रमज़ानुल मुबारक में रोज़ेदार का कुरआन से लगाव बढ़ जाता है, मस्जिदों में इसके अध्ययन सर्कल बनाए जाने चाहिए – डॉ एम ए रशीद नागपुर

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रमज़ानुल मुबारक क़ुरआन का महिना है । जैसे कि पवित्र क़ुरआन की सूरा
इनना अंज़लना में बताया गया है कि “निःसंदेह, हमने इस (क़ुरआन) को ‘लैलतुल क़द्र’ ( सम्मानित रात्रि) में उतारा। और तुम क्या जानो कि वह ‘लैलतुल क़द्र’ ( सम्मानित रात्रि) क्या है? लैतुल क़द्र (सम्मानित रात्रि) हज़ार मास से उत्तम है। उसमें (हर काम को पूर्ण करने के लिए) फ़रिश्ते तथा रूह (जिब्रील) अपने पालनहार की आज्ञा से उतरते हैं। वह शान्ति की रात्रि है, जो भोर होने तक रहती है।”


इस में सबसे पहले बताया गया है कि कुरआन कितनी महान रात्रि में अवतरित किया गया है। फिर इस शुभ रात की प्रधानता का वर्णन किया गया है और उसे भोर तक सर्वथा शान्ति की रात कहा गया है। इस से अभिप्राय यह बताना है कि जो ग्रन्थ इतनी शुभ रात्रि में उतरा उस का पालन तथा आदर न करना बड़े दुर्भाग्य की बात है।
इस माह में मोमिन का कुरआन के हवाले से पढ़ने सुनने का शोक बढ़ जाता है। वे कुरआन का पठन, अध्ययन करते हैं। लेकिन सबसे बड़ी बात यह कि इस कुरआन का पठन करते समय उसका समझ कर पढ़ना बहुत जरूरी है । इस समय कुरआन के विभिन्न हिस्सों पर चिंतन मनन किया जाना चाहिए ।
क़ुरआन से लाभ उठाने के लिए विभिन्न मस्जिरों में “कुरआन के अध्ययन सर्कल” के आयोजन बड़े लाभकारी बन सकते हैं। ये अध्ययन सर्कल किसी केंद्रीय थीम पर व्यवस्थित होना चाहिए ।
कुरआन का संबोधन इंसान है, इंसान को ही लेकर उनके लिए बेहतरीन आदेश आए हैं, जिस के नाते उसके चरित्र, अनुशासन, घरेलू , सामाजिक ज़िंदगी , आर्थिक और व्यापारिक दृष्टिकोण आदि बहुत से बिंदुआ पर अध्ययन कर इंसान को चरित्रवान इंसान बनाया जा सकता है।
इसान के रवैए में बदलाव के लिए ही यह क़ुरआने करीम आया हुआ है ताकि उसकी सोच , विचार , नज़रिया में बदलाव, व्यवहारिक ज़िंदगी में परिवर्तन लाने के लिए क़ुरआन के आदेश उपयोगी बन सकें । लिहाज़ा इंसान की फिक्र पर , उसके जज़्बात पर , उसकी सोच पर , उसके रव्वयों पर बातचीत करने की बहुत ज़रूरत है । इस नाते पवित्र कुरआन में बहुत सी आयते हैं , उनपर विचार किया जाना बहुत ज़रूरी है। जैसे कि पहले पारे में कुरआन, इंसान के चरित्र पर बेमिसाल वार्तालाप करता है। वह इंसान को विभिन्न समूहों में बांटकर ईमान की बुनियाद पर आधारित रुह फूंकता है। क्योंकि ईमान ही इंसान की बुनियाद है ।
ईमान की बुनियाद पर इंसान को तीन प्रकार से वर्गिकृत किया गया है, व्यवहार के मामले में वह उसे दो भागों में विभाजित करता है। इंसान को पैदा करने पर उसकी प्रकृति और उसकी हैसियत क्या है , दुनिया में उसका क्या स्थान है ? इस पर अनमोल जवाब मिलते हैं।
इंसान को अल्लाह तआला जिन मुश्किलों से गुज़ारता है तो यहां इन्सान का व्यक्तित्व बहुत मायने रखता है। धन दौलत को लेकर जो मनी पर्सनेलिटी होती है उसका जायज़ा बहुत आवश्यक है। दौलत के मुकाबले में इंसान की परर्सानालिटी कैसी हैं और फिर कुरआन किस प्रकार की पर्सनालिटी को देखना चाहता है , यह भी क़ुरआन इंसान को बताता है।
बहुत से मानसिक दोष इंसान को व्याकुल किए रहते हैं, कहीं वह आपराधिक मामले में उलझा होता है, उस पर कैसे नियंत्रण किया जा सकता ? कुरआन का यह पारा उसके हल पेश करता है जो बहुत अनुकरणीय हैं ।
समाज में हम रहते है कहीं पक्षपात, कहीं नफरतें , कहीं ईर्ष्या ही ईर्ष्या दिखाई देती है । ऐसे समय हमें इन समस्यायों को क़ुरआने करीम के अनुसार निदान करना चाहिए । हमारे दिमाग़ की पर्सनालिटी , उसकी ख़ुसुसियात, कहीं (अल्लाह न करे) हमारे अंदर निफ़ाक़ तो नहीं है ? इसका मूल्यांकन लेना “अध्ययन सकिल” के अंतर्गत बहुत अच्छे से किया जा सकता । स्वप्नों के बारे में पवित्र क़ुरआन की रहनुमाई भी इसी पारे की विशेष वार्तालाप बन सकती है। ऐसी बहुत सी बातें जिनको वैज्ञानिक अनुसंधानों ने आज बताया है जबकि पवित्र क़ुरआन ने 1400 साल पहले बता दिया था ‌।
जब यह सब कुछ हमारी समझ में आ जाएगा तो हम अपने चित परिचतों को पवित्र क़ुरआन के इन संकेतों के बारे में अच्छे से बता सकेंगे । यहां यह भी विचारणीय बात है कि जहां पवित्र क़ुरआन ने संकेत दिया है और वहां उस पर कार्य नहीं हुआ तो यह हमारे लिए अनुसंधान का विषय है। दुनिया के पास उसका ज्ञान नहीं है, अनुसंधान के बाद दुनिया को नया जीवन दिया जा सकता है ‌। दुनिया को मालामाल किया जा सकता है। आज कितने ड्रग्स, शराब , जुआ आदि में लिप्त हैं, इसका उल्लेख पवित्र क़ुरआन में मौजूद है । यहां क़ुरआने करीम का पैमाना आध्यात्मिक है, जिसे दुनिया नहीं मानती ! दुनिया इंसान को भौतिक नज़रिए से देखती है । उसी तरह वह उसकी समस्याओं का निदान करना चाहती है जो अब तक संभव नहीं हो सका ।
प्रोफेसर एस अमीनुल हसन के अनुसार कुरआन इंसान को एक ओर शारीरिक रूप से तो दूसरी ओर उसके आध्यात्मिक अस्तित्व से स्वीकारता है और शैतान की जो शरारतें हैं उसका भी उल्लेख करता है । तो एक होलिस्टिक प्रोस्पेक्टिव में ये जितने भी प्राब्लम्स हैं जिन से दुनिया के लोग जूझ रहे हैं उसका निदान निकाला जा सकता है । अल्लाह से दुआ है कि यह रमज़ान हम सब के लिये कुरआन से ज्ञान अर्जन का महिना साबित हो जाए, आमीन।