मैं क्यों न मानूं कि मेरे पति हिमांशु की नौकरी सरकारी दबाव में छीनी गई? नेहा सिंह राठौड़

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यूपी में “का” बा” गाने से चर्चा में आई लोक गायिका नेहा सिंह राठौड़ ने फेसबुक पोस्ट के माध्यम से अपने पति द्वारा दिए गए इस्तीफे के बारे में खुलकर बताया

लगभग हफ्ते भर से हिमांशु को फोन पर “नहीं सर मेरी गलती थी, उनका दोष नहीं है” बोलते सुन रही हूं.

मीडिया के लोग हिमांशु से उनके इस्तीफे के बारे में पूछ रहे हैं, और वो खुद को दोषी बता रहे हैं.

ये हिमांशु की विनम्रता और उदारता है कि नौकरी छीने जाने के बाद भी वो दृष्टि संस्थान और डॉक्टर विकास की छवि को लेकर सजग हैं.

पर अब जिस तरह से दृष्टि संस्थान मीडिया का उपयोग करके युद्धस्तर पर हिमांशु को एक लापरवाह व्यक्ति साबित करने में जुट गया है, मुझे उससे आपत्ति है.

हिमांशु जिस तरह नौकरी से निकाले जाने के बाद भी दृष्टि संस्थान की छवि को लेकर सतर्क रहे हैं, वो उन्हें लापरवाह नहीं बल्कि एक संवेदनशील और समर्पित कर्मचारी साबित करता है, वरना नौकरी से निकाले जाने के बाद मैंने लोगों को नियोक्ता के खिलाफ सिर्फ जहर उगलते देखा है.

कहना ये भी चाहती हूं कि
बीते दिनों जब कुछ लोगों ने भगवान राम और सीताजी के मुद्दे पर दृष्टि संस्थान और डॉक्टर विकास के विरुद्ध घेराबंदी की थी, तब हिमांशु ने खुद आगे बढ़कर मुझे संस्थान का पक्ष लेने के लिए कहा था और मुझसे दृष्टि संस्थान और विकास जी के पक्ष में ट्वीट करने को कहा था… पर जैसे ही मेरे विरुद्ध घेराबंदी की गई, दृष्टि संस्थान ने हमारा साथ देने की बजाय हिमांशु से इस्तीफा मांग लिया.

ये बात बेहद दुखी करने वाली थी, और हिमांशु आज भी इस बात से आहत हैं.. रही-सही कसर दृष्टि संस्थान की तरफ से आ रहे बयानों ने पूरी कर दी है.

बतौर कर्मचारी दृष्टि संस्थान से 2015 में जुड़े हिमांशु को उनके सबसे बुरे वक्त में नौकरी से निकाल दिया गया… जिससे हिमांशु को हो या न हो, मुझे आपत्ति है. क्या इस बेहद जरूरी ‘फायरिंग’ प्रक्रिया को कुछ हफ्तों के लिए टाला नहीं जा सकता था?

मैं क्यों न मानूं कि हिमांशु की नौकरी सरकारी दबाव में छीनी गई?

दृष्टि संस्थान का ये दावा पूरी तरह गलत है कि मुझे नोटिस मिलने से पहले ही हिमांशु को संस्थान से निकाल दिया गया था.

कानपुर देहात पुलिस ने 19 फरवरी का हस्ताक्षरित नोटिस मेरे ससुर जी को 20 फरवरी की दोपहर और मुझे 21 फरवरी की शाम को रिसीव करवाया जबकि हिमांशु ने अपना इस्तीफा 24 फरवरी को दिया.

ये सब कुछ कहना इसलिए भी जरूरी था, ताकि एक संवेदनशील और शुभचिंतक कर्मचारी के रूप में हिमांशु मूर्ख साबित न होने पाएं.

दृष्टि संस्थान को हिमांशु की उदारता का सम्मान करना चाहिए था, पर उन्होंने हिमांशु की इस उदारता का उन्हीं के विरुद्ध उपयोग किया.