घर परिवार , आस पड़ोस के बाद समाज का विस्तृत क्षेत्र आता है ।
इसके अन्दर इंसानों को अनेकों प्रकार के लोगों से मामला पेश आता है। इन सबके साथ उसकी जो नीति होनी चाहिए, सैद्धांतिक रूप से उसका निर्धारण पवित्र कुरआन की 4:36 में इन शब्दों से किया गया है कि ” …….अल्लाह ने आदेश दिया है अच्छा व्यवहार करने का – मां -बाप के साथ और रिश्तेदारों, अनाथों, निर्धनों, रिश्तेदार पड़ोसियों, अपरिचित पड़ोसियों, साथ बैठने वालों, मुसाफ़िरों और गुलामों के साथ।”
इंसानों के संबंध मानवीय आधार की दृष्टि से जितने प्रकार के हो सकते थे, उपरोक्त पंक्ति में एक-एक का नाम लेकर गिना दिया गया है और सभी के बारे में यह व्यापक निर्देश दे दिये गए हैं कि उनके साथ एक मुसलमान का व्यवहार मुख्य और अनिवार्य रूप से ‘सद् व्यवहार (उपकार’) और भलाई का होना चाहिए। हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के इस संबंध में निरदेशित संदेशों के तहत हरहाल में मुस्लिम समुदाय को अपनी ज़िम्मेदारियां पूरा करना चाहिए । व्यक्तिगत नैतिक ज़िम्मेदारियों के रूप में आप मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हर मुस्लिम आस्तिक के लिए जीने का सबसे अच्छा उदाहरण प्रदान किया है। जीवन के हर पहलू में, व्यक्तिगत विकास से लेकर समाज के निर्माण तक हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के निर्देश हैं।
रिश्ते नाते के तहत हज़रत अबू हुरैरा से रिवायत है कि एक शख़्स ने अर्ज़ किया अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! लोगों के बीच अच्छी संगति का सबसे अधिक हक़दार कौन है? पैग़ंबर हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कहा: तुम्हारी मां, फिर तुम्हारी मां फिर तुम्हारी मां फिर तुम्हारे पिता, फिर करीबी (रिश्तेदार)। ”(सहीह मुस्लिम)।
पत्नी के अधिकारों के संबंध में इस्लामी शरीयत पति पर पत्नी के अधिकारों का निर्धारण कर उसकी गरिमा का हुक्म देती है। हज़रत अब्दुल्ला बिन अम्र रज़ि से रिवायत है कि हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि “दुनिया एक पूर्ण सुख है और दुनिया का सबसे अच्छा सुख एक अच्छी पत्नी है।” (मुस्लिम शरीफ)
हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया पैग़ंबर हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपने रिश्तेदारों पर खर्च करने को प्रोत्साहित किया और कहा: “देने वाले का हाथ ऊपर होता है, पहले अपने माता-पिता और भाई-बहनों पर खर्च करो , फिर अपने करीबी रिश्तेदारों पर” (मुसनद)।
दूसरी ओर मुस्लिम समुदाय को यह सुनिश्चित करने का प्रयास करना चाहिए कि हमारे किसी भी कार्य से इस्लाम और मुसलमानों के नाम को कलंकित करने का कोई अवसर इस्लाम विरोधी शक्तियों के हाथों में न आने पाए । पवित्र क़ुरआन में फ़रमाया गया कि “तुम बेहतरीन उम्मत हो जिसे लोगों के लिये निकाला गया है।” दुनिया की दीगर क़ौमें अपने लिये ज़िन्दा रहती हैं। उनके पेशे नज़र अपनी तरक्की, अपनी बेहतरी, अपना कल्याण और अपनी इज़्ज़त व अज़मत होती है। लेकिन पवित्र क़ुरआन के अनुसार “तुम वह बेहतरीन उम्मत हो जिसे लोगों की रहनुमाई के लिये मबऊस किया गया है “।
मुस्लमान की ज़िन्दगी का मक़सद ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को हिदायत की तरफ़ बुलाना और लोगों को जहन्नम की आग से बचाने की कोशिश करना है। अर्थात मुस्लिम समुदाय को जीना है उनके लिये जो जीते हैं अपने लिये।
पवित्र क़ुरआन की सुरा आले इमरान की पंक्ति क्र 10 में बताया गया है कि “ऐ अल्लाह और उसके रसूल सल्ल. पर ईमान रखने वाले लोगों!) तुम बेहतरीन उम्मत (संगठन या जमाअत) हो, जो लोगों की (रहनुमाई/मार्गदर्शन) के लिए निकाली गई है, तुम नेकी (अच्छे और भले कामों) का हुक्म (आदेश) देते हो, बुराई से रोकते हो, और अल्लाह तआला पर ईमान रखते ह । इन तमाम बातों से पता चलता है कि हर मुसलमान का पहला फ़र्ज़ यह है कि वह अपने कर्मों, नैतिकता, आदतों और मामलों को शरीयत और सुन्नत के अनुसार ईमान और अक़ीदे की दुरुस्तगी के साथ अपने परिवार, परिवार के लोगों, मोहल्ले के लोगों, शहर के लोगों, बल्कि सभी लोगों को अच्छाई के रास्ते पर लाने की चिंता करनी चाहिए। अल्लाह सर्वशक्तिमान ने सूरह “वल अस्र” में ज़माने की क़सम खा कर कहा है कि सभी इंसान नुकसान और घाटे में हैं, सिवाय उनके जो ईमान वाले हों ।
समाज के बाद प्रशासनिक क्षेत्र आता है। इस्लामी समाज में प्रत्येक व्यक्ति की राजनैतिक और प्रबन्धकीय दृष्टि से भी एक निश्चित हैसियत होती है। उन्हें आदेशों के पालन में कोई कोताही नहीं बरतनी चाहिए। देश हित में उसका व्यवहार वफ़ादारी, ख़ैर ख़्वाही और निष्ठा का होना चाहिए।
मुसलमानों के जीवन का एक क्षेत्र देशवासियों के साथ मामलों और सम्बन्धों के आधार पर अस्तित्व में आता है। यहां उसे जिस नैतिक आचरण का पाबन्द होना चाहिए, उसका मौलिक सिद्धांत पवित्र कुरआन 5:8 में मौजूद है कि “ऐ ईमान वालो! अल्लाह के (धर्म के) लिए तत्पर रहने वाले और न्याय की गवाही देने वाले बनो और किसी समुदाय की दुश्मनी (भी) तुम्हें न्याय से कभी भी अलग न रखने पाए। न्याय करो! यही तक्रवा से लगती हुई बात है।”
नैतिक जीवन के इन पाठों से ही इस्लाम के मौलिक अधिकारों का निर्माण होता है। ये सामाजिक , प्रशासनिक और देशवासियों से पारस्परिक संबंधों को सुदृढ़ करते हैं। इसलिए हमें समाज और देश में शांतिपूर्ण और सुखी समाज बनाने के लिए अपनी सभी ज़िम्मेदारियों को पूरा करना होगा जो क़ुरआन और सुन्नत की रोशनी में ऊपर वर्णित की गई हैं।