिंता हुई की आख़िर यह कौन बुज़ुर्ग है जो मुझ से भी पहले आकर बुढ़िया के सारे काम कर जाते हैं । उन्होंने एक दिन पता लगाने की ठान ली । वह काफ़ी रात से बुढ़िया के दरवाज़े के समीप छुप कर खड़े हो गए कि देखें वह कौन है जो मुझसे पहले बुढ़िया के सारे काम कर जाते हैं । अभी काफ़ी रात बाक़ी थी कि एक व्यक्ति ने बुढ़िया के घर में प्रवेश किया , झाड़ू दी , पानी भरा और आवश्यकताओं की सारी चीज़ें लाकर रख दीं। आपने पहचानने की कोशिश की , मगर अंधेरे के कारण पहचान ना सके । जब वह व्यक्ति सब काम करके जाने लगा और दरवाज़े के समीप पहुंचा तो आदरणीय उमर फ़ारूक़ रज़ि यह देखकर आश्चर्य में पड़ गए कि यह तो इस्लामी जगत के शासक आदरणीय अबू बकर सिद्दीक़ रज़ि हैं।
आदरणीय अबू बकर सिद्दीक़ रज़ि अपने शासनकाल में ग़रीबों और मोहताजों पर कड़ी नज़र रखते कि उनके जीवन में किसी प्रकार की कोई दुश्वारी न आने पाए। उदाहरणतः शीत ऋतु में वे जनकोष से अत्यधिक संख्या में ठंड से बचाव के कपड़े ख़रीद कर मदीने की विधवाओं में वितरित किया करते। उनके ढ़ाई वर्षीय शासनकाल में राजकोष में लगभग 2 लाख सिक्के संग्रहित हुए थे। इन सब को उन्होंने ज़रुरतमंदों में वितरित कर दिया ।
अपने शासन काल के दौरान शासक अबू बकर सिद्दीक़ रज़ि अपने गवर्नरों को कार्यकलापों के लिए उन्हें लगातार उत्तरदायी ठहराते और इसकी जांच-पड़ताल के लिए निजी तौर पर उनसे भेंट भी करते। वे उन्हें हमेशा याद दिलाते थे कि बतौर लीडर आप प्रजा के सेवक हैं और आपको प्रजा की भलाई के लिए अनथक परिश्रम करने में अपना समय लगाना चाहिए। आपको अपना साधारण जीवन ऐसा व्यतीत करना चाहिए जिससे प्रजा सुकून की ज़िंदगी गुज़ार सके। आदरणीय अबू बकर सिद्दीक़ रज़ि की ईमानदारी के इष्टतम दृष्टांत के अनेकों उदाहरण इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं।
मुस्लिम समुदाय को चाहिए कि वह सेवा भाव के प्रति अपने कार्यों का मूल्यांकन करे । क्योंकि समुदाय का प्रत्येक व्यक्ति क़ियामत के दिन अपने कार्यकलापों के लिए उत्तरदायी होगा। इसलिए मुस्लिम समुदाय के लिए ज़रूरी है कि वह अपने कार्य कलापों का नियमपूर्वक जाएज़ा लेते रहे। जब कोई ईमानदारी से अपने कार्यकलापों का मूल्यांकन करेगा तो अवश्य ही वह नेक कार्यों की ओर आगे बढ़ने का प्रयत्न करेगा । क़ियामत के दिन उसे प्रत्येक नेक कार्य का सर्वश्रेष्ठ प्रतिफल भी मिलेगा। फिर यदि कोई अपने कार्य कलापों को नियमपूर्वक मूल्यांकन करने में असफल रहता है तो हो सकता है वह भूल-चूक , बुराई और गुनाहगारी का जीवन बसर करने में लीन और मगन हो जाए , परलोक में ऐसे जीवन के प्रति वह अवश्य उत्तरदाई होगा ।
पवित्र क़ुरआन की सूरह ज़िल्ज़ाल की पंक्ति क्र 7 और 8 में अल्लाह , ईश्वर का फ़रमान है कि “तो जिसने ज़र्रा बराबर भी नेकी की होगी वो उसको देख लेगा । तो जिसने ज़र्रा बराबर भी बुराई की होगी वो उसको देख लेगा” । इन पंक्तियों में ज़र्रा का मतलब कम से कम मात्रा है जो तौलने में न आ सके इतना छोटा कार्य या अमल भी हिसाबो किताब के दायरे में आ जायेगा, हां आख़िरत में छोटा या बड़ा अमल उसी वक़्त फायदेमंद होगा जब कि अमल करने वाला ईमान वाला हो | आदरणीय ज़ैद बिन असलम रज़ि फ़रमाते हैं कि एक साहब रसूल सअ़व की सेवा में हाज़िर हुए और निवेदन किया कि अल्लाह तआ़ला ने आपको जिस ज्ञान से नवाज़ा है, आप हमें उस की शिक्षा दें, तो आप सअ़व ने एक दुसरे साहब को इस ज़िम्मेदारी पर लगा दिया कि वो इन को शिक्षा दें, उन्होंने यही सूरह पढ़ाई और जब इस अंतिम पंक्ति पर पहुंचे तो उसने कहा कि मेरे लिए यही काफ़ी है; जब नबी सअ़व को इसकी ख़बर पहुंची तो नबी सअ़व ने फ़रमाया; उन्हें छोड़ दो, उन्होंने दीन समझ लिया है |
आदरणीय अबू बकर सिद्दीक़ रज़ि शासक रहते हुए इंसानों के कष्टों और परेशानियों को महसूस करते और उन का समाधान किया करते। यही शिक्षाएं मुस्लिम समुदाय के लिए प्रेरणादायक हैं कि उसे अपनी क्षमता के अनुसार समाज सेवा करना चाहिए । इससे इंसानों के दुख दर्द दूर हो सकते हैं और परलोक में बेहतरीन अज्र मिल सकता है। यदि हम में से किसी में इस प्रकार के सेवा भाव नहीं हैं और हमें अपनी ही चिंता खाए जाती है तो ऐसी प्रवृत्ति से बचना चाहिए । हमें अपना बड़ा दिल कर ग़रीबों और ज़रूरतमंदों का ध्यान रखते हुए उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेना चाहिए।