रमज़ानुल मुबारक के अब रोज़ेदारों से रुख़्सत के दिन क़रीब आ गए हैं। इस लिहाज़ से सदक़ा ए फ़ित्र का ज़माना आ गया है। यह सदक़ा ए फ़ित्र वित्तीय दान है जिसे पैगंबर हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ज़कात से पहले उस वर्ष में दिया जिसमें रमजान का रोज़ा अनिवार्य हुआ। सदक़ा ए फ़ित्र गरीबों और जरूरतमंदों को दिया जाता है। इसे फित्राना भी कहते हैं। इसे अदा करना हर अमीर के लिए ज़रूरी है ताकि ग़रीब और ज़रूरतमंद लोग भी ईद की खुशी में शामिल हो सकें। इसके अलावा सदक़ा ए फ़ित्र रोज़ेदार को बेकार और बुरे कार्यों से शुद्ध करने का एक साधन भी है। हज़रत इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सदक़ा ए फ़ित्र को इस लिए फ़र्ज़ क़रार दिया कि यह रोज़ेदार के बेकार और गंदी बातो से पाकी और गरीबों के लिए खान पान का बाइस बनता है।
आसिम अकरम (अबु अदीम) फ़लाही ने सदक़ा ए फ़ित्र के विषय पर कुछ हदीसों के हवाले से लिखा है कि “अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ि अल्लाहु अन्हुमा से रिवायत है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने ग़ुलाम, आज़ाद, मर्द, औरत, छोटे ,बड़े तमाम मुसलमानों पर फ़ित्र की ज़कात (सदक़ा ए फ़ित्र) एक साअ़ खुजूर या एक साअ़ जौ फ़र्ज़ क़रार दिया था ।
आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का आदेश था कि ईदगाह जाने से पहले पहले यह अदा कर दिया जाय।
(सही बुख़ारी हदीस नंबर 1503 / किताबुज़ ज़कात , मुसलमानों पर खुजूर और जौ के सदक़ा ए फ़ित्र के बयान में)
“अबु सईद ख़ुदरी रज़ियल्लाहु अन्हु ने बयान किया कि हम नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के ज़माने में सदक़ा ए फ़ित्र एक साअ़ अनाज या एक साअ़ खुजूर या एक साअ़ जौ या एक साअ़ किशमिश देते थे। फिर जब अमीर मुआविया रज़ि अल्लाहु अन्हु मदीना आये और गेहूँ की आमदनी हुई तो कहने लगे मेरी राय में गेंहू का एक मुद दूसरे अनाज के दो मुद के बराबर है।”
(सही बुख़ारी हदीस नंबर 1508/ किताबुज़ ज़कात, किशमिश के सदक़े के बयान में)
और बुख़ारी 1506 नंबर हदीस में यानी एक साअ़ पनीर भी आया है।
मर्द अपनी जानिब से और उन लोगों की तरफ़ से सदक़ा फ़ित्र अदा करे जिनकी वे किफ़ालत करता है जैसे, बीवी, औलाद (जो बच्चा माँ के पेट में है उसका सदक़ा फ़ित्र नहीं अदा किया जायेगा)
“इब्ने अब्बास रज़ि अल्लाहु अन्हुमा बयान करते हैं कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने रोज़ों में बेकार व गंदे अमल से पाकी हासिल करने के लिए और मिस्कीनों (निर्धन) के खानपान के वास्ते सदक़ा ए फ़ित्र को फ़र्ज़ क़रार दिया। जिसने ईद की नमाज़ से पहले अदा किया उस की ज़कात मक़बूल हो गई और जिसने नमाज़ के बाद अदा किया तो यह एक सदक़ा ही है।
(सुनन अबु दाऊद, हदीस नंबर 1609/ किताबुज़ ज़कात , सदक़ा फ़ित्र के सिलसिले में — सुनन इब्ने माजा हदीस नंबर 1827 )
नाफ़े कहते हैं कि अब्दुल्लाह बिन उमर रज़िअल्लाहु अन्हुमा ने बयान किया कि बेशक अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने सदक़ा ए फ़ित्र एक साअ़ खजूर या एक साअ़ जौ निकालने का हुक्म दिया था। इब्ने उमर कहते हैं कि लोगों ने गेंहू के दो मुद को उस के बराबर ठहरा लिया।
(सही बुख़ारी हदीस नंबर 1507 / किताबुज़ ज़कात, सदक़ा फ़ित्र एक साअ है।
नोट :- एक साअ़ में 4 मुद होते हैं इसलिए 2 मुद आधे साअ़ के बराबर हुआ।
अबु सईद ख़ुदरी रज़ि अल्लाहु अन्हु ने बयान किया कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के ज़माने में हम सदक़ा ए फ़ित्र हर छोटे बड़े, आज़ाद और गुलाम की तरफ़ से 3 क़िस्म की चीज़ें निकालते थे। खजूर का एक साअ़ या पनीर का एक साअ़ या जौ का एक साअ़। हम हमेशा इसी के मुताबिक़ निकालते रहे यहाँ तक कि अमीर मुआविया रज़िअल्लाहु अन्हु का दौर आ गया तो उन्होंने ने ख़्याल ज़ाहिर किया कि गेहूं के 2 मुद खजूर के एक साअ़ के बराबर है। अबु सईद ख़ुदरी ने फिर कहा लेकिन मैं तो उसी पहले तरीक़े यानी एक साअ़ ही निकालता रहूंगा।
(सही मुस्लिम हदीस नंबर 2285/ किताबुज़ ज़कात मुसलमानों पर खजूर और जौ के सदक़ा फ़ित्र के बयान में)
अबु सईद ख़ुदरी रज़िअल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि जब अमीर मुआविया रज़ि अल्लाहु अन्हु ने गेहूं के आधे साअ़ को खजूर के एक साअ़ के बराबर क़रार दिया तो उन्होंने उसे मानने से इंकार कर दिया और कहा मैं सदक़ा ए फ़ित्र में वही निकलूंगा जो अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के ज़माने में निकाला करता था यानी खुजूर का एक साअ़, या किशमिश का एक साअ़ या जौ का एक साअ़ या पनीर का एक साअ़।
(सही मुस्लिम हदीस नंबर 2287/ मुसलमानों पर खुजूर और जौ के सदक़ा ए फ़ित्र के बयान में)
इब्ने अब्बास रज़िअल्लाहु अन्हुमा ने सदक़ा ए फ़ित्र का ज़िक्र करते हुए कहा एक साअ़ गेहूं या एक साअ़ खजूर या एक साअ़ जौ या एक साअ़ सुल्त (जौ की एक क़िस्म)
(सुन्न निसाई हदीस नंबर 2511/ किताबुज़ ज़कात, सदक़ा ए फ़ित्र का पैमाना)
सदक़ा ए फ़ित्र हर मुसलमान पर वाजिब है जो आसानी से अदा कर सकता हो।
अहनाफ़ के नज़दीक गेहूं आधा साअ़ और बाकी चीज़ें एक साअ़ हैं लेकिन उनके नज़दीक साअ़ इराक़ी है जिसका वज़न मौजूदा दौर के पैमाने के अनुसार लगभग साढ़े तीन किलो है।
अहनाफ़ के अलावा सभी के नज़दीक सदक़ा ए फ़ित्र तमाम चीज़ों में एक साअ़ है लेकिन उनके यहां साअ़ हिजाज़ी है जिसका वज़न मौजूदा दौर के पैमाने के अनुसार लगभग ढाई किलो है।
नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का संबंध मक्का मदीना यानी हिजाज़ से था और सहाबा रज़िअल्लाहु अन्हुम आप की पूरी ज़िंदगी और ख़िलाफ़त ए राशिदा में साअ़ हिजाज़ी से ही निकालते थे।
ऊपर जिन हदीसों का जिक्र हुआ है इससे पता चलता है कि निम्नलिखित चीज़ें सदक़ा ए फ़ित्र में निकाली जाती थीं – खुजूर , किशमिश या मुनक्का , पनीर , जौ और गेंहू ।
आजकल बाजार में गेहूं की क़ीमत तमाम अजनास से कम है फिर अपने देश भारत में गेहूं निकालने का रुझान ज़्यादा है क्या ग़रीब, क्या अमीर सभी आमतौर पर गेहूं ही को सदक़ा में निकालते हैं । हालांकि सदक़ा अपनी हैसियत के मुताबिक़ निकालना चाहिए। अगर किसी की हैसियत खजूर, किशमिश, पनीर या मुनक्क़ा निकालने की है तो उसे वही चीज़ें या उसकी क़ीमत सदक़ा फ़ित्र में देना चाहिए। एक धनवान व्यक्ति भी गेहूं या जौ का सदक़ा निकाले यह बात समझ में नहीं आती । वह इतना तो निकालें कि किसी ग़रीब की मदद ठीक से की जा सके। अल्लाह के रास्ते में जो जितना ख़र्च करेगा उसका कई गुना अल्लाह के यहां उसका बदला पायेगा।
एक मालदार व्यक्ति भी अगर गेहूं या जौ सदक़ा ए फ़ित्र में दे रहा है तो इसका मतलब यह है कि वह सदक़ा देकर सिर्फ़ एक बोझ उतार रहा है उसके यहां यक़ीनन ख़ुलूस की कमी है और अल्लाह के मुक़ाबले में माल से मुहब्बत अभी ज़्यादा है।
बुनियादी ज़रूरतों के अलावा कोई भी मुसलमान जिसके पास ईदुल फ़ित्र के दिन सुबह सादिक़ (भोर ) के समय निसाब के बराबर संपत्ति है वह सदक़ा ए फ़ित्र देने के लिए बाध्य हो जाता है । चाहे वह यात्री हो या निवासी, पुरुष हो या महिला, नाबालिग या वयस्क या मजनून । (फतावा आलमगिरी: 1/98)
फ़ित्रे में अमूमन गेहूँ 175 किलोग्राम देने का आम रिवाज बन गया है , यह अन्य अनाजों में से सबसे कम मूल्य का अनाज है जबकि हैसियत रखने वालों को जौ 3.50 किलोग्राम , खजूर 3.50 किलोग्राम, किशमिश 3.50किलोग्राम अदा करना चाहिए।
एक व्यक्ति की सदक़ा ए फ़ित्र इन चार प्रकार के सामानों में से किसी के माध्यम से अदा कर सकता है, हालांकि अगर मालदार लोग किशमिश , खजूर , जौ के माध्यम से सदक़ा ए फ़ित्र अदा करें तो गरीबों को लाभ भी अधिक होता है दूसरी ओर ऐसे सदक़ा करने वालों को अल्लाह का ईनाम भी अधिक मिलता है।
ज़कात व सदक़ात के मुस्तहिक़ लोगों में सबसे पहले क़रीबी रिश्तेदार, पड़ोसी, दोस्त । यह ना हो कि भाई की कोठियां तैयार हो रही हैं और बहन के पास रहने के लिए झोपड़ा भी न हो, चाचा के पास मोटरें हो और भतीजे के पास तांगा के पैसे भी मुयस्सर ना हो। ऐसा भी न हो कि एक भाई तो चंदे पर चंदे दे रहा हो, उमरे पे उमरे कर रहा हो, दूसरे इलाक़े के लोगों की भरपूर सहायता करता हो और ख़ुद उसके भाई, बहन, पड़ोसी और मित्र रोटी के एक एक टुकड़े को तरस रहे हों। इसलिए हर मालदार को सबसे पहले अपने रिश्तेदार , ख़नदान, भाईयों, बहनों, भतीजों, भांजों और दूसरे क़रीबी लोगों की ख़बरगीरी करनी चाहिए ।
हदीस में है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया मिस्कीन को सदक़ा दिया जाना केवल सदक़ा है और रिश्तेदार को सदक़ा देने में दो फ़ायेदे हैं, एक तो सदक़ा है और दूसरा सिला रहमी (क़रीबी और रिश्तेदारों से नेक सुलूक) )
(सुनन इब्ने माजा 1844/ किताबुज़ ज़कात, सदक़ा की फ़ज़ीलत का बयान, सुनन निसाई 2583।
यतीम , मिस्कीन जो सख़्त ज़रूरतमंद होने के बावजूद शर्म व हया और ख़ुद्दारी की वजह से दूसरे के आगे हाथ न फैलाता हो ,फुक़रा (हर वह व्यक्ति जो अपनी रोज़ी रोटी) के लिए दूसरों की मदद का मुहताज हो) ऐसे लोगों को सदक़ा ए फ़ित्र जल्द ही अदा कर देना चाहिए।