आंखें , अल्लाह तआ़ला की सबसे सुंदर, अनमोल , अमूल्य उपहार और धरोहर हैं । आंखों के बिना हमारा जीवन अधूरा और बेरंग है। अल्लाह तआ़ला ने इन आंखों में 26 करोड़ बल्ब लगाकर इंसान से एक बिल मांगा है और वह बिल यह कि इस से ग़लत , हराम चीज़ें बिल्कुल ही न देखना ! इसलिए हराम चीज़ों को न देखते हुए इंसान को अपनी नजरें गिरा लेना चाहिए और पलकें बंद कर लेना चाहिए। लेकिन हम में से कौन इस बिल की शर्त को पूरा करता है? फिर भी इन आंखों से हराम , अवैध चीज़ों के देखने के बावजूद अल्लाह तआ़ला किसी गुनाहगार इंसान की लाइन नहीं काटता , जबकि बिजली का बिल अदा न करने पर बिजली विभाग का नोटिस और उसके कनेक्शन की कटौती का सामना हमें करना पड़ता हैं।
नज़रें गिरा लेना , पलकें बंद कर लेना यह एक शर्म, हया , लज्जा से जुड़ा हुआ मामला है , वाज़ेह रहे कि शर्म हया, नूरे ईमानी से पैदा होती है। इंसान अपने जीवन को बचाने के लिए इसी शर्म , हया , लज्जा की युक्ति और तरकीब को व्यवहार में लाता है। यह शर्म , हया , लज्जा मर्द की बजाए औरतों में अधिक रहती है। पुरुषों में कार्यक्षमता की अधिकता से वे सक्रिय रहते हैं, पुरुष ही पहले पहल करता और अपनी गतिविधियों को आगे बढ़ाता है । महिलाएं शर्म – हया , हुस्न, सौंदर्य, सुंदरता के कारण उन पहल जैसे मामलों से बचती हैं। प्राकृतिक तौर पर लज्जा, शर्म हया महिलाओं का बड़ा क़ीमती ज़ेवर है ।
एक सदी पहले शर्म हया के साथ ही महिलाएं अपने शरीर पर संपूर्ण परिधान पहना करती थीं । उनकी यह पोशाक, परिधान पुरानी फ़िल्मों में भी जीवित था । लेकिन एक सदी से महिलाओं के इस ज़ेवर को पश्चिमी सभ्यता ने उनसे छीन लिया । स्कर्ट और मिनी स्कर्ट के साथ ही हसीन नाम देकर विभिन्न प्रतियोगिताओं में महिलाओं की लज्जा, हया के बुनियादी ढांचे को नेस्तनाबूद कर उन्हें अर्ध नग्न कर दिया।
महिलाएं जिस भी तरह से पुरुष के सामने होती हों , पुरूषों को उनसे निगाहें बचाने का आदेश दिया गया है।
पवित्र क़ुरआन के सूरह अल-नूर में पुरुषों से कहा गया कि “ईमान वालों से कह दो कि वे अपनी निगाहें नीची रखें और अपने गुप्त अंगों की रक्षा करें; यह उनके लिए अधिक सभ्य है। निस्संदेह, जो कुछ वे करते हैं, अल्लाह उससे भली-भांति परिचित है”। इसके बावजूद पुरुषों को महिलाओं से संबंधित जिन चीज़ों को देखने से मना किया गया है, उन पर नज़र नहीं डालना चाहिए और वर्जित चीज़ों से अपनी आंखें नीची कर लेना चाहिए। यदि उन्हें देख भी लें तो दोबारा उस पर नज़र नहीं पड़नी चाहिए । सहीह मुस्लिम नामक हदीस ग्रंथ में है कि हज़रत जरीर बिन अब्दुल्ला रज़ि ने पैग़ंबर हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अचानक नज़र पड़ जाने के बारे में पूछा तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया अपनी निगाह फ़ौरन हटा लो।” हज़रत अ़ली रज़ि से आप सअ़व ने फ़रमाया , अ़ली, नज़र पर नज़र न जमाओ अचानक जो पड़ गई वह तो माफ़ है, जानबूझ कर माफ़ नहीं”। पैग़ंबर हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने एक बार कहा “रास्तों पर बैठने से बचो।” लोगों ने कहा कि हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम काम-काज के लिए वह तो ज़रूरी है । आप सअ़व ने फ़रमाया “अच्छा तो रास्तों का हक़ अदा करते रहो”। उन्होंने कहा वह क्या है? फ़रमाया ”नीची निगाह रखना” ।
इस प्रकार इस्लाम ने महिलाओं को इज़्ज़त, सम्मान के धागे में पिरो कर उनकी मान मर्यादाओं को बहुत ही उच्च दर्जे पर पहुंच दिया है। जब अल्लाह तआ़ला ने इस मामले में कड़ी हिदायत दीं हैं फिर उनकी नाफ़रमानी , अवज्ञा करने का भी बहुत बड़ा परिणाम कबीरा गुनाह बताया है, कबीरा गुनाह को महा पाप कहा जाता है। वाज़ेह हो कि वर्जित, हराम बताई गयी चीज़ों पर निगाह पड़ने के बाद दिल में फ़साद , उपद्रव पैदा होता है, इसलिए गुप्तांगों की रक्षा के लिए नज़रें नीचे करने का आदेश दिया गया है। ऐसी नज़र इबलीस , शैतान के तीरों में से एक तीर है । जो लोग हराम चीज़ों पर नज़र नहीं डालते अल्लाह उनकी आंखों में नूर और रोशनी भर देता है और उनके हृदय को भी नूरानी कर देता है।
पैग़ंबर हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फ़रमाते हैं कि ” जिस की नज़र किसी महिला की सुंदरता , हुस्नो जमाल पर पड़ जाए फिर वह अपनी आंखें हटा ले अल्लाह तआ़ला इस के बदले उसे एक ऐसी इबादत उसे अता फ़रमाते हैं कि जिसकी लज्ज़त वह अपने दिल में पाता है”।
बेहयाई और अनैतिकता फैलाने के लिए केवल महिलाएं ही ज़िम्मेदार नहीं पुरुष भी ज़िम्मेदार हैं। अगर शर्म हया औरत का गहना है तो वह पुरुष की ग़ैरत और सम्मान है। बेहया ( व्यभिचारी) पुरुष भी समाज का अभिशाप हैं। पुरुष यह भूल जाते हैं कि जिस पवित्र क़ुरआन में महिलाओं की शर्म और हिजाब का जिक्र है, उसी पवित्र क़ुरआन में पुरुषों को भी शर्म हया का भी आदेश दिया गया है। पवित्र क़ुरआन के सूरह अल-नूर में पुरुषों से कहा गया कि “ईमान वालों से कह दो कि वे अपनी निगाहें नीची रखें और अपने गुप्त अंगों की रक्षा करें; यह उनके लिए अधिक सभ्य है. निस्संदेह, जो कुछ वे करते हैं, अल्लाह उससे भली-भांति परिचित है”।
पैग़ंबर हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने शर्म हया को ईमान का एक शोबा बताया है। इससे यह ज्ञात होता है कि जिस व्यक्ति में शर्म , हया लज्जा नहीं मानो उसमें ईमान नहीं ।
पैगम्बर हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की नैतिकताएं अद्वितीय और अनुकरण के योग्य हैं। उनमें नैतिकताओं के सभी गुण उच्चतम से उच्चतम स्तर तक मौजूद थे और शर्मीलेपन , हया का गुण इतना प्रमुख था कि पैग़ंबर के आदर्श साथी उनका उल्लेख करते हुए कहते थे कि “आप सअ़व आला ख़ानदान (कुलीन परिवार ) की पर्दानशीन (घूंघट वाली) कुंवारी लड़कियों से भी अधिक शर्मीले थे। (सहीह मुस्लिम)
आख़िर में दुआ है कि अल्लाह तआ़ला हम सब को शर्म हया का पाबंद बनाए , आमीन ।