पिछली रात सुप्रसिद्ध कवि मुनव्वर राणा (26 नवंबर 1952 – 14 जनवरी 2024 ) का 71 वर्ष की आयु में लखनऊ के एसपीजेपी हॉस्पिटल में निधन हो गया । उर्दू शायरी की मशहूर शख्सियत रहे मुनव्वर राणा की शायरी को पसंद करने वाले लोग दुनिया भर में हैं। उनका एक मशहूर शेर “अभी ज़िंदा है मां मेरी , मुझे कुछ भी नहीं होगा , मैं घर से जब निकलता हूं , दुआ भी साथ चलती है” है ।
मुनव्वर राना का जन्म उत्तर प्रदेश के रायबरेली में 26 नवंबर 1952 में हुआ था , लेकिन उन्होंने अपना अधिकांश जीवन कोलकाता , पश्चिम बंगाल में बिताया । उनके पिता का नाम अनवर राना और उनकी मां का नाम आयशा खातून है । जीवनसाथी रैना राणा और बच्चों में तबरेज़ राणा , उरूसा इमरान राणा , सुमैया राणा ,फौजिया राणा हैं।
भारत सरकार द्वारा उर्दू साहित्य के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार लेकिन उन्होंने 18 अक्टूबर 2015 को एक लाइव टीवी शो में यह पुरस्कार लौटा दिया और भविष्य में कभी कोई सरकारी पुरस्कार स्वीकार नहीं करने की कसम खाई थी। इसके अलावा उन्हें अत्यधिक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था जिनमें रईस अमरोहवी पुरस्कार , दिलकुश पुरस्कार ,सलीम जाफ़री पुरस्कार , सरस्वती समाज पुरस्कार , ग़ालिब पुरस्कार, मौलाना अब्दुल रज्जाक मलीहाबादी पुरस्कार शामिल हैं।
1947 में भारत विभाजन के समय उनके करीबी रिश्तेदार, दोस्त, चाचा-चाची, दादी पाकिस्तान चले गए थे। लेकिन उनके परिवार ने भारत के प्रति प्रेम की वजह से वहां वहां नहीं गए । मुनव्वर की शिक्षा रायबरेली में हुई। इसके बाद उनका परिवार कोलकाता चला गया और ट्रांसपोर्ट का काम किया। यहां मुनव्वर ने उमेशचंद्रा कॉलेज, लालबाजार (कोलकाता) से अपनी बैचलर डिग्री प्राप्त की थी।
मुनव्वर राना के निधन पर “इदारा अदबे इस्लामी हिंद नागपुर” के नवनियुक्त अध्यक्ष डॉ ज़ीनतुल्लाह जावेद ने दुख का इज़हार किया है। उन्होंने कहा कि साहित्य जगत का एक और मुनव्वर सितारे का अस्त हो गया। मुनव्वर राना एक बहुत अच्छे कवि और गद्य लेखक तो थे ही उन्होंने एक इंसान के तौर पर सभी के दिलों के करीब अपनी जगह बना ली थी । मानव जीवन के दुख दर्द को स्वयं के हवाले से कविताओं में सृजन करने की कला उन्हें ख़ूब आती थी । परिस्थितियों के भंवर ने उन्हें शांत करने की भरपूर कोशिशें कीं लेकिन वह सदैव दृढ़ निश्चय और स्वतंत्रता के साथ अपनी गतिविधियों में सक्रिय रहते थे उनकी आवाज़ पर्दे के पीछे से नहीं आती थी। हमेशा बेपर्दा होकर आती थी। वह एकमात्र शायर हैं जिन्होंने उर्दू ग़ज़ल को अपनी जा़त और समाज के अनूठे विषयों से अवगत कराया । विचारों के खोजी मुनव्वर राना आज बेरंग आवरण ओढ़कर अपने वास्तविक अस्तित्व की तलाश में निकल पड़े हैं। इदारा ए अदबे इस्लामी हिंद नागपुर के सभी पदाधिकारी व सदस्य मुनव्वर राना की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते।
दूसरी ओर “इदारा ए अदबे इस्लामी हिंद नागपुर” के सचिव मुहम्मद सुहैल अंसारी ने उनके निधन पर कहा कि मुनव्वर राना गंगा जमुनी संस्कृति का प्रतिनिधित्व करते थे। उर्दू मुशायरे के साथ हिंदी कवि सम्मेलनों में भी आप की रचनाओं को पसंद किया जाता था। मुनव्वर के कई शेर राष्ट्रीय एकता और हिंदी भाषा को समर्पित है जैसे कि
“किसी के ज़ख्म पर चाहत की पट्टी कौन बांधेगा
अगर बहनें नहीं होगी तो राखी कौन बांधेगा ।
लिपट जाता हूं मां से और मौसी मुस्कुराती है
मैं उर्दू में ग़ज़ल कहता हूं हिंदी मुस्कुराती है।
सगी बहनों का जो रिश्ता है उर्दू और हिंदी में
कहीं दुनिया की दो ज़िंदा ज़बानों में नहीं मिलता”।
भारत के साहित्य परिवेश में ऐसे शायर व कवि बहुत कम नज़र आते हैं जो उर्दू और हिंदी भाषियों में समान प्रसिद्धी रखते हैं उन्हीं में एक मुनव्वर राना थे वास्तव में उनके निधन से हिन्दी और उर्दू की समान क्षति है।
साहित्य प्रेमियों के दिलों में मुनव्वर राना सदैव वास करेंगे ।
विदित हो कि अखिल भारतीय साहित्यिक संगठन “इदारा ए अदबे इस्लामी हिंद” विगत 70 वर्षों से रचनात्मक , नैतिक एवं इस्लामिक साहित्य के विकास एवं संवर्धन में अग्रणी भूमिका निभा रही है। नागपुर में भी यह साहित्य संगठन अपने लक्ष्य एवं उद्देश्यों को लेकर साहित्यिक गतिविधिओं को अंजाम दे रही है।
नागपुर के “इदारा ए अदबे इस्लामी हिंद ” की कार्यकारिणी के नवनियुक्तों के लिए विशेष बैठक का आयोजन किया गया था। इसे जाफ़र नगर के टीचर्स कालोनी में स्थित “मरकज़े इस्लामी हाल” में आयोजित किया गया था । यह बैठक राज्य कार्यकारिणी सदस्य ख़ान हस्नैन आक़िब एवं जमाअ़त ए इस्लामी हिंद नागपुर के शहर अध्यक्ष ख़्वाजा इज़हार अहमद की निगरानी में संपन्न हुई थी।
इस प्रकार “इदारा ए अदबे इस्लामी हिंद नागपुर” की कार्यकारिणी के नवनियुक्तों में डॉ. ज़ीनतुल्लाह जावेद को सर्वसम्मति से अध्यक्ष घोषित किया गया तत्पश्चात डॉ. ख़्वाजा ग़ुलामु स्सय्यदैन रब्बानी और रियाज़ुद्दीन कामिल को उपाध्यक्ष बनाया गया है। इस नवनियुक्त कार्यकारणी में मुहम्मद सुहैल अंसारी को सचिव , शाहिद बेग को कोशाध्यक्ष नियुक्त किया गया । शाकिरुल अकरम फलाही, मुश्ताक़ अहसन, मास्टर कलीम अहमद, ख़्वाजा साजिद, शाहनवाज़ वसीम, डॉ. समीर कबीर, शमीम एजाज़, बाबर शरीफ़, बदरुद्दीन रहबर को मार्गदर्शक के रूप में नियुक्त किया गया है ।
“इदारा ए अदबे इस्लामी हिंद नागपुर” डॉ मुनव्वर राना के निधन पर शोक व्यक्त करता है और श्रद्धा सुमन श्रद्धांजलि अर्पित करता है।