जेआईएच की ‘पड़ोसियों के अधिकार’ मुहिम का समापन: महिला विभाग की अहम हिस्सेदारी, ख़्वाजा इज़हार बोले— ‘बंदों की मदद करो,अल्लाह तुम्हारी मदद करेगा’”

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नागपुर – इस्लामिक कल्चरल सेंटर , बड़ी मस्जिद (टेका) में नागपूर नार्थ , जाफ़र नगर में स्थित मर्कज़े इस्लामी हॉल में वेस्ट के तत्वावधान में “पड़ोसियों के अधिकारों ” पर जेआईएच के समापन कार्यक्रम आयोजित किए गए । इसमें महिला विभाग ने भी अपनी हिस्सेदारी निभाईं।
पवित्र क़ुरआन की सुरह निसा पंक्ति क्र 36 के पठन से कार्यक्रमों का आरंभ हुआ। “जिबरईल अ़लैहि. की वसियत ….. पड़ोसी से मुहब्बत” पर पैगम्बर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहू अ़लैहि वसल्लम के कथन का पठन हुआ। मुहिम का परिचय , पड़ोसी से संबंधित उद्देश्यों में उससे जान-पहचान, नुकसान न पहुँचाने वाला और सर्वत्रोत्तम पड़ोसी पर आधारित चर्चा सत्र में निवासी , प्रोफेशनल , टेम्पररी पड़ोसी , पड़ोसी से अच्छा व्यवहार और इस्लामी पूर्वजों के शिष्टाचार प्रस्तुत किए गए।

पैनल डिस्कशन में ” वर्तमान समय में पड़ोसियों के साथ संबंध …… समस्याएं और समाधान” के अंतर्गत कोआर्डिनेटर ने पैनलिस्ट के माध्यम से शहरी और ग्रामीण माहौल में समीपस्थ पड़ोसी के बीच बढ़ती दूरी , धार्मिक या सामाजिक मतभेदों के पड़ोसी पर प्रभाव, व्यस्ततम जीवन और पड़ोसियों से असंबद्धता , डिजिटल तल्लीनता और पड़ोसी के प्रति उपेक्षा का भाव, सकारात्मक संबंध बनाने के व्यवहारिक तरीकों को अंजाम दिया। समापन भाषण में शहर अध्यक्ष ख़्वाजा इज़हार अहमद ने कहा कि अतीत में इंसानों द्वारा दूसरे रिश्तों को जिस प्रकार से ध्यान रखता था आज वह स्थान संकीर्ण हो गया है।
यदि शहर में अकारण कहीं कोई बच्चा दिख जाता तो उससे पूछताछ की ज़िम्मेदारी पड़ोसी की हुआ करती थी , बच्चों को इसका डर सताता था। आज “जीवन मेरा , पसंद मेरी ” की प्रवृत्ति की अवधारणा और उसके दुष्परिणाम भी दिखाई दे रहे हैं। तात्पर्य कि हम बच्चों और पड़ोसियों के अधिकारों से मोहभंग होकर रह गए हैं। समावेश की जगह व्यक्तिवाद और संकुचित सीमाओं ने ले ली है। गांव का नागरिक हर किसी को जानता और उसकी परेशानियों को यथा संभव दूर करने का प्रयास करता , लेकिन शहर का शहरी , व्यक्तिवाद का सामना कर रहा है। सोशल एनिमल से हम इकोनॉमिक एनिमल बन गए । परिणाम स्वरूप पड़ोसी, रिश्तेदारों, ज़रूरतमंदों, गरीबों की ज़िम्मेदारियों से हम दूर हो गए और बच्चे जहां कभी पड़ोस में खाना खा लिया और सो जाया करते थे, आज यह ज़िम्मेदारी दिखाई नहीं देती । मॉडर्न टेक्नोलॉजी ने स्क्रीन युक्त अकेलापन के अवसर को पैदा कर दिया है। इस अकेलेपन से हम दूसरों की समस्याओं को भूल गए ।
अमेरिका में प्यू रिसर्च में एक सर्वे से पता चला कि 74 प्रतिशत लोग अपने पड़ोसियों के बारे में नहीं जानते । अगर हम व्यक्तिवाद का शिकार हैं तो यही होने वाला है कि दुनिया रॉकेट के ज़रिए चांद पर पहुंच गई है और गरीबी इतनी है कि यूएन के आंकड़े बताते हैं कि 1.1 बिलियन लोग मल्टीडिमेंशनल पावर्टी इंडेक्स से नीचे ज़िदगी गुज़ार रहे हैं। उनमें वे भूखे, प्यासे, मजबूर, लाचार , गरीब हैं और बेबस हैं। इस गरीबी को समाप्त करने के लिए भारत सरकार ने बहुत सी पॉलिसियां अपनाई हैं जिन में “इंटीग्रेटेड रूरल डेवलपमेंट प्रोग्राम , प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना, इंदिरा गांधी नेशनल ओल्ड एज, पेंशन स्कीम,
नेशनल फैमिली बेनिफिट स्कीम , लाड़ली बहन योजना, अन्नपूर्णा , महात्मा गांधी नेशनल रूरल एम्प्लॉयमेंट गारंटी एक्ट”
वग़ैरह आती हैं। हमें इन पॉलिसियों का इस्तेमाल कर पीड़ित लोगों की मदद करनी चाहिए। आर्थिक विपत्तियों से अवसाद और आत्महत्याएं बढ़ रही हैं। हमें व्यक्तिवाद से निकल कर पड़ोसियों के अधिकार को पहचानना होगा।
यदि हम अल्लाह के बंदों की समस्याओं को हल करेंगे, तो अल्लाह हमारी समस्याओं को हल करेगा। हमें अपनी पहचान का कॉन्सेप्ट बदलना होगा। हमें पवित्र क़ुरआन की सूरह अन-निसा 36 को समझना होगा। दुख की बात यह है कि हम इसे पढ़ते नहीं । अंत में निस्वार्थ भाव और सफलता के लिए दुआ पर कार्यक्रम का समापन हुआ।
अत्यधिक संख्या में लोग उपस्थित थे। यह जानकारी जेआईएच मीडिया सचिव डॉ एम ए रशीद ने दी।