जुमा में दुआ़ओं की क़ुबूलियत की साक्षात मिसालें ख़तीब के ख़िताब से संवर सकती हैं ज़िंदगियां मुस्लिम समुदाय के लिए जुमा के दिन के आदाब और आचार- डॉ एम ए रशीद नागपुर

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जुमे के दिन मांगी जाने वाली दुआ़ओं की क़ुबूलियत का अहम मुक़ाम होता है। इसकी एक साक्षात मिसाल हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के वक़्त बारिश बरसाने और उसे रोकने के लिए बुख़ारी हदीस ग्रंथ में मिलती है । बहुत सी बार हम सब का मुशाहिदा भी हुआ है कि जब बारिश के मौसम में बारिश न हो रही हो तो इमाम साहब उसके लिए दुआएं करते हैं और मौजूद लोग उस पर आमीन कहते हैं। कुछ ही देर में या फिर कुछ दिन में घटाएं आ कर बरसना शुरू कर देती हैं। सूखे की स्थिति हो या प्राकृतिक विपदाएं उनका समाधान भी दुआओं के माध्यम से निकल सकता है। इसी सिलसिले में यही अर्ज़ करना मक़सूद है कि हज़रत अब्दुर्हमान रह. का शुमार ताबईन में होता है। हज़रत बिन काफ़ बिन मालिक हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के एक आदर्श साथी थे। हज़रत अब्दुर्हमान रह., हज़रत बिन काफ़ बिन मालिक रज़ि के बेटे थे। आप फ़रमाते हैं कि मेरे वालिद हज़रत काफ़ बिन मालिक आख़री दिनों में नाबीना हो गये थे , उन्हें दिखाई नहीं देता था । मैं उनका बाज़ू पकड़ कर जुमे की अज़ान से पहले उनको मस्जिद में ले जाया करता था । उनकी ख़्वाहिश होती थी कि अज़ान से पहले मुझे मस्जिद ले जाओ, क्योंकि अल्लाह तआ़ला ने (सुरह जुमा की पंक्ति क्र 9 में) यह ऐलान किया है कि “ऐ मुसलमानों ! जब जुमा के दिन नमाज़ के लिए अज़ान दी जाये तो अल्लाह के ज़िक्र की तरफ़ दौड़ पड़ो और ख़रीद फ़रोख्त छोड़ दिया करो, अगर तुम समझ रखते हो तो तुम्हारे हक़ में ज्यादा बेहतर है” ।
मैं उन्हें मस्जिद ले जाया करता था वो मस्जिद के एक कोने में बैठ जाया करते थे , मैं उनके बराबर में बैठ जाया करता था। फिर जैसे ही जुमे की अज़ान होती , मिंबर पर ख़तीब आ जाते , मोअज़्ज़िन अज़ान देता ये फ़ौरन हज़रत असद रज़ि के लिए दुआएं करते थे कि “या अल्लाद असद पर रहम फरमा , उसकी मग़फिरत फ़रमा। उनका यह मामूल था। एक रोज़ मैंने अपने वालिदे मोहतरम से पूछा कि अब्बा आप अज़ान होते ही एक शख़्स के लिये बेहतरीन दुआएं करते हैं ऐसा किस लिए करते हैं । उन्होंने फ़रमाया मेरे बेटे अब्दुर्रहमान यह असद वह हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के आदर्श साथी हैं कि जब मदीने में हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तशरीफ़ नहीं लाए थे ये असद मिंबर पर खड़े होकर ख़ुत्बा दिया करते थे
और इनके सबसे पीछे सबसे पहले मैंने नमाज़ अदा की। पहली बार जब जुमे की नमाज़ अदा की तो उसका ख़तीब असद थे उसका इमाम भी असद थे। मैं उसके लिए इसलिए दुआ किया करता हूं कि जब हम उसकी मस्जिद में पहुंचते थे तो वहां खुत्बा और नमाज़ का अहतिमाम होता था , वे हमें बहुत अच्छी नसीहते करते थे उसका फ़ायदा हमें पहुंचता था । आज मैं उसके लिए दुआएं करता हूं जुमे के दिन , जुमे की अज़ान के बाद कि रब्बुल आलमीन उस पर रहम फरमा , उसकी मग़फिरत फ़रमा ।
यह इन सहाबी ए रसूल का तरीक़ा था जो प्रेरणा का स्रोत है । इन से हमें प्रेरणा और सबक़ लेना चाहिए , जो जुमे के दिन अज़ान से पहले मस्जिद में पहुंचा करते थे और लोगो के लिए दुआएं मांगा करते थे ।
बारिश की दुआ़ के संबंध में एक दिलचस्प हदीस इस तरह से है कि हज़रत अनस बिन मालिक रज़ि से रिवायत है उन्होंने फ़रमाया कि ” अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम एक बार जुमा के दिन उपदेश यानी कि ख़ुत्बा दे रहे थे तो कुछ लोग खड़े होकर बोल पड़े । उन्होंने फ़रयाद की अल्लाह के दूत ! बारिश नहीं हो रही है, पेड़ पीले हो गए और मवेशी मरने लगे , अल्लाह से दुआ फ़रमाएं कि वह हम पर बारिश बरसाए । आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने दो बार फ़रमाया : “ऐ अल्लाह! हमें सेराब फ़रमा ” अल्लाह की क़सम! हमें आसमान पर बादल का कोई टुकड़ा दिखाई नहीं देता था नहीं था कि अचानक घटा छाई और बरसने लगी। अल्लाह के दूत मिंबर से उतरे और नमाज़ अदा कराई फिर वापस घर को लौटे। यह बारिश अगले जुमे तक बरसती रही। दूसरे जुमे को जब नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उपदेश यानी कि ख़ुत्बा देने के लिए खड़े हुए तो कुछ लोगों ने फिर बुलंद आवाज़ से बोले कि घर गिर गये और सड़कें अवरुद्ध हो गये , अब अल्लाह से दुआ करें कि वह इस बारिश को हम से रोक दे । नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मुस्कुराए और दुआ़ फ़रमाई : “ऐ अल्लाह! हमारे आसपास बारिश हो हम पर न हो” । इसके बाद मदीना से बादल छट गये । उसके आसपास बारिश होती रही। मदीना में बारिश की एक बूंद भी नहीं गिर रही थी । मैंने मदीना मुनव्वरा को देखा कि ताज की तरह उसके आसपास बादल थे और यह बीच में था।
ग़ौर व फ़िक्र का मुक़ाम है कि एक ओर मुल्क भर में लाखों मस्जिदें , इमाम और ख़तीब हैं लेकिन मस्जिदों में नमाज़ पढ़ने वालों की न ही बढ़ोत्तरी हो रही है और न ही लोगों के हालात में सुधार दिखाई दे रहा है । ख़तीब को हालात से बाख़बर रहते हुए ऐसा मंसूबा बनाकर नसीहतें करना चाहिए कि मस्जिदों में नमाज़ियों की तैदाद में इज़ाफ़ा भी हो और लोगों की इंफ़िरादी (व्यक्तिगत ) , सामूहिक (इज्तिमाई) , आर्थिक , सामाजिक , घरेलू ज़िंदगी के साथ साथ दुनिया, क़ब्र और आख़िरत की ज़िंदगियां भी संवर जाएं । ख़िताब के दौरान शाइस्तगी (विनम्रता) , दूरअंदेशी (दूरदर्शिता) को अपना कर नसीहतें करने से उसके बहुत अच्छे असरात पड़ते हैं ।
दूसरी ओर अल्लाह ने हमारी आंखें सलामत रखीं , हमारे हाथ पैर सलामत रखे। इनकी तरफ़ हमारी तवज्जो कम ही जाती है कि जब सब कुछ ठीक ठाक होने पर सभी अज़ान से पहले मस्जिद में पहुंच जाएं। मस्जिद में अल्लाह से अपने लिए , अपने परिवार , देश और उम्मत की फ़लाह व बहबूद (कल्याण और खुशहाली) के लिए दुआएं मांग कर बिगड़ी हुई स्थितियों को सुधारना जा सकता है । वैसे ही जैसा कि हमारे इमाम सभी के लिए दुआएं करते हैं । लोग उन्हें पर्चियां भिजवा कर कहीं सेहत , कहीं बीमारी से शिफा , आपरेशन में कामयाबी या किसी के इंतिक़ाल पर उसकी मग़फिरत और बारिश बरसाने के लिए इमाम से दुआओं की दरख्वास्तें की जाती हैं जो आसानियों और काम्याबियों में तब्दील हो जाती हैं।