प्यारे नबी हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का ख़िताब — आख़िरत में काम आने के लिए नेक आमाल का ज़ख़ीरा आगे भेजो (मुस्लिम समुदाय के लिए जुमे के आदाब और आचार)- डॉ एम ए रशीद , नागपुर

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प्यारे नबी हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के आदर्श साथियों में अनुसरण और पैरवी का ऐसा जज़्बा था कि आप आप सअ़व जब कोई बात कह देते उनके आदर्श साथी फ़ौरन अमल करते थे और उन आमाल को अपनी ज़िंदगी में ढ़ाल लिया करते थे । अब्दुल्लाह बिन मसऊद रज़ि भी उन्हीं में से एक हैं , उनके हालात पढ़ने से मालूम होता है कि आप सअ़व मस्जिदे नबवी में थे , ख़ुत्बे के दौरान आप सअ़व ने फ़रमाया बैठ जाओ अब्दुल्लाह बिन मसऊद रज़ि का एक पैर मस्जिद में था और एक पैर बाहर था वहीं चौखट पर बैठ गए, आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अंदर बुलाया इब्ने मसऊद अंदर आए, फ़रमाया या रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम आप ने कहा था बैठ जाओ इसी वजह से मैं बैठ गया । आप स.अव का उद्देश्य था कि आस पास के लोग बैठ जाएं , आप उन्हें बैठाना चाह रहे थे , तो आप सअ.व ने कहा इब्ने मसऊद आप वहां क्यों बैठा गये ? आपने कहा या रसूल सअ.व आपका हुक्म था अगर मैं एक क़दम आगे रखता आपके हुक्म की नाफ़रमानी हो जाती ।
‌ इससे मालूम होता है कि आदर्श साथियों में हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की इताअ़त का बड़ा जज़्बा था, आप सअ़व से से इन आदर्श साथियों की बड़ी अक़ीदत थी , उनसे गहरा संबंध और बहुत मुहब्बत थी ।


हमें भी अपनी जिंदगी में आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से मुहब्बत के साथ साथ उस जज़्बे को लाना चाहिए जिसमें आप सअ़व की इताअ़त झलकती हो। ख़ुशी हो या ग़म हर मौक़े पर यह देखना चाहिए कि इस बारे में हुज़ूर सअ़व का फ़रमान क्या है ? शरियत की तालीमात हैं? जबकि ऐसे बहुत से ख़ुशी और ग़म के मौकों पर हमारा दिल गवारा न करते हुए भी 👌👌👌अमूमन इंसान के मौक़े पर सुन्नत , मसनून आमाल को नज़रंदाज़ कर देता है । ! हमारे आमाल क़ियामत के दिन निजात का ज़रिया बनना चाहिए। इत्तेबा , इताअ़त उस दिन शिफ़ाअ़त का ज़रिया बन जाएगी।
अल्लाह तआ़ला कुरआन मजीद में इरशाद फ़रमाते हैं कि ” आप सअ़व फ़रमा दीजिए इन से अगर तुम यह चाहो कि अल्लाह तआ़ला तुम से मुहब्बत करे तो तुम मेरी इताअत करोगे तो अल्लाह तुम से मुहब्बत भी करेगा और तुम्हारे गुनाहों को माफ़ भी कर देंगा।” अल्लाह तआ़ला कुरआन मजीद में अपनी मुहब्बत को आप सअ़व की इत्तिबा और इताअत के साथ जोड़ा है । आप सअ़व की इताअत ही हक़ीक़त में अल्लाह की इताअत है। अल्लाह तआला ने अमूमन जहां अपनी इताअत का ज़िक्र किया है वही अपने रसूल की इताअत का हुक्म भी दिया है – “ऐ ईमान वालों अल्लाह की भी इताअत करो और अल्लाह के रसूल की भी इताअत करो । इसलिए मुसलमान की ज़िंदगी में ज़रुरी है कि वे आप सअ़व की इताअत करें । हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया ” मेरी सारी उम्मत् जन्नत में दाख़िल होगी सिवाए उस शख़्स के जो इकार करे , आदर्श साथियों ने फ़रमाया वो कौन? हुज़ूर स.अ.व. ने फ़रमाया जो मेरी इताअ़त करेगा वह जन्नत में दाख़िल होगा और जो मेरी इताअत में नाफ़रमानी करता है यकीनन उसने इंकार किया है.। इंकार करने वाला शख्स़ जहन्नुम में जाएगा। इसलिए हमारी ज़िंदगी में आदर्श साथियों की तरह इताअ़त का जज़्बा होना चाहिए , जब भी रसूल सअ़व का अमल सामने आए तो इंसान को उसे अपनी ज़िंदगी में लाना चाहिए।
नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और आपके आदर्श साथी रज़ि (सहाबा किराम रज़ि ) जुमों , जमाअ़तों , हज और इन के अलावा बहुत से मुक़ामात में ख़ुत्बा दिया करते थे ‌। वे लोगों को अल्लाह का हुक्म मानने की तर्गीग़ब दिया करते थे, चाहे अल्लाह के हुक्म, मुशाहदे और तजुर्बे के ख़िलाफ़ क्यों न हों ‌। वे लोगों के दिलों में दुनिया और उसकी फ़ानी लज़्ज़तों की बेरग़्बती और आख़िरत और उसकी हमेशा रहने वाली लज़्ज़तों का शौक़ पैदा किया करते थे। पूरी उम्मते मुस्लिमा में मालदार और ग़रीब को, ख़वास और अवाम को इस बात पर खड़ा किया करते थे कि अल्लाह और उसके रसूल की तरफ़ से जो अहकाम उनकी तरफ़ मुतवज्जोह हैं, वे अपनी जान माल ख़र्च करके इन अहकाम को पूरा करें, वे उम्मते मुस्लिमा को फ़ानी माल और ख़त्म हो जाने वाले सामान पर खड़ा नहीं करते थे ।
मानव जाति के हर पहलू पर प्यारे नबी हज़रत मोहम्मद रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की नज़र रहा करती थी । उनकी हिदायतों ने मानव जाति की राह को बहुत आसान कर दिया था । लोगों की आख़िरत की ज़िंदगी सुधारने के लिए उन्होंने अनथक प्रयास किए, इसी संबंध में उनका ख़ुत्बा इस तरह से है –
हज़रत अबू सलमा बिन अब्दुर्रहमान बिन औफ़ रज़ि फ़रमाते हैं कि हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मदीना में सबसे पहला ख़ुत्बा फ़रमाया। उसकी शक्ल यह हुई कि आपने खड़े होकर पहले अल्लाह की शान के मुताबिक़ हम्द व सना बयान की, फिर फ़रमाया, अम्मा बाद , ऐ लोगो ! अपने लिए (आखिरत में काम आने के लिए नेक आमाल का ज़ख़ीरा) आगे भेजो, तुम अच्छी तरह जान लो, तुममें से हर आदमी को ज़रूर मरना है और अपनी बकरियां बिना चरवाहे के छोड़कर चले जाना है, फिर उसके और उसके रब के दर्मियान न कोई तर्जुमान होगा और न कोई दरबान ।
और उसका रब उससे पूछेगा, क्या मेरे रसूल ने तेरे पास आकर मेरा दीन नहीं पहुंचाया था ? क्या मैंने तुझे माल नहीं दिया था ? और तुझ पर फ़ज़्ल व एहसान नहीं किया था? अब बता तूने अपने लिए यहां आगे क्या भेजा है? चुनांचे वह दाएं-बाएं देखेगा, तो उसे कोई चीज़ नज़र न आएगी। फिर वह अपने सामने देखेगा तो उसे जहन्नम के सिवा और कुछ नज़र न आएगा, इसलिए तुममें से जो अपने आपको जहन्नम की आग से खजूर का एक टुकड़ा देकर बचा सकता है, उसे चाहिए कि वह यह टुकड़ा देकर ही ख़ुद को बचा ले और जिसे और कुछ न मिले, तो वह अच्छी बात बोलकर ही ख़ुद को बचा ले, क्योंकि आख़िरत में नेकी का बदला दस गुना से लेकर सात सौ गुना तक मिलेगा।
हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने एक बार फिर ख़ुत्बा फ़रमाया और इशाद फ़रमाया बात यह है कि तमाम तारीफ़ें अल्लाह के लिए हैं। मैं उसकी तारीफ़ करता हूं और उससे मदद तलब करता हूं, हम अपने नफ़्स के और बुरे आमाल की दुष्टता – शरारतों से अल्लाह की पनाह चाहते हैं, जिसे अल्लाह हिदायत दे दे, उसे कोई गुमराह करने वाला नहीं और जिसे गुमराह करे उसे कोई हिदायत देने वाला नहीं और मैं इस बात की गवाही देता हूं कि अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं, वह अकेला है, उसका कोई शरीक नहीं। सबसे अच्छी अल्लाह की किताब है। वह आदमी कामियाब हो गया, जिसके दिल को अल्लाह ने क़ुरआन से सजाया और उसे कुफ्र के बाद इस्लाम में दाख़िल किया और उस आदमी ने बाक़ी तमाम लोगों के कलाम को छोड़कर अल्लाह की किताब को अख़्तियार किया। यह अल्लाह की किताब सबसे अच्छी और सबसे ज़्यादा बलीग़ कलाम है। जो अल्लाह की मुहब्बत करे तुम उससे मुहब्बत करो और अल्लाह से मुहब्बत इस तरह करो कि दिल में रच जाए और अल्लाह के कलाम और उसके ज़िक्र से मत उकताओ और क़ुरआन से एराज़ न करो, वरना तुम्हारे दिल सख़्त हो जाएंगे, क्योंकि अल्लाह तआला (आमाल में से जो कुछ पैदा करते हैं उसमें से कुछ ‘आमाल’ को चुन लेते हैं, पसंद कर लेते हैं)।
अल्लाह तआ़ला ने अपनी किताब का नाम पसंदीदा अमल, पसंदीदा इबादत, नेक कलाम और लोगों को हराम व हलाल वाला जो दीन दिया गया है, उसमें से नेक अमल रखा है, इसलिए तुम अल्लाह की इबादत करो और उसके साथ किसी चीज़़ को शरीक न करो और उससे ऐसा डरो जैसे उससे डरने का हक़ है और तुम लोग अपने मुंह से जो नेक और भली बातें बोलते हो, उसमें तुम अल्लाह से सच कहो और अल्लाह रहमत की वजह से तुम एक दूसरे से मुहब्बत करो। अल्लाह इस से नाराज़ होते हैं कि उनसे जो अहद किया जाए, उसे तोड़ा जाए।