प्यारे नबी हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का यादगार पहला ख़ुत्बा (मुस्लिम समुदाय के लिए जुमे के आदाब और आचार) – डॉ एम ए रशीद, नागपुर

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पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पहले ख़ुत्बे का शर्फ़ हासिल करने वाली मस्जिदे जुमा वह मस्जिद है जहां अल्लाह के रसूल हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने पहला जुमा जमाअ़त के साथ अदा किया था । यह मस्जिद क़ुबा की बस्ती से 500 मीटर की दूरी पर अर्थात क़ुबा और मदीना मुनव्वरा के बीच मोहल्ला बनू सालिम बिन औफ़ में स्थित है इसे आदर्श साथियों ने बनवाई थी । मस्जिदे जुमा के अलावा इस मस्जिद के कई अन्य नामों में मस्जिद बनी सालिम , मस्जिदे वादी , मस्जिदे ग़ुबैब और मस्जिदे आतिका जैसे नाम शामिल हैं। इसका पुनर्निर्माण अपने शासन काल में हज़रत उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ ने करवाया था। इस मस्जिद का विस्तार और पुनर्निर्माण पूर्व सऊदी शाह फ़हद बिन अब्दुलअज़ीज़ के शासन काल के दौरान पूरा हुआ था। अब इसका कुल क्षेत्रफल 1630 वर्ग मीटर है और इसमें 650 नमाज़ी इबादत कर सकते हैं। मस्जिद का एक गुंबद 12 मीटर व्यास का है और चार छोटे गुंबद भी हैं।

इस के मीनार की ऊंचाई 25 मीटर है। वाज़ेह हो कि हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने वादिए क़ुबा में कुछ रोज़ क़ियाम किया था और जब क़ुबा से मदीना मुलव्वरा के लिए रवाना हुए तो उन्होंने बनी सालम के मोहल्ले वादिए रानूराअ् में पहुंचकर जुमा का पहला खुत्बा दिया था।संक्षिप्त रूप से इस खुत्बे के हर एक शब्दों और हर एक वाक्यों में इल्मो अमल और तर्क‌ के स्रोत फूटते दिखाई पड़ते हैं । इस खुत्बे मे आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सभी लोगों को साफ़ तौर पर जागरूक किया कि बेहतरीन नसीहत कौन सी है, तक्वा क्या है, सच्ची मदद क्या है, कौन हिदायत याफ़्ता है, अल्लाह तआ़ला किस का ज़िक्र बुलंद करता है , कौन सा असल चेहरे को रौशन करता है और कौन सा अमल अल्लाह को राज़ी करता है और वह किस के गुनाह दूर करता है , अज़ीम कामयाबी क्या है , कौन सा अमल अल्लाह के गज़ब, अज़ाब और नाराज़ी से बचाता है और दर्जे को बुलंद करता है, अल्लाह तआ़ला ने किन को चुन लिया है और मुसलमान को कौन सा लक़ब संज्ञा दी है , अल्लाह तआ़ला किस के दरम्यान और लोगों के दरम्यान ख़ुद मामला फरमाता है ? पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पहले खुत्बा ए जुमा में ये तमाम आगाही हमें दी गईं हैं । देखा जाए तो हमारी एक ओर व्यक्तिगत ज़िंदगी आख़िरत की ज़िंदगी के प्रति उत्तरदायित्वों से दूर हो रही है वहीं हमें यह भी एहसास नहीं रहा कि अपने परिवार , अपने साथियों और हमारे साथ रहने बसने वालों को आख़िरत की उत्तदायित्वों से भरी ज़िंदगी से कैसे आगाह और सावधान किया जाए ! हमारे प्यारे नबी रहमतुललिल आलमीन हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की संघर्ष भरी पूरी जिंदगी संपूर्ण विश्व के इंसानों की भलाईयों और पारलौकिक सफलता का एक अनमोल उदाहरण है। आख़िरत के जवाबदेही के प्रति किए जाने वाले प्रयासों को अज्ञानियों ने पूरी तरह से विफल करने का प्रयास किया, उनके साथ भयंकर अत्याचार किए तो किए , उनके आदर्श साथियों तक को भी न बख़्शा । परिस्थितियों से तंग आकर उन्होंने मदीना मुनव्वरा जाने का फैसला लिया। इस तरह उन के यादगार ख़ुत्बे की अहमियत को समझना सभी के लिए आवश्यक है। ख़ुत्बे में आए कठोर शब्द यह बात ज़रूर बताते हैं कि इंसान को अल्लाह की इबादत से जुड़े रहना और भलाई के कामों को बढ़ावा देते रहना चाहिए। पैग़म्बर हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया सब तारीफ़ें अल्लाह तआ़ला के लिए है , मैं उसी की हम्द करता हूं , उसी से मदद मांगता हूं और उसी से हिदायत का सवाल करता हूं । मैं उस पर ईमान ले आया हूं और उसके साथ कुफ़्र नहीं करता और जो उसके साथ कुफ़्र करता है मैं उसका दुश्मन हूं और मैं गवाही देता हूं कि कि कोई माबूद नहीं सिवाय अल्लाह वाहदहू के, उसका कोई शरीक नही है, बेशक मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उसके बंदे और रसूल हैं, भेजा है अल्लाह तआ़ला ने उन्हें हिदायत दीने हक , नूर और नसीहत और तल्कीन के साथ , उस वक़्त जब काफ़ी मुद्दत से जब रसूलों की आमद का सिलसिला मुंकता हो चुका था , जब कि इल्म बहुत क़लील अर्थहीन हो गया था और लोग गुमराह हो रहे थे और इस वक्त ज़माना ख़त्म होने वाला है, क्रियागत करीब आ गई है और मौत का वक्त नज़दीक पहुंच गया है । जो इताअ़त करता है अल्लाह तआला और उसके रसूल की वो ही हिदायत याफ़्ता है और जो नाफ़रमानी करता है अल्लाह तआ़ला और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की , वह ही गुमराह है , वह ही हद से बड़ा और वह ही गुमराही में दूर निकल गया । प्यारे नबी हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया और मैं वसीयत करता हूं तुम्हें कि अल्लाह तआ़ला से डरते रहो क्योंकि बेहतरीन नसीहत जो एक मुसलमान दूसरे मुसलमान को कर सकता है यह है कि वह उसे अपनी आख़िरत बेहतर करने के लिए शौक दिलाए और उसे अल्लाह से डरने का हुक्म दे । डरते रहो जैसा डराया तुम्हें अल्लाह ने अपने ग़ज़ब से , इससे अफ़ज़ल कोई नसीहत नहीं और इस से बेहतर कोई याददहानी नहीं है , यही तक्वा है जो अल्लाह से डर कर और ख़ौफ़ ज़दा हो कर नेक अमल करता है । यदी सच्ची मदद है। उस चीज़ पर जिस चीज़ की तुम ख़्वाहिश रखते हो, क्रियामत के दिन के लिए और जो शख़्स इस्लाह करता है, अपने बातिनी और ज़ाहीरी हालत की जो उसके दरम्यान और अल्लाह के दरम्यान है और वह नहीं इरादा करता उस से लेकिन अल्लाह तआ़ला की रज़ा के , तो यह बात दुनिया में उसके ज़िक्र को बुलंद कर देगी और मौत के बाद उसके लिए सरमाया होगी। जब इंसान मोहताज होगा उन आमाले हुस्ना की तरफ़ जो उसने पहले भेजे हैं और अल्लाह तआ़ला के सिवा जो कुछ है वह उस रोज़ दोस्त रखेगा कि उस के दरम्यान और उन चीज़ों के दरम्यान बहुत लंबा फ़ासला हो और डराता है तुम्हें अल्लाह तआ़ला अपनी ज़ात से और अल्लाह तआ़ला बहुत मेहरबान है अपने बंदों के साथ। प्यारे नबी हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया जिस शख़्स ने अपनी बात को सच्चा कर दिखाया और अपने वादा को पूरा किया तो उसके लिए अल्लाह तआ़ला अपने वादे को पूरा करेगा क्योंकि वह फ़रमाता है मेरे नज़दीक़ मेरा क़ौल नहीं बदलता और मैं अपने बंदो के साथ ज़ुल्म अत्याचार करने वाला नहीं हूं ! हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया डरते रहा करो अल्लाह तआ़ला से अपने उन कामों के बारे में जो अब हो रहे हैं और उन कामों से जो बाद में होंगे वे पोशादा और ऐलानिया , क्योंकि जो डरता है अल्लाह तआ़ला से अल्लाह तआ़ला उसके गुनाहों को दूर कर देता है और क्रियामत के दिन उसको अज्रे अज़ीम अता फरमाएगा और जो डरता रहता है अल्लाह तआ़ला से वह ही अज़ीम काम्याबी हासिल करेगा क्योंकि अल्लाह तआ़ला से डरना बचाता है उसके अज़ाब से और और बचाता उसकी नाराज़गी से और बेशक अल्लाह तआ़ला का खौफ़ चेहरे को रौशन करता और अल्लाह तआ़ला को राज़ी और उसके दर्जों को बुलंद करता है। रहमतुललिल आलमीन हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया अपना हिस्सा ले लो और अल्लाह तआ़ला के बारे में कोताही न करो । अल्लाह तआ़ला ने सिखा दी है अपनी किताब और वाज़ेह कर दिया तुम्हारे लिये अपना रास्ता ताकि वह जान ले उन लोगों को जो सच्चे हैं और जान ले झूठों को और तुम भी भलाई करो जिस तरह अल्लाह तआ़ला ने तुम्हारे लिए एहसान फ़रमाया है और उसके दुश्मनों के साथ दुश्मनी रखो और अल्लाह की राह में संघर्ष करने का हक अदा करो उसी ने तुमको चुना है और उसी ने तुम्हें मुस्लिम का लक़ब संज्ञा से बुलाया है ताकि हलाक़ हो जिस ने हलाक होना है दलील से और ज़िंदा हो जिसने ज़िंदा रहना है दलील सें। और कोई क़ुव्वत नहीं अल्लाह की मदद के बग़ैर। इसलिए कसरत से अल्लाह का ज़िक्र किया करो और मौत के बाद ज़िंदगी के लिए अमल किया करो , इसलिए जो शख़्स अपने दरम्यान और अल्लार तआ़ला के दरम्यान मामलात दुरुस्त कर लेता है अल्लाह तआ़ला उसके दरम्यान और लोगों के दरम्यान ख़ुद मामलात दुरुस्त फ़रमा लेता है । यह इसलिए कि अल्लाह तआ़ला लोगों पर मर्ज़ी लागू कर सकता है और लोग उस पर मर्ज़ी लागू नहीं कर सकते । वह लोगों के तमाम अहवाल का मालिक है और लोग उसके मालिक नहीं बन सकते । अल्लाह बहुत बड़ा है और कोई क़ुव्वत नहीं है सिवाय अल्लाह तआ़ला की मदद के जो बहुत आ़ला और बड़ी अज़मत वाला है ।