मुसलमान का मुसलमान रहने के लिए ज्ञान (इल्म) की आवश्यकता है बहुत ज़रूरी (मुस्लिम समुदाय के लिए कुछ आवश्यक बातें) — डॉ एम ए रशीद, नागपुर

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जान को बचाने वाली चीज़ों के लिए हम लोग जितना समय और जितनी धन दौलत ख़र्च करते हैं, क्या उस समय और परिश्रम का दसवां भाग भी ईमान को बचाने वाली चीज़ों के लिए ख़र्च नहीं कर सकते !?
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इंसान का यह जानते हुए कि इस्लाम और नास्तिक अर्थात कुफ्र में क्या अन्तर है और ईश्वर , अल्लाह को एक मानने और उसके साथ किसी को साझी ठहराने में क्या अन्तर है, इस का भास एक उदाहरण से बिल्कुल उसी प्रकार से किया जा सकता है जिस में कि कोई इंसान अंधेरे में एक संकरे और संकीर्ण मार्ग पर चल रहा हो , हो सकता हो कि वह सीधे इस संकीर्ण मार्ग पर चलते-चलते अचानक उसके डग किसी दूसरे मार्ग की ओर मुड़ जाएं और उसे यह ज्ञात भी न हो कि मैं सीधी राह से हट गया हूं, और ऐसा भी हो सकता है कि इस संकीर्ण मार्ग पर उसे कोई दानव – असुर खड़ा हुआ मिल जाए ! और वह दानव उस से कहे कि ओह भाई ! तुम इस प्रकार के अंधेरे में यह मार्ग भूल जाओगे, आओ मैं तुम्हें गंतव्य तक पहुंचा‌ देता दूं। यह बेचारा अंधेरे का यात्री स्वयं अपनी आंखों से नहीं देख सकता कि सीधा मार्ग कौन-सा है, इसलिए अज्ञानता के कारण अपना हाथ उस दानव – असुर के हाथ में दे देगा , जिसकी नियत ही मानवीय आधारों पर नहीं होती है , वह उसको भटका कर कहीं से कहीं ओर ले चले जाएगा ।‌ ऐसी भयानक दशाएं उस व्यक्ति के सामने इसी लिए भी पेश आती हैं कि उसके स्वयं के पास कोई प्रकाश नहीं होता है और वह स्वयं अपने मार्ग के चिन्हों को नहीं जान सकता । अगर उसके पास प्रकाश और ज्ञान मौजूद हो तो स्पष्ट है कि न तो वह मार्ग भूलेगा और न ही कोई दूसरा उसको विचलित और भटका सकेगा। यह इसी से समझ लीजिए कि मुसलमान के लिए सबसे बड़ा भय और खतरा अगर कोई है तो यही कि वह स्वयं इस्लाम की शिकाओं से अपरिचित हो, वह स्वयं यह न जानता हो कि कुरआन क्या सिखाता है और हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम क्या मार्ग निर्देश दे गए हैं।
अज्ञानता के कारण से वह स्वयं भी भटक सकता है और दूसरे दानव भी उसको विचलित कर सकते हैं। लेकिन अगर उसके पास ज्ञान की पूंजी हो तो वह जीवन के हर पग पर इस्लाम के सीधे रास्ते को देख सकेगा, हर पग और पल पर अस्तिक (कुफ्र), बहुदेववादी (शिर्क), गुमराही, बदकारी और पापो के जो भी
टेढ़े रास्ते बीच में आएंगे उनको पहचान कर उनसे बच सकेगा और जो कोई रास्ते में उसको बहकाने वाला मिलेगा तो उसकी दो-चार बातें ही सुनकर वह स्वयं समझ जाएगा कि वह बहकाने वाला इंसान है, उस की बातें नहीं माननी चाहिए । इस्लाम ने इसीलिए ज्ञान (इल्म) की बाबत विशेष ध्यान और महत्व दिया है।
प्रिय पाठकों यह ज्ञान (इल्म) जिस की आवश्यकता के संबंध में आप से बताया जा रहा रहा है कि उस पर ही सभी के मुसलमान होने और मुसलमान रहने का दारोमदार है चाहे उसमें आपके परिवार के सदस्यगण कितने ही क्यों न आते हों ! यह कोई असाधारण बात नहीं है कि इस से लापरवाही बरती जाए । सोचने की बात है कि जब कोई अपने धंधे पानी, अपनी खेती-बाड़ी के कामों में लापरवाही और ग़फ़लत नहीं बरत सकता, अपने व्यवसायिक मामलों और अपनी फ़सलों को पानी देने और उनकी देखभाल करने में लापरवाही नहीं कर सकता , अपने पालतू पशुओं को चारा देने में लापरवाही नहीं बरत सकता वह सिर्फ़ इसलिए कि अगर मैं उस बाबत किसी प्रकार की लापरवाही करुंगा तो उनके और मेरे भूखे मरने की स्थिति आन पड़ेगी और जान जैसी प्यारी चीज़ चली जाएगी।
फिर बताईए कि उस ज्ञान या इल्म को प्राप्त करने में लापरवाही और ग़फ़लत क्यों बरती जाती हैं जिस पर मुसलमान बने और मुसलमान रहने का दारोमदार है ? क्या इस में यह भय नहीं है कि ईमान जैसी प्यारी चीज़ चली जाएगी उसका सर्वनाश हो जाएगा ? क्या ईमान, जान से अधिक प्यारी वस्तु नहीं है ? जान को बचाने वाली चीज़ों के लिए हम में से जितने लोग जितना समय और जितनी धन दौलत ख़र्च करते हैं, क्या उस समय और परिश्रम का दसवां भाग भी ईमान को बचाने वाली चीज़ों के लिए ख़र्च नहीं कर सकते ?
यहां ऐसा नहीं कहा जा रहा है कि हर इंसान मौलवी बने । बड़ी-बड़ी किताबें पढ़े और अपनी आयु के दस-बारह साल पढ़ने में लगा दे । मुसलमान बनने के लिए इतना पढ़ने की आवश्यकता नहीं है। यहां चाहत यही है कि प्रत्येक व्यक्ति दिन-रात के चौबीस घण्टों में से सिर्फ़ एक घण्टा दीन का ज्ञान (इल्म) सीखने में ख़र्च करे। कम से कम इतना ज्ञान (इल्म) प्रत्येक महिला पुरुष मुसलमान बच्चे, बूढ़े और जवान को प्राप्त होना चाहिए कि क़ुरआन जिस उद्देश्य और जिस शिक्षा को लेकर आया है लोग उसका अभिप्राय और निचोड़ जान लें । पैग़म्बर हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने जिन बातों को मिटाने और उनके स्थान पर जिन बातों औ आदर्शों को स्थापित करने के लिए अल्लाह, ईश्वर ने उन्हें भेजा था उनका गंभीरता से अध्ययन किया जाना चाहिए और जीवन के उन विशेष धर्म आचारों से परिचित हो जाना चाहिए जिन्हें अल्लाह ने मुसलमानों के लिए निर्धारित किया है। इतने ज्ञान (इल्म ) के लिए बहुत अधिक समय की आवश्यकता नहीं पड़ती और अगर ईमान प्यारा हो तो इसके लिए एक घंटा प्रतिदिन निकालना कोई असंभव बात नहीं है ।