प्रर्यावरण संरक्षण में इस्लाम का दृष्टिकोण
पैगंबर हजरत मुहम्मद स अ व पहले पर्यावरण संरक्षण तज्ञ
“इस्लामी आदर्शों पर चलने वाला संगठन ” जमाअ़त ए इस्लामी हिंद” की पिछले 75 वर्षों से देशहित और चहुंमुखी विकास में महत्वपूर्ण भूमिका”
“जमाअ़त ए इस्लामी हिंद महाराष्ट्र इस वर्ष राज्य में पर्यावरण सप्ताह को “संतुलित पर्यावरणासाठी संतुलित विचार” नामी शीर्षक के तहत मनाने जा रही है”
यह सही है कि भविष्य के बारे में अच्छे विचार लोक कल्याण में महत्वपूर्ण दिशा बन जाते हैं । वे धरती पर हो रहे जलवायु परिवर्तन को बदल भी सकते हैं । यह तब संभव है कि प्रत्येक व्यक्ति अपनी ज़िम्मेदारी को समझे और उसे तहे दिल से निभाए ।
वर्तमान समय में पर्यावरण की समस्या ने पूरी दुनिया को जकड़ लिया है । इस कारण मानव अस्तित्व भी खतरे में आ गया है । सरकार की कुछ नीतियां भी पर्यावरण संरक्षण पर पानी फेर रही हैं , जैसे न्युक्लियर प्लांट, कार और मोटर बाइक कंपनियों को खुली छूट ,वनों की कटाई, उद्योगों के कारण विभिन्न प्रकार के प्रदूषण, नदी और जल निकायों को एमएनसी को सौंपना आदि ।
इस संबंध में हमें अपने यहां की परिस्थितियों के बारे में सचेत रहने की आवश्यकता है। ऐसी नीतियों के ख़िलाफ़ जन जागरूकता पैदा करना और जन आंदोलनों का समर्थन करना महत्वपूर्ण है। हमें पर्यावरण के बारे में जनता के बीच जागरूकता पैदा करनी चाहिए और पानी का सावधानीपूर्वक उपयोग, नदियों और जलाशयों की सफाई, सुरक्षा आदि जैसे मुद्दों को इंगित करना चाहिए । ईंधन की कम खपत, बिजली को बर्बाद न करना, पेड़ लगाना और ईश्वर/ अल्लाह की हर नैमत पानी, हवा, ऊर्जा, प्राकृतिक संसाधनों की प्रशंसा की भावना विकसित करना भी ज़रूरी है।
पर्यावरण संरक्षण के संबंध में प्रत्येक व्यक्ति को कम से कम एक पौधा लगाकर उसकी देखभाल करना चाहिए , उसे प्लास्टिक के उपयोग को रोकने के लिए स्वयं को आगे आने कै साथ लोगों को इस ओर ध्यान दिलाने की जरूरत को भी महसूस करना चाहिए । जल हार्वेस्टिंग और जल संरक्षण की ओर पहल से सकारात्मक परिणाम निकल सकते हैं । इसलिए हम सभी देशवासियों को “पर्यावरण मित्र” का रवैया अपनाने की ज़रूरत है ।
नागरिकों को चाहिए कि वे एनजीओ के साथ मिलकर स्कूलों, कालेजों , धार्मिक स्थलों जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में पेड़ लगा कर उनकी पूरी तरह से देखभाल करना चाहिए । प्रशासन द्वारा पर्यावरण में आक्सीजन का संतुलन लाने और धरती के जल स्तर को ऊपर उठाने के लिए व्यवस्थित तौर पर वनीकरण को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। बारिश के पानी को बर्बाद न करते हुए उसे धरती में सोखने के लिए हार्वेस्टिंग सिस्टम को अपनाना बहुत आवश्यक है। सरकारी एजेंसियां इस संबंध में जानकारी और सहायता प्रदान करती हैं। उस का लाभ उठाना चाहिए।
पर्यावरण प्रदूषण में शहर के कचरे ने भावी रुप ले लिया है । ऐसा देखने और सुनने में आता है कि शहर में कचरा संकलन के लिए कचरा गाड़ियां नियमित और समय पर नहीं आतीं । घरों में जमा कचरे से दुर्गंध फैलने लगती है। लोग इससे छुटकारा पाने के लिए किसी के घर के सामने या फिर रोड़ पर फेंकते हैं। गलियों की स्वच्छता बाबत स्वीपर लापरवाही कर कई दिनों तक सफाई नहीं करते। यही कचरा, कूड़ा मच्छरों के फैलाव का कारण बनता है और रोगों का प्रकोप फूट पड़ता है। दूषित पेयजल स्वास्थ्य के लिए हानिकारक बन जाता है। पेयजल का दूषित होने का प्रमुख कारण
सीवरेज लाइन के समानांतर पेय जल लाइन बनती है। ऐसी सभी लाइनों को हटाकर एक दूसरे से पर्याप्त दूरी बनाकर लाइन बिछाई जाने से स्वास्थ्य के लाभप्रद ब सकता है।।
शहर में आबादी के बढ़ने से होटल और खान पान के ठेलों ने भी अपना जाल बिछा लिया है। होटलों में पर्याप्त व्यवस्था न होने से एक ओर उसका धुआं लोगों के घरों में जाता है यह स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव डालता है । वहीं दूसरी ओर खान पान की वस्तुओं को धोने , पकाने में स्वच्छता को नज़रंदाज़ करना स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करने जैसा है।
ओचक निरीक्षण से होटलों और ठेलों की लापरवाही को दूर किया जा सकता है।
यह सर्व 5 जून को प्रतिवर्ष विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है । सर्व विदित है कि 1972 में यूएनओ द्वारा पर्यावरण संरक्षण दिवस मनाने का निर्णय लिया गया था। इसमें प्रकृति , जल थल के जीव जंतुओं की सुरक्षा भी शामिल है । मानवता के नाते यह कार्य मात्र शासकीय आदेशों विद्यार्थियों तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए। सभी देशवासियों को इस में भाग लेना चाहिए । पर्यावरण सुरक्षा में धार्मिक और वैज्ञानिक आधारों का भरपूर इस्तेमाल किया जाना चाहिए ।
पैगंबर हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के प्रसिद्ध एक कथन से ज्ञात होता है कि आप सअव ने फ़रमाया “कोई भी मुसलमान जो एक दरख़्त का पौधा लगाए या खेती में बीज बोए फिर उसमें पक्षी और इंसान या जानवर जो भी खाते हैं उसकी तरफ से दान है” । इस चेरीटी का लाभ उसे हमेशा मिलेगा । इस कथन से जानकारी मिलती है कि पर्यावरण के प्रति जागृत हो कर मानव उसका घनिष्ठ मित्र बने। तत्पश्चात उसके संरक्षण को नियंत्रित किया जा सकता है । व्यक्तिगत रूप से इसके दूरगामी प्रभावों में पर्यावरण रक्षा के साथ मानव का जीवन भी बचाया जा सकता है । पवित्र क़ुरआन ने इसी और मार्गदर्शन किया है कि “जिसने एक इंसान की जान बचाई उसने पूरी मानवता की जान बचाई” ।
पर्यावरण संकट बहुत से प्रकार के होते हैं, जिनमें सबसे मुख्य है ग्लोबल वार्मिग है । इसके लिए वायु में मौजूद ग्रीन हाउस गैस 80% ज़िम्मेदार है । ग्रीन हाउस गैसें ग्रह के वातावरण या जलवायु में परिवर्तन और अंततः भूमंडलीय ऊष्मीकरण के लिए उत्तरदायी होती हैं। इनमें सबसे ज़्यादा उत्सर्जन कार्बन डाई आक्साइड, नाइट्रस आक्साइड, मीथेन, क्लोरो-फ्लोरो कार्बन, वाष्प, ओजोन आदि करती हैं। कार्बन डाई आक्साइड का उत्सर्जन पिछले 10 – 15 वर्षों में 40 गुणा बढ़ गया है। दूसरे शब्दों में औद्यौगिकीकरण के बाद से इसमें 100 गुणा की बढ़ोत्तरी हुई है। इन गैसों का उत्सर्जन आम प्रयोग के उपकरणों वातानुकूलक, फ्रिज, कंप्यूटर, स्कूटर, कार आदि से होता है। कार्बन डाई ऑक्साइड के उत्सर्जन का सबसे बड़ा स्रोत पेट्रोलियम ईंधन और परंपरागत चूल्हे हैं। पशुपालन से मीथेन का उत्सर्जन होता है। कोयला बिजली घर भी ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन के प्रमुख स्रोत हैं। हालाँकि क्लोरोफ्लोरो का प्रयोग भारत में बंद हो चुका है, लेकिन इसके स्थान पर प्रयोग हो रही गैस हाइड्रो क्लोरो-फ्लोरो कार्बन सबसे हानिकारक ग्रीन हाउस गैस है जो कार्बन डाई आक्साइड की तुलना में एक हज़ार गुना ज़्यादा हानिकारक है। पर्यावरण संकट से एक खतरा ओज़ोन परत को है । यह परत सूरज की तीव्र किरणों से ज़मीन की रक्षा करती है । इस प्रकार ज़मीन अधिक गर्म नहीं हो पाती और जीव जंतुओं के रहने सहने का स्थान बनी रहती है । पर्यावरण संकट से ओज़ोन परत में छेद होने से ज़मीन का तापमान बढ़ रहा है ।
पर्यावरण संकट से प्रदूषण में बढ़ोतरी हो रही है और प्राकृतिक वातावरण भी प्रभावित हो रहा है । करोड़ों वर्षों से संतुलित सभी प्राकृतिक अवयव तहस नहस हो रहे हैं । रासायनिक प्रदूषण के बढ़ने से एक ओर बीमारियां भी बढ़ रही हैं तो दूसरी ओर इस कायनात का प्राकृतिक वातावरण चौपट हो रहा है । ट्रांसपोर्ट और मशीनों की आवाज़ें यहां तक कि बिजली के बल्बों का प्रकाश भी प्राकृतिक वातावरण को बिगाड़ रहा है। जीव जंतुओं के भोजन , उनके खानपान की वस्तुओं पर प्रभाव पड़ रहा है । बहुतेरे जीव जंतु भोजन के रूप में विभिन्न प्रकार की चीज़ों का व्यवहार करते हैं लेकिन जब प्रकृति से वे नष्ट हो जाएंगी तो दूसरे जीवों के भोजन का संतुलन बिगड़ जाएगा ।इसके साथ अनेकों समस्याएं भयानक खतरे के रूप में खड़ी हो रही हैं , वे हमारी सोच के बाहर हैं ।
वैज्ञानिक अनुसंधानों का प्रभाव भी वातावरण पर पड़ रहा है । रासायनिक खाद् पदार्थों के आविष्कार ने उत्पादन में बढ़ोतरी तो की है किन्तु उसके साथ भोज्य पदार्थो की प्राकृतिक गुणों को प्रभावित कर दिया है जिसमे ज़मीन की पैदावार क्षमता भी प्रभावित हुई है । इस खाद से उत्पन्न अनाज मानव शरीर को क्षति तो ज़मीन को बंजर भी बना रहा है । ऐसी संभावनाएं व्यक्त की जा रहीं हैं कि भविष्य में खाने पीने का संकट भी खड़ा हो सकता है और ज़मीन के बंजर होने से फलदार पेड़ों का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा । तात्पर्य यह कि इंसान आंखें बंद कर भौतिकवाद की सुख सुविधाओं के दुष्परिणामों को स्वीकार कर रहा है ।
पवित्र क़ुरआन ने इस बाबत मार्ग दर्शन दिया है। इसका अवतरण ग्लोबल वार्मिंग की समस्या से निजात दिलाने के लिए नहीं बल्कि इंसानों को ऐसे मार्गदर्शन से है जो प्रकृति पर आधारित हैं । इंसान अगर इन प्राकृतिक नियमों का पालन करने लगे तो ग्लोबल वार्मिंग की समस्या पैदा ही नहीं हो सकेगी । इंसान ने प्रकृति के साथ जबसे शोषण का रवैया अपनाया है तो अनेकों समस्याएं पैदा हुईं हैं। इंसान ने इस ज़मीन को प्रकृति द्वारा निर्मित बहुमूल्य स्थान नहीं दिया । अल्लाह ने इस कायनात को जीव जंतुओं के रहने सहने के लिए अधिक उचित और संतुलित बनाया है । उसकी सृष्टि में अनगिनत हिकमतें रखी गई हैं, लेकिन इंसान ने उसके साथ जो रवैया अपनाया वह जमीन में फ़साद अर्थात संप्रदायिकता पैदा करने जैसा है ।प्रर्यावरण संरक्षण में इस्लाम का दृष्टिकोण पर नज़र डालें तो बहुत सी जानकारियां सामने आती हैं।
पवित्र क़ुरआन की सुरा आला पंक्ति क्र 1 – 3 में इरशाद हुआ कि ” (ऐ नबी) अपने सर्वोच्च रब के नाम की तस्बीह करो । जिसने पैदा किया और साम्य एवं संतुलन स्थापित किया। जिसने नियती / तक़दीर बनाई फिर राह दिखाई “।
उल्लेखित इन पंक्तियों के अलावा पवित्र क़ुरआन की पंक्तियों के अध्ययन से यह एहसास ज़रूर पैदा होता है कि अल्लाह ने कितनी हिकमत और दूरदर्शिता के साथ कायनात की रचना की है और जीव जंतु के लिए खानपान का प्रबंध किया है । जिस चीज़ की जितनी मात्रा में आवश्यकता थी वह सब उपलब्ध करा दी गई । उदाहरण के तौर पर जीव जंतुओं को पानी , ऑक्सीजन आदि की आवश्यकता है तो वह असंख्य और अत्यधिक मात्रा में उपलब्ध है । लेकिन कुछ चीजें ऐसी हैं जिनकी जीव जंतुओं को कम मात्रा में आवश्यकता होती है वह दुनिया में कम मात्रा में उपलब्ध है । इसी तरह दुनिया में हर एक चीज़ का संतुलन मौजूद है ।
क़ुदरत की रचना में अगर वास्तविक स्थिति बनी रहे तो किसी भी तरह की समस्या पैदा नहीं होती , लेकिन जब इंसान ने प्रर्यावरण से छेड़छाड़ की तो बहुत सी अनसुलझी समस्याएं उभर कर सामने आईं । इन्हीं समस्याओं में ग्लोबल वार्मिंग की समस्या भी है । यह जमीन के साथ फसाद / साम्प्रदायिकता का रूप है अर्थात ज़मीन में सांप्रदायिकता या बिगड़ फैलाना ।
पवित्र क़ुरआन में प्रर्यावरण के बारे में श्रेष्ठ चित्रण मिलता है । ईश्वर/ अल्लाह ने सुरा रूम की पंक्ति क्र. 41 में इरशाद फ़रमाया है कि ” थल और जल में बिगाड़ पैदा हो गया है लोगों के अपने हाथों की कमाई से ताकि मज़ा चखाएं उनको उनके कुछ कर्मों का, शायद कि वे बाज़ आ जाएं” ।
पवित्र क़ुरआन की सुरह फ़जर की पंक्ति क्र. 12 -13 में अल्लाह का इरशाद है कि “और उनमें बहुत बिगाड़ फैलाया था । आख़िरकार तुम्हारे रब ने अज़ाब का कोड़ा बरसा दिया ” ।
पवित्र क़ुरआन की सुरह आराफ़ की पंक्ति क्र 31में अल्लाह का फ़रमान है कि ” ऐ आदम की संतान हर इबादत के अवसर पर अपनी सज्जा से सुशोभित रहो और खाओ पियो और सीमा से आगे ना बढ़ो , अल्लाह सीमा से आगे बढ़ने वालों को पसंद नहीं करता” ।
ईश्वर/ अल्लाह ने इंसान और दूसरे जीव जंतुओं को उनकी आवश्यकताओं के अनुसार बहुमूल्य और असंख्य नेयमतें दी हैं । अगर इंसान उन से फ़ायदा हासिल करे, फ़िजूलखर्ची ना करे और ज़मीन में फ़साद पैदा ना करे तो वह अल्लाह की रहमत / दया का पात्र बनता है । लेकिन अगर वह अल्लाह की नेमतों की फ़िजूलखर्ची करे , अल्लाह की कायनात में बिगाड़ पैदा करे तो उसे विभिन्न रूप में अल्लाह का अज़ाब भुगतना पड़ता है । यह उसी के परिणाम हैं जिसके बारे में इंसान ने बिगाड़ पैदा किया है । दूसरे अर्थों में आज इंसान अपना बोया हुआ ही काट रहा है । बावजूद इसके वह सीधे रास्ते पर नहीं आ रहा कि ढीठ बनकर अपने रवैए पर जमा हुआ है ।
पैगंबर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने आज से 14 सौ वर्ष पूर्व पानी के उपयोग के बारे में विशेष ध्यानाकर्षण कराया था। उसे यदि आज स्वीकार किया जाए तो पानी पैसा भी है और ज़िन्दगी भी । पानी पर्यावरण संरक्षण के लिए एक अनमोल माध्यम है । ऐसी जानकारी है कि पीने पानी 1 ही प्रतिशत है , शेष पानी खारा है । यह पीने योग्य पानी जो नहरों , पहाड़ों , ग्लेशियर , नदियों से हम तक पहुंचता है इस न जाने उसमें कितने लोगों का हक है । इबादत और बंदगी में पवित्रता प्राप्त करने के लिए पानी की ही आवश्यकता पड़ती है । जिसमें पहले वज़ू किया जाता है ।
वज़ू में आवश्यकता से अधिक पानी के इस्तेमाल पर इस्लाम ने पाबंदी लगाई है , भले ही वजू नदी के किनारे क्यों ना किया जा रहा हो । यहां सोचने की बात है कि वजू में सिर्फ दो मग पानी की आवश्यकता पड़ती है लेकिन कहीं फिजूलखर्ची के रूप में कई गुना अधिक पानी बहा दिया जाता है। वजू में तीन बार अंगों को धोने से मुकम्मल वज़ू हो जाता है लेकिन चौथी बार किसी अंग को धोना फिजूलखर्ची में आता है।
पर्यावरण का गहरा संबंध हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की जिंदगी और उनके मार्ग निर्देशन के साथ है। एक अजीब बात यह है कि हज के दौरान अहराम की स्थिति में पौधों को नहीं तोड़ा जा सकता , शिकार नहीं किया जा सकता । लाखों लोग जो एक आबादी में प्रवेश करते हैं वहां पर पाबंदियां लगा दी गईं । आज सिद्ध होता है कि यह सब कुछ पर्यावरण को नियंत्रण करने के लिए कदम उठाए गए थे। पवित्र क़ुरआन के अनुसार ” हमने पानी से ही हर चीज़ को जिंदगी दी है। यहां इसकी रक्षा संवर्धन के रूप में उसे बचाना और उसको आवश्यकता से अधिक इस्तेमाल पर हमें अल्लाह तआला को उसका जवाब देना होगा ।
विचारणीय बात यह है कि दैनिक जिंदगी में जब हम दांतों में ब्रश , दतुन करते हैं तो एक चुल्लू मुंह में पानी डालने और उस समय नल खुला रखते हैं , ना जाने कितना पानी उस समय बर्बाद हो जाता है। इसी तरह स्नान के समय अधिक से अधिक पानी यूं ही बहा दिया जाता है । पानी को बर्बाद करना किसी भी कीमत में काबिले कुबूल नहीं है। इस्लाम में आस्था (अक़ीदे) की बुनियाद यह है कि पैगंबर हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इस बाबत जिस तरह आदेश दिया है और जिन उद्देश्यों को लेकर जो कुछ फरमाया है उन सारी चीजों को नोटिस में रखना नबूवत पर ईमान है । यदि कोई इन बातों को नोटिस में नहीं रखता तो मानो वह तौहीन और इनकार कर रहा है। यदि वह जानबूझकर करता है तो वह इस्लाम से खारिज हो जाएगा । नमाज , रोजा , जकात ही मात्र इस्लामी अहकामात नहीं हैं , इन चीजों पर भी ध्यान दिना जाना चाहिए ।
इंसान ज़मीन पर अल्लाह का उत्तराधिकारी है । वह कायनात की सुरक्षा के लिए है ना कि उसमें बिगड़ डालने के लिए । अल्लाह ने अपनी तमाम नेयमतें इंसान को दी हैं ताकि वह उनका एहसान माने, शुक्र अदा करे। पवित्र क़ुरआन में सूरह लुकमान की पंक्ति क्र 20 में अल्लाह तआला का इरशाद है कि ” क्या तुम लोग नहीं देखते कि अल्लाह ने ज़मीन और आसमान की सारी चीज़ें तुम्हारे लिए वशीभूत कर रखी हैं और अपनी खुली और छिपी नेयमतें तुम पर पूर्ण कर दी हैं । इस पर हाल यह है कि इंसानों में से कुछ लोग हैं जो अल्लाह के बारे में झगड़ते हैं बिना इसके कि उसके पास कोई ज्ञान हो या मार्गदर्शन या कोई प्रकाश दिखाई देने वाली किताब” ।
स्पष्ट हो कि इंसान ज़मीन पर अल्लाह के उत्तराधिकारी की हैसियत से उसकी ज़िम्मेदारी थी कि अल्लाह की दी हुई चीज़ों की सुरक्षा करे और उन्हें अपने काम में लाए। मगर आगे बढ़कर और नित नए अविष्कारों के साथ प्रकृति में वह बिगाड़ का कारण बन गया । उसने बिना कारण चीज़ों का अत्यधिक उपभोग और फ़िज़ूल इस्तेमाल करना आरंभ कर दिया । अल्लाह की रचना में हस्तक्षेप के चलते कायनात के प्रबंधन में व्यवधान आया जो इंसान के लिए भारी पड़ रहा है । पवित्र क़ुरआन की सूरह रहमान पंक्ति क्र 5 से 8 में अल्लाह का फ़रमान है कि ” सूरज और चांद एक हिसाब के पाबंद हैं और तारे और पेड़ सब सजदे में हैं । आसमान को उसने ऊंचा किया और तुला स्थापित कर दी “।
पर्यावरण संरक्षण के संबंध में इस्लामी दृष्टिकोण पर ऐसी बहुत सी बातें बताई गई हैं । पैगंबर हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के प्रसिद्ध एक कथन से ज्ञात होता है कि आप स अ व ने फ़रमाया “कोई भी मुसलमान जो एक दरख़्त का पौधा लगाए या खेती में बीज बोए फिर उसमें पक्षी और इंसान या जानवर जो भी खाते हैं उसकी तरफ से दान है” । इस चेरीटी का लाभ उसे हमेशा मिलेगा । इस कथन से हमें जानकारी मिलती है कि हमें वृक्षारोपण करना चाहिए जिससे कि जीव जंतुओं के साथ ही आम जन को भी इसका लाभ मिले ।
जीव जंतुओं के संबंध में तिर्मिज़ी ग्रंथ के अनुसार पैगम्बर हजरत मुहम्मद स अ व ने किसी जानदार को निशाना बनाने से मना किया है । अरब वासी तीरंदाजी में बहुत महिर थे और इसका प्रशिक्षण लेने के लिए वे जानवरों को निशाना बनाते थे । ऐसा करने से आपने मना फरमाया । एक बार पैगंबर हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मदीना तशरीफ लाए वहां के लोग जिंदा ऊंटों , बकरियों के पुट काटा करते थे । आपने फरमाया जिंदा जानवर का काटा हुआ मांस मुरदार है । इससे जानवर को पीड़ा होती है , यह अमानवीयता से भरा हुआ काम है और ऐसा मांस हराम भी है । हलाल जानवर का मांस तब ही वैध है जबकि वह शरीयत के अनुसार ज़िबाह किया गया हो ।
पक्षियों के संबंध में इब्ने माजा ग्रंथ में
लटोरा , मेंढक , चींटी और हुदहुद की हत्या करने से मना फरमाया है । इन पर अगर दृष्टि डाली जाए तो पता चलता है कि ये कीटनाशक और सड़ी गली वस्तुओं की साफ-सफाई का काम करते हैं ।
इब्ने माजा ग्रंथ के अनुसार कंकरी मारने से भी मना किया गया है । इससे ना तो शिकार होता है ना ही यह दुश्मन को क्षति पहुंचाती है । बल्कि इससे दांत टूट जाता है आंख फूट जाती है।
ऐसा देखने में आता है कि अक्सर लोग कुत्तों , पक्षियों को पत्थर मारते हैं , इससे उन्हें क्षति पहुंचती है ।
तिर्मिजी ग्रंथ के अनुसार कि “तुम में से कोई व्यक्ति ठहरे हुए पानी में पेशाब न करे और उससे वजू कर ले” । इससे यह भी ज्ञात होता है कि पानी के स्रोत कीमती होते हैं । ऐसा करने से स्वच्छ जल गंदा हो जाता है । झरने , नदियों , तालाबों में किसी भी प्रकार की गंदगी करने से मना किया गया है ।
बिल्ली के झूठे पानी से जल अपवित्र नहीं होता । इसलिए इन जीव जंतुओं , जानवरों और पक्षियों की प्यास की चिंता करते हुए उन के लिए पर्याप्त पानी का प्रबंध करना चाहिए ।
पैगंबर हजरत मुहम्मद स अ व को पहला पर्यावरण संरक्षण तज्ञ कहने पर कोई अतिशयोक्ति नहीं होना चाहिए । उन्होंने मदीना के पास पर्यावरण संरक्षण को मद्देनजर रखते हुए बफर ज़ोन के तहत कई मील तक वृक्षों के काटने और जानवरों के शिकार के लिए सख्त मनाही के आदेश जारी किए गए थे ।
अंत में यह व्यक्त करना भी आवश्यक प्रतीत होता है कि हमारे देश में इस्लामी आदर्शों पर चलने वाला संगठन ” जमाअ़त ए इस्लामी हिंद” पिछले 75 वर्षों से देशहित और चहुंमुखी विकास में महत्वपूर्ण भूमिकाओं को निभाते आ रहा है।देश , राज्य और शहर में इसकी भूमिकाएं जग जाहिर हैं। पर्यावरण संरक्षण को लेकर वह* चिंतित दिखाई देता है । राज्य में *पर्यावरण संरक्षण को लेकर प्रतिवर्ष जनजाग्रति अभियान और विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए *जाते हैं। पर्यावरण संरक्षण पर शुक्रवार को मस्जिदों में प्रवचनों का दौर चलता है*। *जमाअ़त ए इस्लामी हिंद महाराष्ट्र इस वर्ष राज्य में पर्यावरण सप्ताह को “संतुलित पर्यावरणासाठी संतुलित विचार” नामी शीर्षक के तहत मनाने जा रही है । इस के साथ ही वह शहर की महानगर पालिकाओं को मानसून पूर्व विभिन्न कार्यों की मांगों को लेकर सुझाव भी प्रस्तुत करती है । इस में बंद नालियों की सफाई , शहर में चारों ओर पड़े कचरे के ढेर को साफ करना , प्लास्टिक के उपयोग को पूर्णतया समाप्त करने में वैज्ञानिक तरीकों को व्यवहार में लाना । जलवायु परिवर्तन के कारण शहर में मच्छरों को पनपने से रोकने के लिए फॉगिंग मशीन से छिड़काव की मांग भी जुड़ी होती है।तत्पश्चात वृक्षारोपण कर अभियान को सफल बनाने के प्रयास किए जाते हैं।*